Thursday, November 22, 2018

सबका साथ सबका विकास: पेशाब पवित्तर हो गया

काम न पूछो नेता की पूछ लीजिए जात...क्योंकि भारतीय राजनीति में जाति वो मारक मंत्र है जिसे फूंक देने भर से तमाम ज़रूरी मुद्दे मारे जाते हैं....अगर मंत्र की मारक क्षमता से कुछ बच भी गए तो फिर उन्हें धर्म वाले सिद्ध मंत्र से मार दिया जाता है..और ऐसे में स्कूल, अस्पताल, नौकरी, रोजगार, भूख जैसे तामाम मसलों पर जवाब की जरूरत ही नहीं पड़ती ..क्योंकि परलोक के सुख के सपनों में भटकाई जा रही जनता इस लोक के सारे कष्ट अपनी जाति के लिए भोग लेना चाहती है...सो सत्ता के सुखकाल में पूंजिवादियों के लिए दिन-रात एक कर देने वाली राजनीति चुनावी काल में जातिवाद के लिए रात-दिन जुट जाती है..
छितराई जनता उसे अच्छी नहीं लगती इसलिए वो उसे गोलबंद करने निकल पड़ती है.. दिलतों को गोलबंद करती है, पिछड़ों को गोलबंद करती है, अति पिछडों को गोलबंद करती है, सवर्णों को गोलबंद करती है...गोलबंद करते-करते जब समीकरण उलझने लगने लगता है तो फिर बांटती भी है..दिलतों को दलित-महादलित में बांटती है, सवर्णों को ठाकुर-ब्राह्मण में बांटती है, इसी तरह से पिछड़े-अति पिछड़े को भी बांटती है...बांट-छांट कर उस बंटवारे को गोलबंद करने के लिए राजनीति फिर सम्मेलन करती है... महादलित सम्मेलन, दलित सम्मेलन.. फिर इसी तर्ज पर पिछड़ा, अति पिछड़ा होते हुए क्षत्रीय और ब्राह्मण सम्मेलन भी यही राजनीति करती है...और सबसे वादे एक ही होते हैं..ठीक वैसे ही जैसे साहेब जिस राज्य में जाते हैं उसे देश का नंबर वन राज्य बनाने का वादा करते हैं...
तो बीजेपी सबका साथ सबका विकास तब ही कर पाएगी जब वो तमाम जातियों के सम्मेलन कर लेगी..पिछले साढ़े चार साल के शासन काल में बीजेपी ने जो सीखा वो ये कि जातियों के सम्मलेन के जरिए विकास वाला मंत्र सिद्धी पाएगा.. और फिर जाति वाली राजनाति ही सत्ता को सिद्ध कर पाएगी.. जैसे बीएसपी, सपा, राजद, जदयू, रालोद के जातीय समीकरण हैं ठीक वैसा ही समीकरण गढ़े बिना बीजेपी भी सबका साथ-सबका विकास कर नहीं पा रही है.. तो ठीक चुनाव से पहले जाति वाला टोटका याद आ गया..सो अब तैयारी शुरू है.. तो फिर काम न पूछो नेता की पूछ लीजिए जात
जाति-जाति के इस खेल में समाज के भीतर तो खुल कर जाति-जाति चल जाती है..लेकिन सफेद कॉलर समाज में कहीं जातिवाद की घटिया सोच पर सवाल ने उठ जाएं सो पेशाबघर की जगह वाशरूम शब्द का इस्तेमाल करने वलों ने इसे सोशल जस्टिस और सोशल इंजीनयरिंग कहना शुरू कर दिया..वो क्या है न अंग्रेजी में बोल देने से पेशाब पवित्तर हो जाता है... और जातिवाद इंजीनियरिंग और जस्टिस का ऊंचाई पा जाता है.. तो फिर बोलिए काम न पूछो नेता की पूछ लीजिए जात

Monday, November 19, 2018

चाय वालों की हालत तो पता है अलाव वालों का क्या होगा ?

मुद्दों की मारामारी के बीच नोएडा के सेक्टर 63 में चाय बेचने वाले  विनोद, छाया और पूजा ने अपनी परेशानियों को बयां किया तो लगा कि आप तक इनकी बातें पहुंचाई
जानी चाहिए... चायवालों को अयोध्या के साथ जोड़ दिया जाए तो अभी चैनल के दफ्तर के
बार पार्टी प्रवक्ताओं की भीड़ लग जाएगी और हर प्रवक्ता इस मसले पर ज्यादा से
ज्यादा बोलने लगेगा...लेकिन चाय वालों की पीड़ा पर अब कौन बोले.. चाय पर चर्चा तो
बीते सियासी वक्त की बात हो गई है

    यही हाल किसानों का
है..मीडिया के हिंदू-मुस्लिम चरित्र के बावजूद किसानों को अभी लगता है कि न्यूज चैनल
पर उनकी बात आ जाए तो उनकी समस्याएं खत्म हो जाएंगी.. यो भरोसा अगर है तो इसका
स्वागत है..गावों में जाकर देखिए अनाज और आदमी दोनों छितराए हुए हैं... न तो दाम
मिल रहा है और ना ही काम..  2014 से लेकर
2015 के बीच तक चाय वालों पर किस्म-किस्म के कार्यक्रम न्यूज चैनलों पर दिखाए
गए..क्या चाय वालों की हालत बदली...नहीं न...तो अब अलाव पर चर्चा की तैयारी
है..उत्तर प्रदेश में जहां चीनी मिल मालिकों पर गन्ना किसानों का सबसे ज्यादा बकाया
है और जिस पश्चिमी यूपी के किसान कुछ दिनों पहले ही दिल्ली की सल्तन से दंगल कर
चुके हैं अब उन लोगों के साथ बीजेपी अलाव पर चुनावी चर्चा करेगी...इस अलाव पर
सियासी रोटियां तो सेंकी जा सकेंगी लेकिन क्या किसानों की स्थिति भी बदलेगी...चाय
वालों की कहानी हमारे सामने है..
सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए ये मुद्दे एक दूसरे की निंदा करने
भर के लिए हैं मगर कोई भी ठोस प्रस्ताव जनता के बीच नहीं रखता है कि वाकई क्या
करने वाला है
जो कर रहा है वो क्यों चूक जा रहा है. कई बार लगता है कि हमारे
राजनेता
हमारे अर्थशास्त्रीसिस्टम में बैठे लोगों ने ज़िद कर ली है कि इन
बुनियादी सवालों पर बात नहीं करना है
मीडिया को हर रात कोई न कोई थीम मिल जाता हैसब कुछ इसी थीम की
तलाश के लिए हो रहा है. इसके बाद भी भारत के भीतर से तस्वीरें उथला कर सतह पर आ जा
रही हैं.
..जवान जहां खड़े थे वहां से पीछे धकले जा
रहे हैं और किसान जहां पड़े थे वहीं पड़े दिख रहे हैं.. बस सियासत की अलाव पर सब 
भुने जा रहे हैं 

1611 BIG BULL WITH ASIT NATH

https://www.youtube.com/watch?v=UzpkYKotYxM

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...