समाजवादी परिवार’विवाद’
2017 की शुरुआत बड़ी सियासी घटना से हुई। लोगों ने वो दिन भी देखे
जब समाजवादी पार्टी की अन्दरुनी कलह सड़क पर आ गई। समाजवादी पार्टी में परिवार
विवाद यूं तो कई सालों से ढके-छिपे चला आ रहा था लेकिन, यह मुखर तब हुआ जब सपा में मुख्तार अंसारी की एन्ट्री को लेकर अखिलेश
और शिवपाल के बीच मतभेद गहरा गए। इसके बाद तो रार बढ़ती चली गई। पहले शिवपाल ने
अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाया और खुद अध्यक्ष बन गए। तो एक मौका ऐसा भी
जब सपा से अखिलेश और रामगोपाल बाहर हो गए। निर्णायक मोड़ तो तब आया जब 1 जनवरी 2017 को मुलायम को
हटाकर अखिलेश खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए और इस मुहिम में रामगोपाल ने
अखिलेश का साथ दिया। पार्टी की कलह के चक्कर में सपा सत्ता से बाहर हो गई। हालांकि
अब सब एक तो हो गए हैं लेकिन, सबके सुर आज भी अलग अलग ही हैं।
मई 2017
सहारनपुर में ‘रावण’ की आग
देश ने मई 2017 में उत्तर
प्रदेश को जातीय संघर्ष की आग में झुलसते हुए देखा। सहारनपुर से 25 किलोमीटर दूर
शिमलाना गांव में 5 मई 2017 को महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन था। इसमें शामिल
होने के लिए पास के शब्बीरपुर गांव से कुछ लोग शोभा यात्रा निकाल रहे थे। विवाद की
शुरुआत इसी घटना से हुई। जिसके बाद हजारों की संख्या में पहुंचे एक समुदाय के
लोगों ने दलितों के घरों में आग लगा दी। इसके बाद तो सहारनपुर सुलगने लगा। लेकिन
ये जातीय संघर्ष सिर्फ सहारनपुर तक नहीं थमा। धर्म परिवर्तन से होते हुए इस संघर्ष
की लपटें दिल्ली के जंतर-मंतर तक पहुंचीं। इस घटना से भीम आर्मी के संयोजक
चंद्रशेखर सुर्खियों में आए। चन्द्रशेखर के समर्थन में बड़ी तादाद में लोग
जंतर-मंतर पहुंचे और विरोध-प्रदर्शन हुए। सहारनपुर की इस आग में पूरा प्रदेश सुलगने
लगा और एक समय ऐसा आया जब सहारनपुर की आंच से दिल्ली और लखनऊ भी तपने लगे थे।
जून 2017
सड़क पर अन्नदाता
जून 2017 में देश के
सामने सियासत की वो शर्मनाक तस्वीर आई जिसने सबको हैरत में डाल दिया। इस घटना ने
इंसानियत और मानवता पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और
राजस्थान में किसान आंदोलन हुए। अन्नदाता को अपने हक के लिए सड़क पर उतर कर
आंदोलित होना पड़ा। जरा सोचिए क्या टीस रही होगी उन किसानों के मन
में जो सड़कों पर अपनी उगाई फसल को फेंकने को मजबूर हो गए। लेकिन भावनाओं को
सियासत के चूल्हे में झोंक चुकी सरकार को ये टीस नजर नहीं आई और हद तो तब हो गई जब
मध्य प्रदेश में अन्नदाता पर गोलियां चलाई गईं। इंसानियत को छलनी किया गया। फिर
क्या सियासत भी गरमाई। सड़क का ये आक्रोश संसद तक पहुंचा।. लेकिन हमेशा की तरह
अन्नदाता अपनी मुश्किलें लिए वहीं का वहीं रह गया।
ड्रैगन से दो-दो
हाथ
देश ने वो दिन भी देखा जब
भारत और चीन के बीच बढ़ते गतिरोध ने दोनों देशों को युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा
कर दिया। 18 जून 2017 को भारत-चीन के बीच सड़क विवाद को लेकर गतिरोध की शुरुआत हुई।
भारतीय सैनिकों ने भारत-चीन सीमा पार कर पीएलए को डोकलाम में सड़क बनाने से रोक
