Friday, April 8, 2016

बीजेपी का मौर्य काल

मौर्य मगध साम्राज्य का अतीत है और यूपी बीजेपी का वर्तमान...उम्मीदों का अदहन बुदबदाता रह गया और घर का चावल पंथ हो गया....बीजेपी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में जितने बड़े नाम शामिल थे उनमें केशव प्रसाद मौर्य का नाम कहीं नहीं था...शुक्रवार की सुबह तक किसी ने ये सोचा तक न था कि  केशव मौर्य बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाएजाएंगे..लेकिन दोपहर बाद जैसे ही केशव प्रसाद मौर्य के नाम का ऐलान हुआ सबकी निगाहें केशव प्रसाद मौर्य की ओर मुड़ गई

   तो मौर्य क्यों...ये सवाल सिर्फ बीजेपी के दायरे में नहीं गूंजा..पार्टी से बाहर भी इसके जवाब खोजे जाने लगे..मौर्य ही क्यों...इस सवाल का जवाब मौर्य के बैकग्राउंड से मिलता दिख रहा है...चाल चरित्र और चेहरा वाली पार्टी के फैसले के पीछे सियासत की वही अंधी सुरंग है जिसमें होता तो बहुत कुछ है, दिखता कुछ भी नहीं..केशव प्रसाद मौर्य विश्व हिंदु परिषद के नेता हैं..वीएचपी से जुड़े मौर्य 18 साल तक  गंगापार और यमुनापार के प्रचारक रहे...मौर्य पर इलाहाबाद में हत्या का एक मामला दर्ज है, हत्या के प्रयास के एक मामले में वो चार्जशीटेड हैं और दंगा भड़काने समेत 9 मामलों के आरोपी है...चाल चरित्र और चेहरा के मामले में मौर्य सियासी सलूक के सारे सलीके जानते हैं..जाहिर है इन्हें अपनी ताकत का एहसास है..अकले दम पर लड़ने का दावा यूं ही नहीं हो रहा है

     तो मौर्य ही क्यों...मौर्य इसलिए कि यूपी में सरकारों को बदलते रहने का ट्रेंड है...और इस ट्रेंड में कही मायावती का दलित और स्वामी प्रसाद मौर्य वाला पिछड़ा वर्ग गोलबंद न हो जाए..तो गोलबंदी तोड़नी है..पिछड़ा वर्ग की फसल काटने के लिए जातीय राजनीति की चाल चली गई है..मौर्य इसलिए कि.. सांप्रदायिक दंगों के आरोपी और मोहम्मद गौस की हत्या का आरोपी शख्स बीजेपी की उस राजनीति पर फिट बैठता है जिसके जरिए पार्टी सूबे में जीरो से  71 सांसदों वाली पार्टी बनी है...कौशांबी के सिराथू के कसया गांव के रहने वाले मौर्य के पिताजी चाय बेचते थे..खुद मौर्य अखबार बेचा करते थे..लेकिन वीएचपी से जुड़ने के बाद मौर्य कुछ ही सालों में करोड़पति हो गए...बीजेपी ने मौर्य के आसरे जातीय-सांप्रदायिक राजनीति की वही चाल चली है..जो चाल पार्टी का चाल,चरित्र और चेहरा तय करती रही है।  

Tuesday, April 5, 2016

यहां व्यवस्था जिम्मेदारी नहीं होती


                          यहां व्यवस्था जिम्मेदार नहीं होती

 3 अप्रैल को कानपुर की खुशी व्यवस्था की उस अंधी सुरंग में समा गई जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं होता...ये सुरंग देश के आम लोगों की कुसियां निगलती है...और यहां की व्यवस्था आम लोगों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।

    मां की कोख से बच्चे जिंदगी लेकर निकलते हैं....और सिस्टम की कोख में जिंदगी गंवा बैठते हैं...इस मां के आंसू हाकिमों के जाम पर भारी नहीं पड़ते... कहां हाकिम और कहां श्यामा जैसी आम महिला...मां तुम रोती रहो...रोओ इस बात के लिए तुम्हारी खुशी हाकिमों के नकारेपन ने छीन ली..रोओ मां..रोओ इस बात के लिए कि समाजवाद और राष्ट्रवाद के नारों के बीच तुम्हारी हिचकियों की आवाज़ कोई सुनता नहीं है... रोओ इस बात के लिए कि तुम निवाले को तरसती हो और वो जाम से सराबोर होते हैं..रोओ क्योंकि तुम्हारे लिए ही तो अब तक खोदे गए हैं सारे गड्ढे, बनाई गईं हैं सारी सुरंगे...रोओ..इसलिए रोओ कि खोदने से पहले यही तो बताया जाता है कि इन सुरंगों से निकलेगी आम लोगों के लिए खुशी...देखो ना इसी सुरंग से तो निकली थी तुम्हारी खुशी भी...मरी हुई खुशी..रोओ मां..रोओ...अब तो आखिरी सांस तक तुम्हें रोना ही है...तुमने सुना न क़ानून की भाषा बोलने वाला गिरोह कैसी बातें कर रहा है 
                                                 
    मां, सुना है तुम्हारे पेट में पथरी है...उसी पथरी को निकलवाने तुम आई थी सूबे के एक बड़े शहर में..कानपुर में..लेकिन यहां तो तुम्हारी किस्मत को पत्थर मार गया...रोओ मां...तुम नहीं रोओगी तो सोनू पत्थर हो जाएगा...उस श्ख्स के लिए रोना जो बाप था उस बच्ची का...तुम्हारे आंसू उसे पिघलाए रखेंगे...व्यवस्था को भी तुम्हारे आंसुओं के बेहद जरुरत है...तुम नहीं रोओगी तो फिर वो अंधी सुरंग वाली व्यवस्था के सिर पत्थर से कूंच देगा...इसलिए रोओ मां...रोओ और कोसो..कोसो उन लोगों को जिन्होंने तुमारी खुशी को मारा डला..और ये जान लो एक दिन यूं ही रोते-रोते तुम भी मर जाओगी...क़ानून की भाषा बोलने वाला गिरोह वही बातें दुहराएगा 

  रोओ मां, उस सोच के लिए भी रोना जिसमें ये माना जाता है कि मौत तो तय होती है..फिर जब सबकुछ तय होता ही है तो कत्ल से लेकर कातिल भी तय होते हैं...ये तो नियती थी तुम्हारी खुशी की...उसे सुरंग में समाना था..जान लो इस सोच में, इस सुरंग में, इस व्यवस्था में अंधेरा ही होता है..रोती रहो तुम..तुम न तो किसी वोटबैंक को हिला सकती है न तो नोटबैंक को डुला सकती हो..फिर रोने का अलावा कर ही क्या सकती हो..लेकिन रोना..जरुर रोना..अपनी बेटी के लिए तुम्हारा रोना बेहद जरुरी है।

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...