Thursday, August 1, 2019

उनके हिस्से का हिंदुत्व ख़तरे में है


गर्मियों में जिस धनौती नदी में अब धूल उड़ने लगी है बरसात में अब वही धनौती फूंफकारती है। अमवा मझार के हाई स्कूल के फील्ड में रोजाना लगने वाली शाखा से लौटते वक्त प्रमोद काका थोड़ी देर के लिए धनौती किनारे खड़े होते हैं। तिवारी टोले वाले चौर का पानी बारी पर धनौती से मिलता है। जाल में गरई, पोठिया और टेंगरा मछलियां खूब फंसती हैं। वैसे तो प्रमोद काका कभी मछली खरीदते नहीं हैं लेकिन रोजाना वहां जाने का फायदा ये होता है कि बाबूलाल दुसाध कभी-कभार उन्हें एक-आध पाव मछली दे दता है। प्रमोद काका के लिए वही दिन सबसे अच्छा होता है जिस दिन बाबूलाल दुसाध उनके हाथ में मछली थमाते हुए कहता है कि लीं तिवारी जी मछरी खाईं। प्रमोद काका की ये खुशी संकट में है। वो शाखा समाप्ती के बाद घर के रास्ते में हैं। बगल में धनौती उफना रही है। सामने कुछ दूरी पर बारी है। वही बारी जहां से न जाने कितनों सालों से वो मुफ्त की मछली बड़े चाव से खा रहे हैं। बड़ा असमंजस है। शाखा में अजय जायसवाल ने बताया कि पटना वाले एक शुक्ला जी असली हिंदु निकले। एकदम हिंदुत्व के शिवाजी। शेर, सवा शेर। दुकान वाले ने मुसलमान के हाथों खाना भेजा तो लेने से इनकार कर दिया। सनातन धर्म की रक्षा के लिए भूखे सो गए। इतना ही नहीं सोए हिंदुओं को जगाने के लिए सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार भी खूब किया।
    प्रमोद काका असमंजस में हैं। मुसलमान के हाथों भेजा गया खाना खा लेने भर से हिंदुत्व खतरे में आ जाता है ! काका का माइंड सुन्न हुआ जा रहा है। वो तो कई बार रोज देवान के घर की बनी रोटी खा चुके हैं। छोटे थे तो रोज देवान उन्हें गोदी में खेलाया करते थे। कई बार अपने हाथों अपने घर की बनी रोटी भी खिलाई है रोज देवान ने। रोज देवान तो मुसलमान थे। प्रमोद काका का धर्म संकट बढ़ता जा रहा है। सिर्फ मुसलमान के हाथों खाना भेजने भर से हिंदु धर्म जब खतरे में आ जाता है तो फिर ये तो कई बार मुसलमान के घर की रोटी मुसलमान के ही हाथों खा चुके हैं। मतलब इनके हिस्से का हिंदुत्व तो बचा ही नहीं है। वो तो कब का मिट गया है। मतलब अब ये हिंदु नहीं रहे। काका का कनफ्यूजन बढ़ता जा रहा है। पैर लड़खड़ाने लगे। धम्म से बैठ गए महुआनी में।
    काका कोई बुद्ध तो हैं नहीं कि तपस्या करने लगते। बरसात में महुआ के पेड़ के नीचे बैठे तो चींटियों ने जहां-तहां शरीर पर रेंगना शुरू कर दिया। बदन झाड़कर उठे तो सामने वही बारी जहां से वो वर्षों से हर बरसात में मछली लाते, पकाते और खाते रहे हैं। हर साल बारी का ठेका  बाबूलाल दुसाध और हातिम अंसारी ही लेते रहते हैं। साझे का ठेका सालों से चला आ रहा है। जाल में फंसी मछलियां हातिम अंसारी निकाल-निकाल कर टोकरी में रखते जाते हैं और बाबूलाल दुसाध सब बेचने के बाद जो थोड़ा बचता है उसी में से थोड़ा प्रमोद काका को दे देते हैं। हाय! मुसलमान के हाथों पकड़ी गई मछली खाते रहे हैं प्रमोद काका। मुसलमान के घर की रोटी भी खाई है प्रमोद काका ने। एक कदम भी नहीं चल पाए कि धम्म से महुआनी में ही गिर पड़े प्रमोद काका। होश आया तो देखा कि बारी पर पुल के किनारे लेटे पड़े हैं। कई लोग उनको घेरे खड़े हैं। बाबूलाल दुसाध सिर की मालिश कर रहे हैं और हातिम अंसारी तलवों की मालिश कर रहे हैं। कोई सीने की मालिश कर रहा है कोई पानी के छींटे मार रहा है। हड़बड़ा कर उठ बैठे प्रमोद काका। थोड़ी देर में सबकुछ ठीक हो गया। बाबूलाल दुसाध ने एक किलो से भी ज्यादा मछली एक उनके गमछे में बांध दी, हातिम अंसारी ने अपनी साइकिल से प्रमोद काका को उनके घर तक पहुंचा दिया। सारा कनफ्यूजन दूर हो गया। न तो हिंदुत्व खतरे में है और ना ही हिंदु खरते में है। खतरे में है तो बस हिंदु-हिंदु जपने वाले नेताओं की कुर्सी।

Sunday, July 28, 2019

डूबता बिहार, कौन जिम्मेदार ?