दिया था। इस मसले पर दोनों देशों की तरफ से भरपूर बयानबाजी देखने को मिली। भारत-चीन
सरहद पर सड़क से शुरू हुआ ये विवाद संसद तक पहुंच गया और दोनों देशों की सियासत
गरमा गई। इतना ही नहीं डोकलाम विवाद अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया और जापान,
अमेरिका जैसे देशों की तरफ से भी डोकलाम विवाद सुलझाने की पहल की जाने लगी। हालांकि
आज भी डोकलाम को लेकर दोनों देशों के बीच गतिरोध पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है।
पहाड़ के दामन पर
कलंक
आपने महाराष्ट्र,
राजस्थान, उत्तरप्रदेश से तो किसानों की आत्महत्या के बहुत सारे मामले सुने और देखे
होंगे लेकिन, 2017 ऐसा साल रहा जब उत्तराखंड के दामन पर भूमिपुत्र की खुदकुशी का
कलंक लगा। उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार दो किसानों ने खुदकुशी कर ली। इन
किसानों की मौत के बाद सियासत गर्मा गई। क्योंकि कर्ज के दबाव के
चलते सूबे में किसान खुदकुशी का यह पहला मामला था। उत्तराखंड के इतिहास में पहली
बार ऐसा हुआ था। लिहाजा विरोध प्रदर्शन भी हुए। सत्ता में बैठे लोगों पर सवाल उठे
और उत्तराखंड के दामन पर लगा ये कलंक सुर्खियां बन गया।
GST: रौलबैक का रिकॉर्ड
1 जुलाई 2017। ये वो तारीख है जब देश में एक कर
एक व्यवस्था को लागू कर दिया गया। जीएसटी को इतनी जल्दबाज़ी में लागू किया गया कि
व्यवसायी वर्ग मुश्किलों में घिर गया। इतना ही नहीं इससे कई ज़रूरी चीजें महंगी हो
गईं। बाद में सरकार को इसमें कई संशोधन करने पड़े। विपक्ष ने इसे रोलबैक कानून
बताया। बाद में राहुल गांधी ने इसे गब्बर सिंह टैक्स के नाम से नवाजा
रायसीना में
रामनाथ
देश ने जुलाई 2017 में राष्ट्रपति
के चयन को लेकर जिस तरह का घमासान देखा उस तरह का शायद ही इससे पहले कभी देखा होगा।
लालकृष्ण आडवाणी के राष्ट्रपति बनने की सारी अटकलों को खारिज करते हुए एनडीए ने
रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाई। तो वहीं कांगेस ने मीरा कुमार को उम्मीदवार के
तौर पर उतारा। फिर क्या दोनों दलों ने मिलकर राष्ट्रपति के चुनाव को दलित बनाम
दलित का रुप दे दिया। राजनीति में समर्थन और विरोध का दौर शुरू हो गया। लेकिन इस
सियासी उठापटक के बीच रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति चुने गए।
नीतीश: विकास पुरुष से पलटू तक
देश ने वो दिन भी देखा जब मौकापरस्ति की राजनीति
ने बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया। चंद घंटों में ही बिहार की राजनीति ने
सियासी उसूलों की पलटमारी देखी। सीबीआई के छापे से शुरू हुआ सियासी घमासान तेजस्वी
के इस्तीफे पर आकर अटका। लेकिन सबकी उम्मीदों के विपरीत नीतीश कुमार ने एक ऐसा
निर्णय लिया जिसकी उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी। लेकिन वो कहते हैं न कि सियासत
के रंग भला कौन समझ सकता है। सियासत में दोस्त का दोस्त भले ही दोस्त न हो लेकिन
दुश्मन का दुश्मन दोस्त जरुर होता है। बिहार की सियासत में मौकापरस्ति की राह पर
चलते हुए महागठबंधन को दरकिनार करते हुए नीतीश ने आरजेडी से गठबंधन तोड़ दिया और
रातों-रात भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बना ली।
