Thursday, October 18, 2018

मुश्किल ये कि संघ के सामने दूसरा रास्ता नहीं है

नवरात्र के नौवें दिन जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपना स्थापना दिवस मना रहा है.. और जब 1925 से लेकर 2018 तक के अपने अनुभवों को साझा कर रहा है तब उसे लग रहा है कि देश की राजनीतिक दिशा भटक सी गई है.. तब उसे लग रहा है कि हाशिए पर खड़े तबके को वक्त पर मदद आज भी नहीं मिल रही.. और जब देश का प्रधानमंत्री खुद संध का स्वयं सेवक है तब संघ परिवार की ये शिकायत है कि सरकार चल कैसे रही है ये पता ही नहीं चलता...चला कौन रहा है ये भी पता नहीं चलता.. मोहन भागवत ने दर्द बयां किया या फिर कोई संकेत दिए  ये तो वो जानें लेकिन, उनके इस बयान के मायने दूर का सफर तय करेंगे।
 तो केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर, मोहन भागवत तक संघ की शिकायतें वहीं टिकीं हैं जहां वो 1925 में टिकी थीं.. क्योंकि सत्ता के बाजपेयी युग में भी संघ के मुताबिक राजनीतिक सत्ता चली नहीं.. और 6 साल तक संघ के स्वयं सेवक वाली सरकार संघ और संगठन में तालमेल बनाए रखने की जुगत में ही लगी दिखी.. 2014 में बनी संघ स्वयं सेवक वाली सरकार इसी मोहन भागवत के सामने बाजाप्ता सरकार का प्रजेंटेशन करती दिखी थी..लेकिन आम चुनाव से तकरीबन एक साल पहले संघ प्रमुख की शियाकतें वैसे ही मुंह बाए खड़ी हैं जैसे आम आदमी की समस्याएं.. तो फिर सत्ता चाहे विचार शून्य के पास हो या संघ के स्वयं सेवक के पास, फर्क पड़ता क्या है.. और ये बात अगर संघ समझ गया है तो फिर बीजेपी के साथ ही वो हर परिस्थिति में खड़ा हो तो क्यों हो..
         तो फिर संघ करे क्या.. मुश्किल ये है कि संघ के साथ बीजेपी-शिवसेना को छोड़ कोई दूसरा दल खड़ा होना नहीं चाहता.. और संघ जिस किस्म के देश के सपने देखता है.. वो सपना खुद स्वयं सेवकों की सरकार साकार कर नहीं पाई.. तो संघ का रास्ता होगा क्या...क्योंकि संघ के सपने महज सामाजिक सोच के बदलाव से पूरे होंगे नहीं.. और सत्ता की राजनीति कुर्सी के समीकरण को ज्यादा समझती है संघ के सपने को नहीं..

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...