समूचा उत्तर बिहार हर साल भीषण बाढ़ की चपेट में होता है। सैकड़ों लोग मरते हैं, हजारों कच्चे-पक्के मकान बह जाते हैं या फिर कटाव की वजह से गिर जाते हैं। फसलों की तबाही से लाखों किसान हर साल बर्बाद होते हैं। डूबते-उतराते उत्तर बिहार के लोगों ने इन्हीं हालातों में रचने-बसने की कला सीख ली है। डूबते-उतराते उत्तर बिहार के लोगों को ये समझा दिया गया है कि सालाना तबाही एक प्राकृतिक आपदा है। प्राकृतिक आपदा की समझ विकसित होने के बाद तबाही के गुनहगार राहत-बचाव के सालाना लूट वाले उर्स में शामिल हो जाते हैं। बिहार की इस बर्बादी की मीडिया रिपोर्टिंग भी अज्ञानता के अंधकूप में भटकती दिखती है। न तो तथ्यों की पड़ताल, ना कोई अध्ययन और ना कोई रिसर्च। मीडिया रिपोर्टिंग में बस लफ्जों की बाजीगरी और नाटकीयता का मंचन होता रहता है।

   भागलपुर में मची तबाही के लिए नेपाल और बरसात को कोस रही मीडिया रिपोर्टिंग ये बताने कि लिए काफी है कि टीवी रिपोर्टिंग मर चुकी है। राहत और बचाव की खामियों से आगे न तो रिपोर्टर सोच पा रहा है और ना ही डेस्क पर बैठे लिखाड़ी। ग़म और आंसुओं को कैसे माल बना कर बेचा जाए सारा फोकस इसी पर है। पिछले साल भी सारा फोकस इसी पर था, अगले साल भी सारा फोकस इसी पर रहेगा। बरसात भी हर साल होगी, नेपाल भी वहीं रहेगा जहां वो आज है। इसमें से कुछ भी बदलने वाला नहीं है। सरकार और मीडिया के लिए ये सबसे अच्छी स्थिति है कि बरसात हर साल आती है और पड़ोस में पहाड़ों पर बसा नेपाल है।
   भागलपुर में तबाही भी हर साल आती है। 1950 में ही वैज्ञानिक कपिल भट्टाचार्य ने ये बता दिया था कि बाढ़ से भागलपुर बर्बाद हो जाएगा। तब कपिल भट्टाचार्य को विकास विरोधी वैज्ञानिक बताया गया। तब कपिल भट्टाचार्य की रिपोर्ट पर विचार कर रही सरकार को विकास विरोधी बताया गया। ये वो दौर था जब पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज बनाने का विचार सामने आया था। वैज्ञानिक कपिल शर्मा ने तब इसका विरोध करते हुए कहा था कि फरक्का के कारण बंगाल के मालदा, मुर्शीदाबाद के साथ बिहार के पटना, बरौनी, मुंगेर, भागलपुर और पूर्णिया हर साल पानी में डूबेंगे। 1971 में बिहार में अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ आई। ये वही साल है जिस साल फरक्का बैराज बन कर तैयार हुआ। फरक्का बैराज बनने का बाद गंगा नदी का बहाव अवरुद्ध हुआ और नदी में गाद बढती गई।
    गंगा बिहार के ठीक मध्य से होकर गुजरती है। यह पश्चिम में बक्सर जिले से राज्य में प्रवेश करती है और भागलपुर तक 445 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई झारखंड और फिर बंगाल में प्रवेश कर जाती है। बिहार की ज्यादातर नदियां गंगा में ही मिलती हैं और गंगा ही उनका पानी बंगाल की खाड़ी तक पहुंचाती है। फरक्का बैराज बनने से पहले गैर बरसाती मौसमों में बिहार में गंगा की औसत गहराई 12-14 मीटर हुआ करती थी जो अब मात्र 6-7 मीटर रह गई है। मतलब गाद भरने से गंगा उथली हो गई है और अब वो सोन, गंडक, बूढ़ी गंडक समेत दर्जनों नदियों का पानी ढो पाने में सक्षम नहीं है।
  2016 में जब बिहार की राजधानी पटना में गंगा की पानी घुसा और पटना और भागलपुर में तकरीबन तीन सौ लोग बाढ़ से मरे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर फरक्का बैराज हटाने की मांग की। लेकिन तबाही को विकास समझने-समझाने वाली 1950 वाली सोच 2016 में भी मौजूद रही और फरक्का के मसले पर केंद्र सरकार ने विचार तक नहीं किया।
  अब उथली होने के साथ गंगा का स्वभाव भी बदला है। ऐसा लगता है कि बरसात के मौसम में गंगा फरक्का में जाकर ठहर जाती है अंजाम ये होता है कि ये अपनी सहायक नदियों का पानी नहीं खीच पाती है और इसक सहायक नदियां उफना जाती हैं। गंगा की सहायक धाराओं के उफनाने से पूरा उत्तर बिहार डूब जाता है।
  हैरानी है कि तबाही की इस वजह पर कोई चर्चा नहीं हो रही। न तो राज्य की विधानसभा में तबाही की मूल वजह पर कोई चर्चा होती है और ना ही लोकसभा में बिहार के सांसद मूल वजह पर कोई चर्चा कर पाते हैं। मीडिया से तो ऐसी उम्मीद ही अब नहीं की जा सकती। उम्मीद बिहार की उसी जनता से की जा सकती है जो हर साल तबाह और बर्बाद हो रही है। यही जनता एक दिन फरक्का बैराज का अंत लिखेगी।    

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...