बीआरडी का ‘बाल श्मशान’
आपने जनाजों पर फूल चढ़ते
हुए तो बहुत देखे होंगे लेकिन, देश का दुर्भाग्य कहिए कि देश ने वो दिन भी देखे जब
फूलों के जनाजे निकले। जी हां फूलों के जनाजे। याद होगा आपको गोरखपुर का बीआरडी
कांड। जब बीआरडी हॉस्पिटल बाल शमशान में तब्दील हो गया था। ऑक्सीजन की कमी के चलते
मासूमों की सांसें थम गईं थीं। लेकिन इन थमी सासों पर सियासत शुरू हो गई। विपक्ष
सवाल पूछता रहा तो सत्तापक्ष सवालों से बचता रहा।
तीन तलाक से
तलाक..तलाक
देश के सबसे जटिल सामाजिक
मुद्दों में से एक तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान बेंच ने अपना
फैसला सुनाया और एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया दिया। कोर्ट के इस
फैसले के बाद समाज में बड़े बदलाव की उम्मीद तब जगी जब कोर्ट ने केंद्र सरकार से
इस मामले में स्पष्ट कानून बनाने की अपील कर दी। रूढ़ीवादी मुस्लिम संगठनों को बात
भले ही नागवार गुजरी लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम समाज ने इसका स्वागत किया। हालांकि
सामाजिक बदलाव की ये पहल सामाजिक मुद्दा कम रही सियासी ज्यादा हो गई।
सिसकती उम्मीदों की त्रासदी
सितबंर 2017 में म्यांमार
के मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद म्यांमार
के सुरक्षा बलों ने बड़ी कार्रवाई शुरू की। सुरक्षा बलों ने मौंगडोव जिले की सीमा
सील कर दी और रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक व्यापक अभियान चलाया। सुरक्षा बलों
की कार्रवाई में सौ से ज्यादा लोग मारे गए। भारत में इस मसले ने सियासी रंग तब
लिया जब भारत सरकार ने इनको सुरक्षा के लिहाज से खतरा बताते हुए रोहिंग्या को शरणार्थी
मानने से इंकार कर दिया।
गोरक्षकों की गुंडागर्दी
हिंदू धर्म में गाय को
मां का दर्जा दिया गया है। इतना ही नहीं गाय की पूजा भी की जाती है। लेकिन इसे
भारतीय सियासत का दोहरा चेहरा ही कहेंगे कि यहां गाय को भी सियासी मुद्दा बना लिया
गया। और फिर क्या गोरक्षा को नाम पर मच गया सियासी गदर। जगह-जगह से गोरक्षकों की
गुंडागर्दी सामने आने लगी। गोरक्षा के नाम पर किसी को बुरी तरह से पीटा गया तो किसी
को मौत के घाट उतार दिया गया। गोरक्षा को लेकर अराजकता और हिंसा देखने को मिली।
सियासत गरमाई तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने चेतावनी द। बावजूद इसके गोरक्षा के नाम
पर गुंड़ागर्दी बदस्तूर जारी रही।
भाजपा का भगवा
प्रसार
योगी आदित्यनाथ की छवि
कट्टर हिन्दुत्व की मानी जाती है। योगी के कपड़े हों, योगी की बॉडी लैंग्वेज या
फिर योगी के बयान सब में प्रखर हिन्दुत्व की झलक साफ दिखाई देती है। पहले यूपी के
लिए बीजेपी ने योगी को चुना। इसके बाद दूसरे राज्यों में प्रचार और 2019 के अभियान
के लिए पार्टी की पहली पसंद बन गए योगी आदित्यनाथ। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने योगी को जन रक्षा यात्रा में शामिल होने के लिए
केरल भेजा। तो वहीं गुजरात चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान योगी की भागीदारी बढ़-चढ़कर
देखने को मिली। यूपी से बाहर योगी के प्रचार अभियान को भाजपा के भगवा प्रसार के
