Sunday, January 14, 2018

मंडल आरक्षण: ना खुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम

मंडल आंदोलन महज एक सामाजिक आंदोलन नहीं था। मंडल आंदोलन एक राजनैतिक आंदोलन भी था। बहुत लोग तो आज भी ‘मंडल की आग’ संज्ञा का इस्तेमाल करते हैं। 1989-90 में देश ने जो माहौल देखा उसकी याद आज भी ताजा है। शहर दर शहर जल रहे थे, गांव-गांव में पारंपरिक रिश्ते बिखर रहे थे। खैर इसी बीच वीपी सिंह की सरकार मे मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। केंद्र सरकार की नौकरियों में 27 फीसदी मंडल आरक्षण 1993 में लागू हुआ।

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आरक्षण के बाकी पहलुओं पर खूब चर्चाएं हुईं लेकिन 27 फीसदी वाले इस खांचे का सच सामने नहीं लाया गया। एक सच जो मंडल आरक्षण के लागू होने के 18 साल बाद सामने आया था उसपर चर्चा से बचने की तमाम कोशिशें की गईं। 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी की हिस्सेदारी महज 11 फीसदी थी। तो फिर 27 फीसदी का मतलब क्या ? 27 फीसदी आरक्षण और महज 11 फीसदी ओबीसी वर्ग के कर्मचारी। मतलब 27 फीसदी की जगह महज 11 फीसदी सीटों पर ही पिछड़े समुदाय के लोगों को नौकरी दी जा सकी। तो फिर 16 फिसदी आरक्षण कहां गया ? इसमें भी गौर वाली बात थी कि क्लास-वन के पदों पर 7 फीसदी पिछड़ा वर्ग के लोगों को नौकरी मिल पाई थी। क्लास दो में ये आंकड़ा 7 फीसदी से थोड़ा ज्यादा था तो क्साल तीन में 15 फीसदी से थोड़ा ज्यादा। ओबीसी को सबसे अधिक मौके फोर्थ ग्रेड में मिले। 2011 से 17 तक इस आंकड़े में बदलाव जरूर हुआ होगा लेकिन चमत्कारिक बदलाव हुआ हो ऐसा नहीं है। ये आलम केंद्र सरकार की नौकरियों में है। हलांकि कुछ लोगों का मानना है कि अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में नौकरियों में भारी कमी आई इसलिए ये आंकड़ा कम भी हो सकता है।
मंडल आरक्षण लागू होने से पहले भी केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी क्लास के लोग नौकरी थे। आरक्षण लागू होने के बाद अगर 27 फीसदी आरक्षण का कोटा भी नहीं भरा जा सका तो ऐतिहासित मंडल आंदोलन का हासिल क्या रहा ? एक बड़े सामाजिक तानाव और बंटवारे से देश को क्या मिला ?
आज एक बार फिर आरक्षण को लेकर कई किस्मों की बहसें खड़ी की जा रहीं हैं। लेकिन जब सरकार खाली पदों को भरेगी ही नहीं तो फिर आरक्षण का मतलब रह ही क्या जाएगा। नौकरियां हैं नहीं और बहसें आरक्षण पर हो रहीं हैं। तो क्या आरक्षण की आग में पिछड़ा वर्ग को झोंककर उसके सामाजिक संबंधों को जलाने की कोशिश हो रही है ? संभव है ऐसा हो रहा हो क्योंकि, समाज को बांट-छांट कर राजनीति आगे बढ़ती रही है और सामाजिक तनाव के जरिए राजनीतिक फायदे उठाए जाते रहे हैं।

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