tag:blogger.com,1999:blog-51127503667072600532024-03-14T02:41:36.969-07:00चौथी नज़रAsit Nath Tiwari का ब्लॉगASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.comBlogger183125tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-44055930570768971602021-01-29T00:50:00.005-08:002021-01-29T00:50:48.226-08:00ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं<p> प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अनुमानों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था माइनस 9.6 से नीचे रह सकती है। मूडीज के अनुमानों के मुताबिक तो इस वित्तीय वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था माइनस 10.6 फीसदी से नीचे रह सकती है। 2020 के पहली तिमाही में ग्रोथ रेट माइनस के गर्त में डूबकर माइनस 23.9 फीसदी पर पहुंचा और दूसरी तिमाही में फिर माइनस 7.5 की गिरावट ने अर्थव्यवस्था को उस अंधेरी सुरंग में पहुंचा दिया जिसमें रौशनी के लिए कोई छेद ही नहीं है। देश का अगला बजट इसी सुरंग में तैयार होना है इसीलिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि ये बेहद अहम होगा। </p><p> राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी NSO ने 2020-21 के लिए जो एडवांस एस्टिमेट जारी किया है उसके मुताबिक देश के सभी सेक्टर की ग्रोथ रिपोर्ट निगेटिव में पहुंच गई है। सिर्फ कृषि ऐसा सेक्टर रहा जिसने अपने दम पर देश की अर्थव्यवस्था को कंगाल होने से बचा लिया। आगे भी किसानी ही देश के बचाती दिख रही है। </p><p> NSO का एडवांस एस्टिमेट बता रहा है कि नए वित्तीय वर्ष में मैनुफैक्चिरिंग सेक्टर भारी गिरावट के संकट से जूझेगा। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर का आकार कम से कम 9.4 फीसदी घटेगा। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में तो भारी तबाही का अनुमान है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर का आकार छोटा होगा और कम से कम 12.6 फीसदी छोटा होगा। ट्रेड, होटल, कम्यूनिकोश्न और ट्रांसपोर्ट सेक्टर अब तक के सबसे बुरे दौर में पहुंच सकते हैं। इनमें 21 फीसदी के डाउन साइजिंग का अनुमान है। </p><p> देश की आर्थिक गतविधियां इतनी सुस्त इससे पहले कभी नहीं रहीं जितनी सुस्त होने का अनुमान लगाया जा रहा है। नए वित्तीय वर्ष में ग्रौस एडेड वैल्यू (GVA) में ऐतिहासित गिरावट का अनुमान है। NSO का अनुमान है कि GVA में 7.2 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। GVA से ही ये पता चलता है कि किसी सेक्टर की आर्थिक गतिविधियों से GDP को क्या मिला। </p><p> अर्थव्यवस्था के गर्त में पहुंचने का ठीकरा जो लोग कोरोना पर फोड़ रहे हैं उन लोगों ने या तो NSO, वर्ल्ड बैंक, मुडीज और SBI की वो रिपोर्ट्स नहीं पढ़ी है जो देश की वास्तविक अर्थिक स्थिति पर आधारित हैं या फिर जानबूझकर किसी वजह से झूठ बोल रहे हैं। इसमें कोरोना महामारी की भूमिका है तो जरूर लेकिन बहुत बड़ी नहीं है। </p><p> देश की अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा झटका मोदी सरकार की नोटबंदी से लगा। 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की। इसके पांच महीने बाद मार्च 2017 आते-आते देश के मैनुफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, होटल, ट्रेड और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भारी गिरावट सामने आई। तब से अब तक ये सेक्टर गिरावट का दंश झेल रहे हैं। बड़े पैमाने पर छोटे-मोटे कारोबार भी ध्वस्त हुए। सरकार ने इनको बचाने की न तो कोई नीति बनाई और ना ही राहत के उपायों पर चर्चा की। </p><p> इसके बाद देश की अर्थव्यवस्था को दूसरा बड़ा झटक लगा है बैंकों की बर्बादी से। पिछले 6 सालों में बैकों के 46 लाख करोड़ रुपये डूब गए। इसी दौरान 875 हजार करोड़ रुपये का लोन राइट ऑफ हुआ। सितंबर 2019 में जब महाराष्ट्र के PMC बैंक के सामने बैक के खाताधारी रो-बिलख रहे थे तभी ये साफ हो गया था कि बैंकों की बर्बादी का दौर शुरू हो गया है। नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था में पैदा हुई सुस्ती की मार बैंकों पर ऐसी पड़ी कि बैंकिंग का आधार ही कमजोर हो गया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एनुअल स्टैटिकल रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार में 175% की दर से NPA बढ़ा है। यही रिपोर्ट ये भी बताती है कि मोदी सरकार में NPA बढ़कर 9 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। सरकार ने अनिल अंबानी को राहत देने के लिए जो लोन माफ किया वो भी आपका पैसा था। नीरव मोदी और माल्या जैसे लोग भी आपके पैसे हड़प कर दूसरे देशों में मौज कर रहे हैं। RBI या सरकारें बैकों को जो रकम देती हैं वो पैसा आपका होता है। </p><p> रिजर्व बैंक के रिजर्व कोष का भी बड़ा हिस्सा सरकार पहले ही ले चुकी है। केंद्र सरकार के ऊपर अभी राज्यों की भी बड़ी देनदारी है। जीएसटी में जो राज्यों का हिस्सा है वो भी राज्यों को देना है। कोरोना के नाम पर रोका गया सरकारी कर्मचारियों के डीए का भुगतान भी सरकार को करना है। अलग-अलग सेक्टर में कोराना के नाम पर सैलरी में हुई कटौती के बाद बाजार में आई सुस्ती को भी खत्म करना है और असंगठित क्षेत्र जो कि लगभग कंगाल हो चुका है को भी नए सिरे से खड़ा करना है। </p><p> जाहिर है कि ये बजट देश के लिए बुत ही महत्वपूर्ण है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार ने अपनी पिछली गलतियों से सीख ली होगी और बजट के संतुलन पर जोर दिया होगा। उम्मीद है कि इस बजट में मनी डंपिंग की जगह फ्लो ऑफ वेल्थ दिखेगा। पूरा देश ये देख चुका है कि पैसों के प्रवाह को रोकना घातक साबित हुआ है।</p>ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-82125075750682968602021-01-15T23:20:00.002-08:002021-01-15T23:20:51.177-08:00अपनी वजहों से बिहार में कमजोर हुई कांग्रेस<p><span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt;">देश की सबसे
पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस अब बिहार में बैशाखी को अपना सच मान चुकी है। 1985
में बिहार में प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनाने वाली कांग्रेस 1990 में जिस लालू
प्रसाद के हाथों निपटा दी गई वही लालू प्रसाद कांग्रेस के लिए अब सहारा भी हैं और
आसरा भी। पार्टी के नेताओं का आत्मविश्वास इतना कमजोर हो चुका है कि अब वो बिना
सहारे चलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। हाल ही में पटना पहुंचे कांग्रेस
के प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास ने ये ऐलानिया तौर पर कहा था कि 15 जनवरी को कृषी
बिल के विरोध में कांग्रेस राजभवन करेगी और उस मार्च में सभी 19 विधायक, बिहार के
सभी कांग्रेसी सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और बड़े नेता हर हाल में शामिल
होने चाहिए। बावजूद इसके बीते शुक्रवार को कांग्रेस के राजभवन मार्च में पार्टी
जितनी कमजोर दिखी उतनी इससे पहले कभी नहीं दिखी थी। प्रदेश प्रभारी के निर्देश के
बावजूद 19 विधायकों में से सिर्फ 3 विधायक राजभवन मार्च में शामिल हुए। ना तो कोई
सांसद पहुंचा और ना ही पूर्व विधायक। पार्टी के मौजूदा 16 विधायकों में से
ज्यादातर पटना में ही मौजूद थे लेकिन पार्टी के मार्च में नहीं पहुंचे। आलम ये कि
पार्टी के विधायक दल के नेता अजित शर्मा भी इस मार्च से दूर रहे। राजभवन मार्च से
पहले पार्टी के प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में जुटे कांग्रेसी कई खेमों में बंटे
