Monday, September 25, 2017

तेरे जाने के बाद

भरे हुए समंदर सा खालीपन महसूस होता है
जब मुट्ठी से सरक जाती है वक्त की रेत
आंखों के कोरों पर जब दिखता है समंदर
ठीक तब ही गहरी आंखों में दिखता है खालीपन
और जहां खारा होता है समंदर
वहीं पुतलियों पर जम जाती है रेत
और फिर दूर किनारों पर दिखती है तुम्हारी छाया
जैसे दूर कहीं बोलती हो कोयल
या फिर आसमान के एक कोने में हो शुकवा तारा
और फिर वहां तक पहुंचने के लिए
हृदय की उत्ताल लहरें बनतीं हैं ज्वार
लेकिन बिखर जातीं हैं
तुम्हारी बेरुखी के किनारों से टकराकर
ग़ायब हो जातीं हैं ठीक वैसे ही
जैसे आख़िरी बार चमकने के बाद
ग़ायब हो जाता है पुच्छल तारा
फिर एकाएक मोबाइल फोन पर बजने लगता है फिल्मी गाना
'तड़प-तड़प के इस दिल से आह निकलती रही'
गाने के हर एक बोल के साथ गहरा होता जाता है समंदर का खालीपन
भरे मन से एक बार फिर तटों से टकराती हैं हृदय की लहरें
एक बार फिर बिखरता है पुच्छल तारा
.....असित नाथ तिवारी....
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