Sunday, March 17, 2019

इस्लाम: बिना गीता-बाईबिल के क़ुरान नहीं

इस्लाम को मानने और समझने के दावे करने वाले ज्यादातर लोग आपको ये बताते हुए मिल जाएंगे कि इस्लाम में क़ुरान के अलावा किसी दूसरी मज़हबी किताब को जगह नहीं दी गई है। कम पढ़े-लिखे मुसलमान जब ये बात कहते हैं तो ऐसा लगता है कि इस्लाम के जानकारों ने ज्यादातर मुसलमानों को मज़हबी मामलों में अंधेरों में ही रखा है। इस्लाम की जो मूल अवधारणा है, भारत में ठीक उसके विपरीत इस्लाम की व्याख्या दिखती है। कुछ मुस्लिम विद्वानों को छोड़ दें तो ज्यादातर मज़हबी जानकारों ने इस्लाम की ग़लत व्याख्या ही की है। क़ुरान को लेकर ही बहुत सारी ग़लतफ़हमियां पैदा की गई हैं। बहुत लोगों का ये मानना कि क़ुरान ही एक मात्र मज़हबी किताब है और सिर्फ क़ुरान ही ईश्वर प्रेरित है। ये अवधारणा पूरी तरह से क़ुरान के विपरीत है।
क़ुरान में ये बात बार-बार दुहराई गई है कि मुहम्मद साहब से पहले भी हर मुल्क और हर क़ौम में रसूल होते रहे हैं। क़ुरान में साफ कहा गया है कि इसमें कोई शक नहीं कि तुमसे पहले अल्लाह ने सब क़ौमों में रसूल भेजे हैं। कुरान कहता है कि जो कुछ मैंने तुमसे कहा है वो सब पहले के लोगों के पवित्र ग्रंथों में मौजूद है। सब कौमों में ईश्वर ने पैग़ंबर(अवतार) भेजे हैं। उन पैग़ंबरों में हम एक-दूसरे के साथ किसी तरह का फर्क नहीं करते। सबको एक बराबर मानते हैं और सबकी एक ही तालीम है। कुरान के मुताबिक किसी रसूल को मानना और किसी को न मानना या रसूलों में फर्क करना, किसी को बड़ा या किसी को छोटा मानना कुफ्र या नाशुक्रापन है। कुरान में एक जगह काफ़ेरूने हक्क़ा शब्द का इस्तेमाल है। काफ़ेरूने हक्क़ा का मतलब बताया गया है सबसे बड़ा काफिर। क़ुरान में काफ़ेरूने हक्क़ा उन्हें बताया गया है जो क़ुरान के अलावा दूसरी मज़हबी क़िताबों को, इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों को और मुहम्मद साहब के अलावा दूसरे धर्मों के अवतारों और उनके उपदेशों को ख़ारिज करते हैं। क़ुरान अपने से पहले के सब धर्म ग्रंथों को, सब मज़हबी किताबों को भी अपनी तरह ठीक मानता है।
    इस्लाम को लेकर भारत में जो दूसरी धारणा विकसित गई वो है ज़बरदस्ती और धोखे से धर्म परिवर्तन। जबकि क़ुरान में साफ कहा गया है कि मज़हब के मामले में किसी से कोई ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए। ये भी कहा गया है कि धर्म या नेकी  इस बात में नहीं है कि किसी से झूठ बोलकर या जब़रदस्ती मज़हबी बात मनवाई जाए। इस्लाम कहता है कि असली दीन दूसरों के साथ नेकी है कोई रीति-रिवाज नहीं। क़ुरान में कहीं ये नहीं गया है कि नमाज़ करते वक्त चेहरा पूरब की तरह हो या पश्चिम की तरह।
  मतलब, गीता, गुरु ग्रंथ साहिब, बाईबिल या फिर इस किस्म के तमाम धर्म ग्रंथों को नकारने वाले दरअसल क़ुरान के उपदेशों को नकारते हैं। इस्लाम के अलावा दूसरे धर्म-मज़हबों को ख़ारिज करने वाले क़ुरान के उपदेशों को नकारते हैं। भारत के मुसलमानों को भारत के इस्लामिक जानकारों ने ही मज़हबी मामलों में अंधेरे में रखा है। इसलिए ये ज़रूरी है कि क़ुरान की रौशनी में इस्लाम को समझा जाए। भारत के वो लोग जो बिना इस्लाम को जाने-समझे मुसलमानों से नफरत करते हैं वो भी काफ़ेरूने हक्का हैं। इस्लाम किसी भी धर्म का विरोध नहीं करता, किसी भी धर्म ग्रंथ के खिलाफ नहीं होता और किसी भी अवतार, संत, फकीर को खारिज नहीं करता। इस्लाम में सर्व धर्म समभाव की अवधारणा है।       

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