दिखे।</span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कृषी कानूनों और बढ़ती महंगाई के विरोध के नाम
पर सड़क पर उतरने के लिए कांग्रेस ने कोई जमीनी तैयारी नहीं की। ना तो इसके लिए
कांग्रेस ने किसानों के बीच कोई कार्यक्रम चलाया और ना ही आम आदमी के बीच। बस
कुर्सी पर बैठे-बैठे प्रेस रिलीज जारी होते रहे। पार्टी के प्रदेश स्तर के ज्यादातर
नेताओं ने इस मार्च से खुद को दूर रखा। एक समय था जब कांग्रेस के प्रदेश स्तर के
कार्यक्रमों में हर जिले से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते थे और हजारों लोग सड़कों
पर दिखते थे। अब आलम ये है कि कांग्रेस तकरीबन डेढ़ सौ लोगों के साथ सड़क पर उतरी।
न तो जिलों से कार्यकर्ता आए और ना ही नेता। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">स्थाई खेमेबाजों में
बदला खेमा</span></b><b><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कयास लगाए जा रहे
हैं कि तारिक अनवर कांग्रेस के अगले प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं । बिहार प्रदेश कांग्रेस
के कुछ नेता स्थाई तौर पर शक्ति के साथ खड़े रहते हैं। ये लोग जो कल तक प्रदेश
अध्यक्ष मदन मोहन झा के साथ चिपके रहते थे अब अचानक तारिक अनवर से चिपकने की
कोशिशें करते दिख रहे हैं। शुक्रवार को कांग्रेस के राजभवन मार्च के दौरान तारिक
अनवर के घेरे रही ये टोली सबको साफ दिख रही थी। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">डरे नेताओं ने कमजोर
की पार्टी</span></b><b><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">1990 तक बिहार की
सबसे ताकतवर पार्टी रही कांग्रेस कमजोर क्यों हुई। जानकार बता रहे हैं कि इसकी
वजहें कांग्रेस की भीतर मौजूद हैं। जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल तक पार्टी हर जगह
चुन-चुन कर नए लोगों को जोड़ती रही। नए नेतृत्व को मौका मिलता रहा। पार्टी के नेता
अपने-अपने क्षेत्र के जुझारू लोगों पर निगाह रखते थे और मौका मिलते ही उन्हें
पार्टी से जोड़ते थे। 1990 के बाद ये परिपाटी खत्म होती दिखी। पार्टी के पदों पर
बैठे नेताओं को ऊर्जावान और जुझारू नेताओं से खतरा दिखने लगा। ऐसे नेता सिर्फ अपने
चाटूकरों को पार्टी में महत्व देते दिखते हैं। सच ये है कि ऊर्जावान और जुझारू लोग
अगर कांग्रेस में शामिल होना चाहें भी तो इतने व्यवधान पैदा किए जाते हैं कि वो
लोग दूसरी पार्टियों में चले जाते हैं। इतना ही नहीं लंबे अर्से से पार्टी ने जिला
स्तर पर खुद को मजबूत करने की कोई ठोस पहल भी नहीं की। कई जिलों में तो पार्टी की
जिला इकाई ही नहीं है। यहां तक कि पार्टी के अलग-अलग प्रकोष्ठों की कई वर्षों से
कोई बैठक नहीं हुई है। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span></p>ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-68749391279701641922020-10-07T22:40:00.004-07:002020-10-07T22:40:46.357-07:00 कुंठा के मारों को उल्लू बनाते रहे हैं मोदी<p></p><p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">पत्रकारिता के एक
छात्र ने मजेदार सवाल पूछा है। सवाल है </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">सर, भारत में
पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम नहीं है बावजूद इसके मोदी सबको उल्लू कैसे बना लेता
है</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">?’</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;"> मेरा स्पष्ट मानना है कि सवालों को न तो टाला
जाना चाहिए और ना ही सवाल पूछने वाले को। सवाल तो बस जवाब मांगते हैं। सवालों को
टालने और सवालों से भागने वाले अज्ञानी, मूर्ख और धूर्त लोग होते हैं। हां, अगर
