Saturday, July 15, 2017

सत्ता लोलुपता और मौक़ापरस्ती के लिए याद किए जाएंगे नीतीश कुमार

बिहार के मौजूदा सियासी घटनाक्रम में नीतीश कुमार को महान बनाने की कोशिशें बीजेपी और जेडीयू दोनों तरफ हो रहीं हैं। तेजस्वी यादव पर लगे आरोपों के ज़रिए नीतीश कुमार को महिमा मंडित करने का अभियान सा चल पड़ा है। ये जेडीयू की सियासी मजबूरी हो सकती है लेकिन बीजेपी की नहीं। बिहार बीजेपी के नेता जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार का क़द बड़ा कर किसका क़द छोटा करना चाहते हैं वो जानें। संभव है 2019 के लिए पीएम कैंडिडेट तैयार करने की सियासी चाल हो। संभव है बीजेपी नेता ही नरेंद्र मोदी का विकल्प पेश करने की तैयारी में हों। ये तमाम संभावनाएं हैं। संभावनाओं से इतर जिस बात पर मेरा दृढ़ विश्वास होता जा रहा है वो है नीतीश की सत्ता लोलुपता और उनकी मौक़ापरस्ती। करप्शन के जिन आरोपों के आधार पर वो तेजस्वी से जवाब मांग रहे हैं उन आरोपों से काफी बड़े आरोप तो लालू प्रसाद पर हैं। चारा घोटाले के आरोपी लालू प्रसाद से गठबंधन तो नीतीश कुमार ने ही किया। 2015 में जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से गठबंधन किया तब उनकी करप्शन के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस वाली नीति कहां चली गई थी ? तब तो नीतीश कुमार ने सिर्फ सत्ता का समीकरण देखा था। फिलहाल जिन आरोपों को ज़रिए तेजस्वी को घेरा जा रहा है अगर वो आरोप सही निकले तो भी तेजस्वी दोषी नहीं होंगे। वो तमाम कारनामे तो चारा घोटाले वाले लालू प्रसाद ने ही किए होंगे। बेटे-बेटी, दामाद और न जाने कितने लोगों के नाम पर लालू ने अकूत धन जुटाया है। 2015 के चुनाव में जब चारा घोटाले के इस बदनाम खलनायक को नीतीश कुमार ग़रीबों और पिछड़ों का मसीहा बता रहे थे तब उनकी ईमनादार वाली छवि चारा खाने गई थी क्या ? बस इतने भर से मैं नीतीश कुमार को मौक़ापरस्त और सत्ता लोलुप नहीं मानने लगा हूं। और भी कई वजहें हैं। 2014 के आम चुनाव से पहले जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश कुमार ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया। कहा कि सांप्रदायिक पार्टी है बीजेपी और सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार हैं। अपनी सत्ता लिप्सा को ये नेता कैसे बलिदान का चोला ओढ़ा देते हैं ये देखिए। क्या बाबरी विध्वंस सांप्रदायिक उन्माद की घटना नहीं थी ? बाजपेयी जी ने कहा ज़मीन को समतल करना होगा। आडवाणी ने रथयात्रा की और भीड़ जुटाई। देश भर में दंगे हुए हज़ारों लोगों का कत्ल हुआ। 1992 की ही घटना है ये। 2004 में नीतीश कुमार उसी अटल-आडवाणी के साथ खड़े हो गए। तब कहां थी नीतीश जी की धर्मनिर्पेक्षता ? केंद्र में मंत्री का पद भोगा। उसी बीजेपी के साथ 2005 से लेकर 2015 तक बिहार की सत्ता भोगी। 2015 में जब 10 साल पुरानी सरकार से जनता की बेरुखी की ख़बर मिली तो तुरंत लालू प्रसाद के एमवाई समीकरण से चिपक गए और बीजेपी को सांप्रदायिक बताने लगे। यही है उनकी मौक़ापरस्ती और सत्ता लोलुपता। जीतन राम मांझी को इस्तीफा देने पर मजबूर करने वाले नीतीश कुमार कोई एक ठोस वजह बताएं कि क्यों मांझी की सरकार गिराई गई? दरअसल सत्ता का आदि हो चुके नीतीश कुमार एक पल भी बिना सत्ता के नहीं रह पा रहे हैं। और तमाम सियासी चालें उनकी मौक़ापरस्ती और सत्ता लोलुपता की मिसाल ही हैं। वरना तेजस्वी के ज़रिए आपना दामन साफ दिखाने वाले नीतीश चारा घोटाले के कुख्यात आरोपी लालू प्रसाद से गठबंधन नहीं करते। अगर जेजस्वी करप्ट हैं तो लालू करप्ट के बाप हैं।

Wednesday, July 12, 2017

हत्यारे के आंसू

हम जिस समय में जी रहे हैं
उस समय में हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा है
हत्यारों का समूह तालियां पीट रहा है
मुट्ठियां लहरा रहा है, बांहें फड़फड़ा रहा है
हम पर थोप रहा है वो सारे इल्ज़ाम
हमारे बीच के ही किसी शख्स की हत्या करके
वो हमें ही ठहराना चाहता है हत्या का जिम्मेदार
हम खून से लथपथ हैं और वो नारे लगा रहा है
हम डर नहीं रहे हैं तो फिर वो किसी और का कत्ल कर रहा है
ये मरना हमें मंजूर है लेकिन उससे डरना मंजूर नहीं है
डरने और जीने के बीच बिना डरे मौत अच्छी है
दाभोलकर, पनसारे से पहले भगत सिंह, आज़ाद और गांधी
उनसे पहले सुकरात और ईशा मरे, वो भी बिना डरे
तब भी खूब हुईं थीं डराने की कोशिशें
तब भी हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा था
अब भी हत्यारा हत्याओं पर आंसू बहा रहा है
हत्यारों का समूह तलियां बजा रहा है
......असित नाथ तिवारी...

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...