Thursday, March 7, 2019

इस्लाम: समझिएगा तो नफरत नहीं होगी- 01

मैं नास्तिक हूं और मेरे लिए धार्मिक पुस्तकें आस्था का विषय नहीं हैं बावजूद इसके मैं अलग-अलग धर्मग्रंथों को पढ़ता हूं। मैंने धर्म पर आस्था रखने वाले कई लोगों को धर्मग्रंथ पढ़ते देखा है और धर्म का धंधा करने वालों को पाया है कि उनके पास किसी धर्म की बुनियादी जानकारी नहीं होती। हिंदु धर्मग्रंथ तो पहले से ही घर में मौजूद थे। बाद के दिनों में मैंने इसाई, इस्लाम और सिख धर्मग्रंथ भी ले लिए। पटना वाले गुरमीत सिंह जी ने सूरज प्रकाश दिया और रांची वाले वेसाल आज़म ने कुरान का हिंदी तर्जुमा दिया। IAS अधिकारी रहे तहसीम अहमद जी ने गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति से प्रकाशित पैग़म्बर मुहम्मद क़ुरान और हदीस इस्लामी दर्शनकिताब दी। इस तरह से मेरे पास कुछ और किताबें हो गईं। रामचरित मानस की चौपाइयां तब से पढ़ रहा हूं जब उनके मतलब समझ भी नहीं पाता था। रामायण तब पढ़ी जब मैं 9वीं और 10वीं क्लास में था। बीए फर्स्ट ईयर में था तब पहली बार गीता पढ़ी। फिर एक बार कह दूं मैं नास्तिक हूं। मैं इन किताबों को सिर्फ किताब मानता हूं। लेकिन हाल के दिनों में धर्म मानने वालों के बीच जो धर्मोन्माद दिखा उसने ये साबित किया कि धर्मों का मौजूदा स्वरूप धर्मांधता है। गली-गली घूम रहे टीकाधारियों और दाढ़ीधारियों से आप उनके धर्म की गूढ़ता नहीं जान सकते। इनमें ज्यादातर उस कौए के पीछे भागने वाले लोग हैं जिसके बारे में किसी ने कहा है कि वो कान लेकर भाग रहा है।

   भारत की बहुसंख्यक आबादी इस्लाम को जिस नज़रिए से देखती है वो नज़रिया विकसित किया है भारत के ही कठमुल्लों ने। ये कठमुल्ले वो लोग हैं जो मजहब का म तो नहीं जानते लेकिन खुद को मजहबी ठेकेदार बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि वो लोग जो न धर्मांध हैं और ना ही धर्म की किसी बंदिश को मानते हैं वो धार्मिक आडंबरों को खारिज करते हुए धर्म-मजहब मानने वालों को ये बताएं कि उनके धर्मग्रंथ क्या कहते हैं।
   भारत में इस्लाम बाहर से आया। अरब के देशों में सबसे पहले यहूदी ही धर्म की तरह खड़ा हुआ। उससे पहले वहां अलग-अलग कबीलों में अलग-अलग मान्यताएं थीं लेकिन, वो कबीले किसी एक धर्म का प्रवर्तन नहीं कर पाए। यहूदियों के बाद ईसाई धर्म ने वहां पांव जमाए। यहूदियों, अलग-अलग कबीलों और ईसाइयों के बीच भीषण रक्तपात होते रहते थे। ईसा की पहली सदी में रोम के सम्राट टाइटस ने यहूदियों को फलस्तीन से निकाल दिया। बाद के दिनों में ईसाइयों के आपसी झगड़ों में इतनी हिंसा हुई कि सीरिया (शाम) और दूसरी कई जगहों से उनको निकाला गया। इसी दौरान बड़ी तादाद में ईसाई और यहूदी अरब देशों मे जाकर बसे। अरब की एक बड़ी आबादी इब्राहिम को अपना पूर्वज मानती थी। बाद के दिनों में ये मान्यता यहूदी और ईसाई धर्म में भी स्थापित हो गई कि इब्राहिम ही यहूदियों और ईसाइयों के पूर्वज थे। वो इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल की मूर्तियों की उपासना का वक्त था। बाद में इब्राहिम और इस्माइल के साथ ईसा की मां मरियम की मूर्तियां भी रखी जाने लगीं। इस तरह से एक मिश्रित संस्कृति का विकास शुरू हुआ लेकिन, यही मिश्रण बाद के दिनों में बड़े रक्तपात की वजह बना।  
          यहूदी एक ईश्वर और बहुत सारे अवतारों के अलावा एज़रा को भगवान का बेटा मानते थे। यहूदियों में छुआछूत बहुत ज्यादा थी और दूसरी मान्याताओं को वो नीच समझते थे। वो दूसरे धर्मों को नीच और नापाक मानते थे।
   ईसाई धर्म यहूदी के बाद आया था। ईसाई धर्मावलंबियों का मानना था कि यहूदियों के बीच लकीर की फ़कीरी है और घटिया रस्मों का चलन है। तब ये माना गया कि ईसाई धर्म यहूदी की ही एक शाखा है और यहूदियों के बीच धर्म सुधार आंदोलन चला रहा है। यहूदियों की बीसियों मूर्तियों की जगह ईसाइयों ने त्रिमूर्ति पूजा को तरजीह दी। इन तीन मूर्तियों में ईश्वर, ईसा और उस मानी हुई आत्मा की मूर्ति हुआ करती थी जिसके बारे में मान्यता है कि उसी आत्मा के जरिए ईसा की कुंआरी मां मरियम को गर्भ ठहरा था। कुछ जगहों पर ईश्वर, ईसा और मरियम की त्रिमूर्ति हुआ करती थी। कुछ जगहों पर इन तीन मूर्तियों के अलावा कई संतों और फ़रिश्तों की मूर्तियां भी हुआ करती थीं।
क्रमश:

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