आपके पास जवाब नहीं है तो आप कह सकते हैं कि मेरे पास इसका जवाब नहीं है।</span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पत्रकारिता के छात्रों को सवाल पूछने की आदत
डालनी चाहिए। एक अच्छा सवाल कई घंटों के कुकुरभौं से बेहतर होता है। गीदड़ों की
तरह उछलना, गली के कुत्तों की तरह भौंकना और पागलपन के दौरे का शिकार होना
पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता सवाल पूछने का पेशा है। सवाल सदाचारिता से निकलते
हैं, धतकर्मों से नहीं। बीमार दिमाग़ अंधश्रद्धा का गुलाम होता है और स्वस्थ दिमाग
विमर्श करता है, सवाल करता है। स्वस्थ वातावरण के लिए सवालों का उठना और उन सवालों
के जवाबों का आना जरूरी होता है।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो छात्र का सवाल है कि भारत में पढ़े-लिखे
लोगों की संख्या कम नहीं है बावजूद इसके मोदी सबको उल्लू कैसे बना लेता है</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">?<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">मेरा जवाब बड़ा
स्पष्ट था। मैंने कहा भारत में पालन-पोषण का माहौल ही विकृत है। हमारा परिवार,
हमारे रिश्तेदार और हमारा समाज हमें विकृतियों के साथ गढ़ता है। मसलन एक हिंदु परिवार
में बच्चे को बताया जाता है कि मुसलमान ख़राब होते हैं। ठीक ऐसे ही एक मुस्लिम परिवार
में बताया जाता है कि हिंदु ख़राब होते हैं। मुस्लिम बच्चों को बताया जाता है कि
हिंदु उनके दुश्मन होते हैं और इस्लाम को इनकी वजह से बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ी
हैं। बड़ी संख्या में मुसलमानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ठीक इसी तरह हिंदु परिवारों में बताया जाता है
कि मुसलमान आक्रांता हैं। मुसलमानों ने हिंदुओं पर हमले किए, लाखों हिंदुओं को
मारा, उनकी बहू-बेटियों की इज्जत लूटी, जबरन धर्म परिवर्तन करवाया। मुसलमान
निष्ठुर होते हैं। ये किसी का भी सिर कलम कर लेते हैं। वगैरह-वगैरह। हिंदु धर्म को
मुसलमानो से खतरा है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>एक-दूसरे के रीति-रिवाजों को लेकर भी नफरत का
वातावरण तैयार है और हमारी नस्लें उसी वातावण का शिकार हैं। यही बच्चे बड़े होते
हैं। यही बच्चे पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील, पत्रकार, बैंकर,
दुकानदार, कलाकार समेत और भी बहुत कुछ बनते हैं। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बचपन से जो बताया गया है वो आपके अचेतन में बना
रहता है। यही अचेतन मन आपके चेतन मन को रह-रह कर सतर्क करता है। मुसलमानों को
हिंदुओं से और हिंदुओं को मुसलमानों से।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अचेतन मन में बैठी तमाम बातें अवचेतन में
जाकर कुंठा पैदा करती हैं। मोदी ने उसी कुंठा को बड़े पैमाने पर उभारा। राष्ट्रीय
राजनीति में मोदी का उभार दंगों की देन है। गुजरात दंगों के बाद मोदी हिंदुत्व की
राजनीति का बड़ा चेहरा बने। इन दंगों में बड़ी संख्या में मुसलमानों का कत्ल हुआ,
उनकी बहू-बेटियों का बलात्कार हुआ। बहुसंख्यक हिंदुओं की अवचेन मन की कुंठाएं
थोड़ी शांत हुईं। अब अवचेन की इन्हीं कुठाओं को ठंडा होने का रास्ता मिल गया।
कुंठित मन ने ये मान लिया कि कुंठा को थोड़ी-बहुत राहत मोदी से ही मिल सकती है।
इन्हीं कुंठाओं ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आमंत्रित किया और उनका
स्वागत किया। यही कुंठा उनके नोटबंदी जैसे राष्ट्रघाती फैसले को राष्ट्रवादी साबित
करने के लिए चीख-चिल्लाहटों में निकलती है। यही कुंठा पैदल चल रहे और भूख-प्यास से
मर रहे मजदूरों का मजाक उड़वाती है। यही कुंठा भारतीय जमीन पर चीन के कब्जे को
चीख-चीख कर झुठलाती है। यही कुंठा देश की तबाही और बर्बादी को भी विकास के तौर पर
