मौर्य
मगध साम्राज्य का अतीत है और यूपी बीजेपी का वर्तमान...उम्मीदों का अदहन
बुदबदाता रह गया और घर का चावल पंथ हो गया....बीजेपी के उत्तर प्रदेश
अध्यक्ष पद की दौड़ में जितने बड़े नाम शामिल थे उनमें केशव प्रसाद मौर्य
का नाम कहीं नहीं था...शुक्रवार की सुबह तक किसी ने ये सोचा तक न था कि
केशव मौर्य बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाएजाएंगे..लेकिन दोपहर बाद जैसे ही
केशव प्रसाद मौर्य के नाम का ऐलान हुआ सबकी निगाहें केशव प्रसाद मौर्य की
ओर मुड़ गई
तो
मौर्य क्यों...ये सवाल सिर्फ बीजेपी के दायरे में नहीं गूंजा..पार्टी से
बाहर भी इसके जवाब खोजे जाने लगे..मौर्य ही क्यों...इस सवाल का जवाब मौर्य
के बैकग्राउंड से मिलता दिख रहा है...चाल चरित्र और चेहरा वाली पार्टी के
फैसले के पीछे सियासत की वही अंधी सुरंग है जिसमें होता तो बहुत कुछ है,
दिखता कुछ भी नहीं..केशव प्रसाद मौर्य विश्व हिंदु परिषद के नेता
हैं..वीएचपी से जुड़े मौर्य 18 साल तक गंगापार और यमुनापार के प्रचारक
रहे...मौर्य पर इलाहाबाद में हत्या का एक मामला दर्ज है, हत्या के प्रयास
के एक मामले में वो चार्जशीटेड हैं और दंगा भड़काने समेत 9 मामलों के आरोपी
है...चाल चरित्र और चेहरा के मामले में मौर्य सियासी सलूक के सारे सलीके
जानते हैं..जाहिर है इन्हें अपनी ताकत का एहसास है..अकले दम पर लड़ने का
दावा यूं ही नहीं हो रहा है
तो
मौर्य ही क्यों...मौर्य इसलिए कि यूपी में सरकारों को बदलते रहने का
ट्रेंड है...और इस ट्रेंड में कही मायावती का दलित और स्वामी प्रसाद मौर्य
वाला पिछड़ा वर्ग गोलबंद न हो जाए..तो गोलबंदी तोड़नी है..पिछड़ा वर्ग की
फसल काटने के लिए जातीय राजनीति की चाल चली गई है..मौर्य इसलिए कि..
सांप्रदायिक दंगों के आरोपी और मोहम्मद गौस की हत्या का आरोपी शख्स बीजेपी
की उस राजनीति पर फिट बैठता है जिसके जरिए पार्टी सूबे में जीरो से 71
सांसदों वाली पार्टी बनी है...कौशांबी के सिराथू के कसया गांव के रहने वाले
मौर्य के पिताजी चाय बेचते थे..खुद मौर्य अखबार बेचा करते थे..लेकिन
वीएचपी से जुड़ने के बाद मौर्य कुछ ही सालों में करोड़पति हो गए...बीजेपी
ने मौर्य के आसरे जातीय-सांप्रदायिक राजनीति की वही चाल चली है..जो चाल
पार्टी का चाल,चरित्र और चेहरा तय करती रही है।