Tuesday, October 29, 2019

कुपुत्र से गंगा मइया को बचइया


तो डुगडुगी बजा दी गई। शाखा में आने वालों को सूचना दे दी गई कि छठ पूजा से पहले गंगा घाटों को साफ-सुथरा कर देना है। इसके लिए बाजाप्ता मीटिंग बुलाई गई है। प्रमोद काका पुराने शाखाई हैं। हाफ पैंट के ज़माने से शाखा जाते रहे हैं। अब, जब शाखा फुलपैंटिया हो गई तो वो भी फुलपैंट पहनने लगे हैं। अंग्रेजी पैंट, अंग्रेजी शर्ट, अंग्रेजी बेल्ट, अंग्रेजी जूते पहनकर स्वदेशी पर लेक्चर देना उनका सबसे प्रिय काम है। शाखा के हर आदेश का पालन अपना परम धरम समझते हैं प्रमोद काका।
    सो शाम को होने वाली मीटिंग के लिए घुटनी बाबा की मठिया वाली झोंपड़ी की सफाई शुरू हो गई है। सबसे पहले प्रमोद काका ने सुरा भरे बर्तनों को खाट के नीचे रखा और चादर से एक पर्दा बनाकर उनको छुपाया। फिर मठिया के अगल-बगल पड़े मुर्गे-बकरों की हड्डियों को इकट्ठा कर दूर ले गए और कुत्तों को आमंत्रित किया। फिर झाड़ू लगाकर निश्चिंत हुए।
  तो मीटिंग स्थल तैयार। प्रमोद काका सोचने लगे। सोचना उनका प्रिय काम है। अक्सर सोचने लगते हैं। और जब सोचते हैं तो फिर कोई दूसरा काम नहीं करते हैं। तो प्रमोद काका सोच रहे हैं कि गंगा की सफाई, गंगा घाटों की सफाई कैसे ? वहां तो बदबू आती है। वहां को कचरा पड़ा रहता है। वहां तो सड़ांध है। प्रमोद काका सोच ही रहे थे कि तभी उनके नथुनों में गांजा का धुआं भर गया। तंद्रा टूटी तो देखा कि घुटनी बाबा चीलम सुलगाए सामने ही बैठे हैं। प्रमोद काका तुरत झोपड़ी से बाहर निकल आए। लेकिन सोच ने साथ नहीं छोड़ा। सोचते-सोचते सोचा कि गंगा की सफाई क्यों। गंगा तो स्वच्छ और निर्मल हो ही गई होगी। 2014 में काशी पहुंचे गंगा पुत्र ने तो प्रण लिया था कि मां गंगा को निर्मल बनाएगा। देश ने उस गंगा पुत्र को अपना राजा बनाया। राजा ने गंगा की सफाई के लिए अलग मंत्रालय बनाया। राजा ने उस मंत्रालय को गंगा सफाई के लिए ढेर सारा धन दिया। राजकोष की अशर्फियां दी गईं। खज़ाना खोल दिया था गंगा पुत्र ने गंगा की सफाई के लिए। तो फिर गंगा तो स्वच्छ और निर्मल होगी ही। भला राजा की मां मैले-कुचले कपड़ों में किसी मलिन बस्ती में रहती है।
   प्रमोद काका के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अहा! कैसा दृश्य होगा गंगा घाट का। आहा! कितना निर्मल होगा गंगा का पानी। सुपुत्र पाकर फूली समा रही होंगी गंगा मइया।
   प्रमोद काका के पांव खुद चल पड़े। तेज कदम, और तेज कदम और अब तो दौड़ने लगे प्रमोद काका। सीधे गंगा की तरफ दौड़े जा रहे हैं प्रमोद काका। अहा! कैसा सुंदर दृश्य होगा।
  लेकिन ये क्या ? दूर से ही दुर्गंध! कूड़ा-कचरा, सड़ांध। पानी भी बदबूदार। हे गंगा मइया! जिसका बेटा राजा उसकी ऐसी हालत! लानत...लानत...लानत...ऐसे पुत्र को लानत। कहां गईं खज़ाने की अशर्फियां ? कहां गए वो दावे ? मां तो जार-जार रो रही है। हे मां, कुपुत्र-सुपुत्र, कैसा तेरा पुत्र?
  प्रमोद काका फिर सोचने लगे। द्वापर में भी तो था गंगा पुत्र। तीर के बल अंबा, अंबे, अंबालिका को अगवा किया था गंगा पुत्र ने। गंगा पुत्र ही तो था वो जो चुप्पी साधे अपनी पौत्र वधु का चीरहरण देख रहा था। गंगा पुत्र ही तो था वो जो अन्यायियों-बेईमानों की विशाल कौरवी सेना का नेतृत्व कर रहा था। गंगा पुत्र ही तो था वो जो सत्य को पराजित करने के लिए असत्य की विशाल सेना लेकर कुरुक्षेत्र में डटा खड़ा था। हां, गंगा पुत्र ही था वो। गंगा पुत्र...गंगा पुत्र...गंगा पुत्र...। जब द्वापर युगीन गंगा पुत्र ऐसा था तो फिर कलियुगी गंगा पुत्र कैसा होगा! हे छठी मइया कुपुत्र से गंगा मइया को बचइया। प्रमोद काका रो रहे हैं, गंगा मइया रो रही हैं। गंगा पुत्र राज सिंहासन पर बैठा ठहाके लगा रहा है।  

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