Thursday, February 6, 2014

आतंक बरास्ते विचारधारा

आतंक बरास्ते हिंदूवाद या आतंक बरास्ते RSS ... अंग्रेजी पत्रिका कैरावैन की कवर स्टोरी ने आतंक के रास्तों पर बहस खड़ी कर दी है... 2007 में हरियाणा के पानीपत के पास समझौता ट्रेन में ब्लास्ट हुआ था.... ब्लास्ट में कुल 68 लोगों की मौत हुई थी.... नैशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी ने इस मामले में असीमानंद, लोकेश शर्मा, राजेंद्र पहलवान, कमल चौहान को आरोपी बनाया... असीमानंद पर ब्लास्ट करवाने में मदद देने का आरोप है जबकि राजेंद्र पहलवान, लोकेश शर्मा और कमल चौहान पर रेल में बम लगाने का आरोप ... मैगज़ीन का दावा है कि आरोपी असीमानंद ने अपने इंटव्यू में कहा कि इस ब्लास्ट के लिए उसे संघ प्रमुख मोहन भागवत का आशीर्वाद हासिल था...मैगजीन ने असीमानंद से बातचीत का टेप भी जारी किया है... मैगजीन ने दावा किया है कि जुलाई 2005 में असीमानंद और सुनील जोशी सूरत में संघ नेताओं मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार से मिले थे... तब मोहन भागवत संघ प्रमुख नहीं थे ..... एक टेप को 10 जनवरी 2014 को हरियाणा की अंबाला सेंट्रल जेल में रेकॉर्ड किया गया है जिसे असीमानंद का इंटरव्यू बताया जा रहा है.... इसमें असीमानंद और मैगजीन की पत्रकार लीना गीता रघुनाथन की बातचीत है... जरा इस बातचीत को देखिए

असीमानंदः मोहन भागवत, इंद्रेश और सुनील, वे सभी मुझसे मिलने शाबरी धाम (गुजरात) आए थे।
सुनील ने भागवतजी से कहाः थोड़ा हिंदू का आक्रमण होना है। संघ से जुड़े हुए लोग हैं जो ये विचार रखते हैं। जो भी होगा हम तक ही रहेगा। संघ से इनको जोड़ेंगे भी नहीं। आप से कोई मदद नहीं लेंगे। आप अधिकारी हैं इसलिए आपको बता रहे हैं। इसलिए आपको बता रहे हैं कि हम लोग सोच रहे हैं।

तब मोहनजी और इंद्रेश दोनों ने कहाः यह बहुत अच्छा है। जरूरी है। संघ से नहीं जोड़ना। संघ नहीं करेंगे... हिंदुत्व के लिए भी ऐसा कोई है। संघ का यह विचार नहीं है। 

मोहन भागवत:  स्वामीजी आप ये करेंगे तो हम निश्चिंत होंगे। कोई गलत नहीं होगा। अपराध नहीं होगा। आप करेंगे तो क्राइम करने के लिए कर रहे हैं ऐसा नहीं लगेगा। विचारधारा के साथ जुड़ा लगेगा। बहुत जरूरी है यह हिंदू के लिए। आप लोग करो। आशीर्वाद है। इससे आगे कुछ भी नहीं।

मैगजनी के दावों में अगर थोड़ी भी सच्चाई है तो देखिए कैसे विचारधारा को बम से जोड़ा जा सकता है..और कैसे कट्टरवाद सीधे आतंक से जुड़ जाता है.. तो क्या कत्ल के जरिए सांस्कृतिक विरासत की हिफाजत हो सकती है...ये बहस खड़ी होती है तो असीमानंद से साध्वी प्रज्ञा तक जाती है... और आतंक के रास्ते सत्ता समाज को कनेक्ट करते हुए बीजेपी को ताकत देती नज़र आती है... संघ और संगठन की आतंक से खतरनाक जुगलबंदी को बेपर्द करती है... या फिर आतंक के खिलाफ एक और आतंक के खड़े होने का रास्ता खोलती है... तो फिर सवाल ये कि ये रास्ता देश को बांट-छांट कर किधर लेकर जाएगा?

Monday, February 3, 2014

मुद्दे से भटकती बहस

दिल्ली में पूर्वोत्तर के छात्र नीडो की हत्या के बाद बीच बहस में नस्लभेद आ गया है... ऐसा नहीं है कि दिल्ली में बाहरियों पर ये कोई पहला हमला है..पूर्वोत्तर के लोगों को दिल्ली के लोग चिंकी कहते हैं.. ये भी किसी हमले से कम नहीं..लेकिन नस्लभेद के दायरे में इस बात को सिमटाना साजिश का हिस्सा हो सकता है...दरअसल मुबंई में उत्तर भारतीयों पर हमले के खिलाफ खड़े लोग इस मसले पर खड़े नहीं हो रहे हैं.. सियासी साजिश की बू यहीं से आ रही है.. महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हमले राजनीति का हिस्सा हैं... और उन हमलों के खिलाफ खड़े होना भी राजनीति का हिस्सा है... लेकिन दिल्ली में ना तो पूर्वोत्तर के लोग मजबूत वोटबैंक हो पाए... और ना ही किसी दलीय खांचे में समा पाए..याद कीजिए करीब 10 साल पहले की दिल्ली... तब बिहारी शब्द किसी इलाका विशेष के मूल निवासियों की पहचान से ज्यादा दिल्ली की एक जमात की जुबान के लिए गाली हुआ करती थी... हालात बदले उत्तर भारतीयों की सियासी ताकत बढ़ी.. और अब उनपर हमलों की तादाद कम हो गई है... तो क्या ये ही हमले अब पूर्वोत्तर के लोगों पर हो रहे हैं.. तो क्या देश में इज्जत के साथ जीने की खातिर सायासी गोलबंदी के खांचे में समाए रहना एक मजबूरी है.. क्षेत्रवाद के जरिए अपनी गली का शेर बनने की महानगरीय आदत सभ्य समाज के दायरे में जंगल खड़ा नहीं कर रही.. बहस इन सवालों पर भी क्यों नहीं हो रही

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...