अयोध्या।धर्मनगरी
अयोध्या। भारत की राजनीति का टर्निंग टर्मिनल अयोध्या। भारतीय समाज को
जोड़ता-बांटता अयोध्या। राम की नगरी अयोध्या। बाबरी विवाद की ज़मीन अयोध्या। आस्था
का सैलाब अयोध्या। सियासत की सरयू अयोध्या। पौराणिक कथाओं का अयोध्या। मौजूदा
तनावों का अयोध्या। अयोध्या महज किसी जगह का नाम नहीं है। भक्तों के लिए अयोध्या
आस्था है। राजनीति के लिए अयोध्या आसरा है। और इसी अयोध्या में मुस्लिम राष्ट्रीय
मंच का जुटान हो रहा है। राम की नगरी में कुरान की आयतें पढ़ी जाएंगी। सरयू के घाट
पर अजां होगी। दावा है कि सदभावना की खातिर संघ परिवार से जुड़ा राष्ट्रीय मुस्लिम
मंच कुरान की तिलावत करेगा। तो कुरान की तिलावत उसी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से
जुड़ा मुस्लिम मंच करेगा जिस संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद ने 90 के दशक में राम
मंदिर आंदोलन खड़ा किया। अक्टूबर 1984 में वीएचपी ने अयोध्या
में रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। 1989 में
वीएचपी ने विवादित जगह के नजदीक ही राम मंदिर की नींव रख दी। जून 1989 में बीजेपी ने पालमपुर में बाजाप्ता प्रस्ताव पारित कर खुद को राम मंदिर
आंदोलन का अगुआ घोषित कर लिया। अब वीएचपी पीछे थी बीजेपी आगे। 1984 में जो बीजेपी लोकसभा में महज 2 सांसदों वाली पार्टी
थी 1991 में वही पार्टी 120 सीट जीतकर
देश में कांग्रेस का विकल्प बन गई।1992 में विवादित ढांचा गिरा दिया गया।
तो
इतिहास के पन्नों को पलटते हुए वर्तमान पर निगाह डालिए। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच
गुरुवार को अयोध्या में तिलावत की शुरुआत कर रहा है और इससे ठीक दो दिन पहले
दुनिया के कई देशों से आए अप्रवासी भारतीयो की एक टोली विश्व हिंदू परिषद की बैठक
में शामिल होकर अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग कर चुकी है।
तो अब अल्लमाए इक़बाल को याद कीजिए। है राम
के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज़...अहल-ए-वतन समझते हैं इसको इमाम-ए-हिंद। तो नाज है
राम के वजूद पर फिर विवाद क्यों है राम की जन्मभूमि पर.। तो क्या स्वागत करें
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की इन कोशिशों का ? ठहरिए! पहले ये तो देखिए की मंच की ये कोशिशें ईमानदार हैं या फिर सियासी चालें
हैं। अगर ये राजनीति की बिसात है तो सावधान हो जाइए। सावधान! क्योंकि, वो फिर अयोध्या लौट आए हैं। और अगर ये
सदभावना की ईमानदार कोशिश है तो फिर गले लगाइए। कदम से कदम मिलाइए। आप भी अदावत को
तौबा कीजिए। आप भी तिलावत कीजिए। बाबर की बात छोड़िए।1992 को भी अब भूल जाइए। अदम
गोण्डवी को याद कीजिए ‘हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है… दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए.. ग़र ग़लतियाँ बाबर
की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए’