यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीजेपी की
राजनीति में राष्ट्रीय फलक एक सितारे की तरह उभरे हैं। यही वजह है कि चाहे केरल की
जनरक्षा यात्रा हो या गुजरात और हिमाचल प्रदेश का चुनाव हो सभी जगह योगी आदित्यनाथ
की अहम भूमिका रही। बीजेपी में योगी के बढ़ते कद को संघ भी स्वीकार करता है। और
फिर यहीं से पार्टी और संघ की बिसात पर कई मोहरे आपस में टकराते दिख रहे हैं।
भोपाल
में हुई आरएसएस की कार्यकारी मंडल की बैठक में केरल, गुजरात और हिमाचल के चुनाव
में स्टार प्रचारकों पर चर्चा हुई इस बैठक में हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय योगी आदित्यनाथ
को हिंदुत्व का राष्ट्रीय चेहरा करार दिया गया। इसके बाद योगी ने अक्टूबर में
गुजरात गौरव यात्रा से चुनावी बिगुल फूंका। गुजरात के लोगों ने मोमबत्तियां जलाकर योगी
का स्वागत किया। यूपी के निकाय चुनाव में योगी की करिश्माई छवि का नतीजा यह रहा कि
16 में 14 मेयर बीजेपी के बने। यूपी निकाय चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ ने गुजरात
और हिमाचल का रुख किया। गुजरात के 35 बीजेपी प्रत्याशियों के समर्थन में सीएम योगी
ने रैलियां की इनमें से 25 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। हिमाचल में भी योगी दो
दिन ठहरे। ताबड़तोड़ कई जनसभाएं कीं। योगी ने यहां जिन-जिन बीजेपी प्रत्याशियों के
लिए रैली को संबोधित किया उन सबने जीत दर्ज की। योगी अब बीजेपी के बेहद पॉपुलर
लीडर बन चुके हैं। यूपी का सीएम बनने के 6 माहीने के भीतर योगी बीजेपी का तीसरा
सबसे ताकतवर चेहरा बनते नज़र आ रहे हैं। गुजरात और हिमाचल चुनाव के अलावा योगी को मध्य
प्रदेश में नर्मदा बचाओ यात्रा में भी बुलाया गया।
संगठन में योगी आदित्यानाथ के बढ़ते कद के राजनैतिक मायने भी तलाशे जाने
चाहिए। बीजेपी में अटल-आडवाणी का दौर अभी सबको याद है। पार्टी में नंबर वन की
कुर्सी पर अटल बिहारी बाजपेयी थे तो नंबर टू की कुर्सी पर लालकृष्ण आडवाणी। बीजेपी
की राजनीति का ये बड़ा सच ये है कि पार्टी हमेशा मजबूत सेकेंड लाइनर तैयार रखती
है। अटल बिहारी बाजपेयी के बाद लालकृष्ण आडवाणी तक पार्टी में सेकेंड लाइनर की
परंपरा रही। लेकिन, अटल जी के राजनैतिक संन्यास के बाद जब पार्टी में आडवाणी नंबर
वन की कुर्सी पर आए तो सेकेंड लाइनर को लेकर भ्रम की हालत पैदा हुई। आडवाणी अपने
भरोसेमंद मुरली मनोहर जोशी को आगे कर चलते रहे और पार्टी का कट्टर हिंदुवादी तबका
तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करने में लगा रहा। 2009 के
लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की एक वजह यह भी थी।
2013
आते-आते पार्टी में मोदी समर्थकों की ताकत चरम पर पहुंच गई और आडवाणी जोशी की
जोड़ी किनारे लगा दी गई। तब एक दूसरी तिकड़ी सामने आई। ये तिकड़ी थी मोदी-शाह-जेटली।
2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, अरुण जेटली वित्त मंत्री बने और अमित शाह
पार्टी का अध्यक्ष बने। लेकिन, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की
राजनीति में योगी आदित्यनाथ का कद जिस तरह से बढ़ा है उसने बिसात पर बादशाह के बाज
वजीर बनने की जंग तेज कर दी है। ये तो तय है कि पार्टी में बादशाह की कुर्सी पर
अभी नरेंद्र मोदी ही होंगे लेकिन, वजीर कौन होगा। फिलहाल तीन नाम हैं अमित शाह,
अरुण जेटली और योगी आदित्यनाथ। पता नहीं किस प्यादे की चाल का कौन शिकार हो जाए और
कौन मात खा जाए।
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