आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
आदरणीय इसलिए क्योंकि आप देश के प्रधान मंत्री हैं। पूरे देश में आज डूबते
सूरज को अर्घ्य दिया जा रहा है और मैं आपको दूसरा खुला पत्र लिख रहा हूं।
प्रधानमंत्री जी, 2014 के लोकसभा
चुनाव के दौरान आपने जो घोषणापत्र जारी किया था उनमें किए गए कुछ वादों की याद
मैंने अपने पहले खुले पत्र के जरिए दिलाई थी। बाकी बचे कुछ और वादों की याद दिलाने
के लिए दूसरा खुला पत्र लिख रहा हूं।
प्रधानमंत्री जी, आपने
घोषणा पत्र में देश से वादा किया था कि सरकार बनने के बाद महिलाओं के लिए विधान सभाओं
और संसद में 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करेंगे। सर, अब तो आपकी सरकार बने चार साल
हो गए उस वादे का क्या हुआ बस ये पूछना था।
आप अगर भूले न हों तो आपको ये भी
याद होगा कि आपने घोषणा पत्र में कहा था कि पुलिस स्टेशनों को महिलाओं के अनुकूल
बनाया जाएगा और बड़ी तादाद में महिला सिपाही और अधिकारी बहाल किए जाएंगे।
सर, बस इतना बता दीजिए कि बड़ी तादाद
में नियुक्त हुई ये महिला पुलिस अधिकारी किन थानों में तैनात हैं और बड़ी तादाद
में नियुक्त हुई महिला सिपाही आजकल कहां ड्यूटी पर लगाई गईं हैं ? या फिर ये वादा भी जुमला ही
था ?
सर, आपने तब ये भी कहा था कि महिलाओं के
विशेष हुनर प्रशिक्षण के लिए कारोबारी प्रशिक्षण पार्क बनवाएंगे। सर बहुत मन हो
रहा हो वो वाला पार्क देखने का। मन हो रहा है कि अपने गांव-टोले की महिलाओं को भी
वो वाला पार्क दिखा आऊं। बस आप उस पार्क का पता बता दीजिए। देश को भी तो पता चले
कि आपने कारोबारी प्रशिक्षण पार्क का नायाब प्रयोग दुनिया के सामने रखा है। या ये
भी जुमला ही निकला सर ?
सर, महंगाई के खिलाफ जब
आपने नारा दिया तो मेरा मन गार्डेन-गार्डेन हो गया था। ऐसा लगा था कि अब हर
ख्वाहिश अपनी जेब में। महंगाई का क्या हुआ ये तो आपको पता ही है। लेकिन तब जो वादा
आपने किया था उसका क्या हुआ ये पता नहीं चला। आपने कहा था दाम न बढ़ें इसके लिए
अलग से कोष की व्यवस्था करेंगे। जमाखोरी, कालाबाजारी रोकने के लिए विशेष अदालतें
बनाएंगे।
सर, अब तक ना उस कोष का पता चला
जिससे महंगाई रुकनी थी और ना ही वो अदालतें मिलीं जिनसे कालाबाजारी और जमाखोरी
रुकनी थी। मतलब ये वादे भी.....
सर, ये दूसरा खुला पत्र है। पहले
पत्र का जवाब तो अब तक नहीं आया। उम्मीद है कि दूसरे पत्र का जवाब आएगा। नहीं भी
आया तो मैं निराश होने वाला नहीं हूं। आप बार-बार कहते हैं कि देश को निराश नहीं
होना चाहिए। लिहाजा मैं बिना किसी निराशा के तीसरा खुला पत्र भी लिखूंगा। मैं
जानता हूं कि आप दिन-रात देश के लिए काम करते रहते हैं, यात्राएं करते रहते हैं।
उम्मीद है बचे हुए इन चंद महीनों में ही आप वो तमाम वादे पूरे कर लेंगे जिनके लिए
आपने देश से 60 महीने मांगे थे।
आपके देश का नागरिक
असित नाथ तिवारी