आतंक बरास्ते हिंदूवाद या आतंक बरास्ते RSS ...
अंग्रेजी पत्रिका कैरावैन की कवर स्टोरी ने आतंक के रास्तों पर बहस खड़ी कर दी
है... 2007 में हरियाणा के पानीपत के पास समझौता ट्रेन में ब्लास्ट हुआ था.... ब्लास्ट
में कुल 68 लोगों
की मौत हुई थी.... नैशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी ने इस मामले में असीमानंद, लोकेश
शर्मा, राजेंद्र
पहलवान, कमल
चौहान को आरोपी बनाया... असीमानंद पर ब्लास्ट करवाने में मदद देने का आरोप है जबकि
राजेंद्र पहलवान, लोकेश शर्मा और कमल चौहान पर रेल में बम लगाने
का आरोप ... मैगज़ीन का दावा है कि आरोपी असीमानंद ने अपने इंटव्यू में कहा कि इस
ब्लास्ट के लिए उसे संघ प्रमुख मोहन भागवत का आशीर्वाद हासिल था...मैगजीन ने
असीमानंद से बातचीत का टेप भी जारी किया है... मैगजीन ने दावा किया है कि जुलाई 2005 में असीमानंद और सुनील जोशी सूरत में संघ नेताओं मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार
से मिले थे... तब मोहन भागवत संघ प्रमुख नहीं थे ..... एक टेप को 10 जनवरी 2014 को हरियाणा की अंबाला सेंट्रल जेल में रेकॉर्ड
किया गया है जिसे असीमानंद का इंटरव्यू बताया जा रहा है.... इसमें असीमानंद और
मैगजीन की पत्रकार लीना गीता रघुनाथन की बातचीत है... जरा इस बातचीत को देखिए
असीमानंदः मोहन भागवत, इंद्रेश और सुनील, वे सभी मुझसे मिलने शाबरी धाम (गुजरात) आए थे।
सुनील ने भागवतजी से कहाः थोड़ा हिंदू का आक्रमण होना है। संघ से जुड़े हुए लोग हैं जो ये विचार रखते हैं। जो भी होगा हम तक ही रहेगा। संघ से इनको जोड़ेंगे भी नहीं। आप से कोई मदद नहीं लेंगे। आप अधिकारी हैं इसलिए आपको बता रहे हैं। इसलिए आपको बता रहे हैं कि हम लोग सोच रहे हैं।
तब मोहनजी और इंद्रेश दोनों ने कहाः यह बहुत अच्छा है। जरूरी है। संघ से नहीं जोड़ना। संघ नहीं करेंगे... हिंदुत्व के लिए भी ऐसा कोई है। संघ का यह विचार नहीं है।
मोहन भागवत: स्वामीजी आप ये करेंगे तो हम निश्चिंत होंगे। कोई गलत नहीं होगा। अपराध नहीं होगा। आप करेंगे तो क्राइम करने के लिए कर रहे हैं ऐसा नहीं लगेगा। विचारधारा के साथ जुड़ा लगेगा। बहुत जरूरी है यह हिंदू के लिए। आप लोग करो। आशीर्वाद है। इससे आगे कुछ भी नहीं।
मैगजनी के दावों में अगर थोड़ी भी सच्चाई है तो देखिए कैसे
विचारधारा को बम से जोड़ा जा सकता है..और कैसे कट्टरवाद सीधे आतंक से जुड़ जाता
है.. तो क्या कत्ल के जरिए सांस्कृतिक विरासत की हिफाजत हो सकती है...ये बहस खड़ी
होती है तो असीमानंद से साध्वी प्रज्ञा तक जाती है... और आतंक के रास्ते सत्ता
समाज को कनेक्ट करते हुए बीजेपी को ताकत देती नज़र आती है... संघ और संगठन की आतंक
से खतरनाक जुगलबंदी को बेपर्द करती है... या फिर आतंक के खिलाफ एक और आतंक के खड़े
होने का रास्ता खोलती है... तो फिर सवाल ये कि ये रास्ता देश को बांट-छांट कर किधर
लेकर जाएगा?