रुप में देखा गया। माना गया कि योगी के जरिए बीजेपी अपनी हिंदुत्व की छवि को और
निखारना चाहती है।
इतिहास से
जोर-जबर्दस्ती
संजय लीला भंसाली की
फिल्म पद्मावती को 1 दिसंबर को रिलीज किया जाना था। लेकिन पद्मावती को लेकर जिस
तरह की कान्ट्रोवर्सी पूरे देश में देखने को मिली उसने बॉलीवुड से लेकर सियासी
हलकों तक में हलचल मचा दी। राजस्थान से गुजरात तक, मुंबई से बेंगलुरु तक, राजनीतिक
दल से लेकर पूर्व राजघराने तक, सिविल सोसायटी से लेकर सामाजिक संगठन तक हर जगह
विरोध के स्वर उठे तो फिल्म की रिलीज भी टल गई। फिल्म पद्मावती को लेकर जमकर
सियासत और बयानबाजी देखने को मिली...
राहुल का सॉफ्ट
हिन्दुत्व
हाल ही में हुए गुजरात चुनाव के दौरान जहां एक
तरफ बीजेपी ने अपनी कट्टर हिन्दुत्व की छवि को आगे रखा तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस
ने अपनी सॉफ्ट हिन्दुत्व की छवि को अपना हथियार बनाया। पूरे
चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने किसी भी मुस्लिम मुद्दे की कोई बात नहीं की।
लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान कई मंदिरों का दौरा कर सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ने
के साफ संकेत दे दिए। बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड के जवाब में राहुल गांधी ने सॉफ्ट
हिंदुत्व का रुख अख्तियार कर लिया। पूरे गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने 27
मंदिरों के दर्शन किए। हालांकि कांग्रेस गुजरात की सत्ता तो हासिल नहीं कर पाई
लेकिन, इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने अपने सॉफ्ट हिन्दुत्व के चलते बीजेपी के
गढ़ में ही बीजेपी को कड़ी टक्कर दे डाली और शायद कांग्रेस को सॉफ्ट हिन्दुत्व के
जरिए 2019 का चुनावी एजेंडा भी मिल गया।
कांग्रेस में राहुल राज
2017 के अंतिम पड़ाव की
जो सबसे बड़ी सियासी सुर्खी बनी वो थी राहुल की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में
ताजपोशी। यूं तो गांधी परिवार पर हमेशा से ही परिवारवाद के आरोप लगते आए हैं लेकिन,
राहुल के अध्यक्ष बनने के साथ ही इन आरोपों को एक बार फिर से हवा मिल गई। आवाजें
सियासी गलियारों से उठीं तो दबे हुए स्वर कांग्रेस के भीतर से भी सुनाई पड़ने लगे।
बावजूद इसके राहुल को कांग्रेस की कमान सौंप दी गई और कांग्रेस में राहुल युग की
शुरुआत हो गई।
2 जी मामला
वो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला
जिसने कांग्रेस सरकार की नींद उड़ा दी थी। वो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला जिसने
कांग्रेस के बड़े नेताओं के दामन पर घोटाले के दाग लगा दिए थे। वो 2जी स्पेक्ट्रम
घोटाला जिसको बीजेपी ने अपना सियासी हथियार बनाया। और वो 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला
जिसकी वजह से कहीं न कहीं कांग्रेस को अपनी सत्ता भी गवानी पड़ी थी। उसी 1.76 लाख
करोड़ रुपये के 2जी घोटाले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। देश की सबसे बड़ी
जांच एजेंसी आरोपियों को खिलाफ सबूत जुटाने में बुरी तरह से विफल रही।