देखने की विवशता पैदा करती है। इसलिए, नरेंद्र मोदी बहुत ही आसानी से पढ़े-लिखे
तबके को उल्लू बना लेते हैं।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मेरे इस जवाब से छात्र संतुष्ट दिखा तो मुझे
शंका हुई। मैंने उसे सुझाव दिया कि इस जवाब का अपने विवेक से आकलन करे और फिर
इनमें से सवालों को जन्म दे। स्वस्थ विमर्श के लिए सवालों और जवाबों का होना बहुत
जरूरी है। </span></p><br /><p></p>ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-49101328331779716472020-08-11T19:43:00.004-07:002020-08-11T19:43:35.169-07:00राहत इंदौरी मतलब भारत की मिट्टी पर जम्हूरियत के रंग<p> मशहूर गीतकार और मकबूल शायर राहत इंदौरी के निधन की खबर से उनके चाहने वालों को गहरा सदमा लगा है...भारत के अलावा दुनिया के उन सभी देशों में जहां उर्दू और हिंदी बोली-समझी जाती है, राहत इंदौरी समान रूप से लोकप्रिय थे...कोरोना संक्रमित होने के बाद इंदौरी साहब को दिल का दौरा पड़ा और वो हम सबको छोड़कर चले गए...इस मशहूर शाहकार को उसके लिखे गीतों और उसी की शायरी से श्रद्धा-सुमन अर्पित </p><p> क्या पेंटर, चले गए न...एक घबराई हुई शाम को जिगर ने झटका दिया और तुमने अलविदा कह दिया.. ना पेंटर..अभी जाने का नई...तुम्हीं ने बोला था न..अभी जाने का नई.. ये तो धोखा है पेंटर...हमने तो ये सोचा ही नहीं था कि हथेली पर जान लेकर चलते-चलते हमें सफर में छोड़ जाओगे ( हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है...शायरी) रंग अधूरे छूट गए पेंटर..तस्वीर पूरी बनी ही नहीं और तुमने तूलिका छोड़ दी.. कैसे छोड़ दी तूलिका तुमने पेंटर...याद है जब पेट ने ललकारा था, भूख ने तड़पाया था तब तूलिका पकड़ी थी तुमने..इंदौर की दुकानों पर आज भी तुम्हारे बनाए साइन बोर्ड इतराते हैं पेंटर...इन्हें भी छोड़कर चले गए तुम...अपनी पहचान को इंदौर की पेशानी पर छोड़कर इंदौर की मिट्टी में जाकर लेट गए तुम (मैं जब मर जाऊं, मेरी पहचान...शायरी) बहुत कुछ लिखना बाकी रह गया...जैसे कॉलेज में ऊर्दू पढ़ाने की कहानी...पेंटर का सर बनने की कहानी...तूने तो एक झटके में किस्सा तमाम कर दिया ( खुद भी पागल हो गए तुमको भी पागल कर दिया ) किस्से न बड़े प्यारे होते हैं..जैसे किसी शायर की ग़ज़ल, किसी सुखनवर की संगत..जैसे गुलाब को गुमान नहीं होता है अपनी खुशबू का..और ना ही इतराती है कोयल अपनी आवाज पर...वैसे ही सर, आपको पता ही नहीं था कि आप क्या चीज हैं हिंदुस्तान के लिए (तुम सा कोई प्यारा, कोई मासूम नहीं है) कितनी मासूमियत से हमें तन्हा कर गए सर..जब सज-धज कर तैयार हुई मुशायरे की महफिल..जब बजनी थीं तालियां...ठीक उसी वक्त बहारों को ग़म में बदल दिया सर आपने ( हम अपने ग़म को सजाकर बहार कर लेंगे) चुपके-चपके गए हो सर..ये चीटिंग है सर...सबेरे ही ट्वीट किया और शाम को चोरी से निकल गए (चोरी-चोरी नजरें मिलीं)... जानते हो सर...जब आप गए न...तब श्याम रंग गहरा हो रहा था...भारत श्याम की बर्थ नाइट सेलिब्रेट करने की तैयारियों में था...(बुमरो-बुमरो, श्याम रंग बुमरो).....हमें पता है सर....डॉक्टरों ने बहुत कोशिशें की होंगी आपकी धड़कनों को प्यार की झप्पी देने की...बहुत कोशिशें की होंगी...( एम बोले तो मास्टर में मास्टर) डॉक्टरों ने रोका होगा सर...ज़रूर रोका होगा आपके दिल को बंद होने से...(दिल को हजार बार रोका रोका रोका) लेकिन जाने वो कैसा चोर था...राहत को चुरा गया (जाने वो कैसा चोर था दुपट्टा चुरा गया...). नहीं पेंटर, नहीं सर...हमें छोड़कर भला कैसे जा सकते हैं राहत इंदौरी... हिंदुस्तान की माटी पर अपनी तूलिका से जम्हूरियत और कौमी एकता के रंग भरने वाला शायर भला हमसे जुदा कैसे हो सकता है... इसी मिट्टी में शामिल है, इसी मिट्टी में रहेगा...राहत न मरा है अभी...राहत न मरेगा...सलाम राहत साहब..सलाम... (उसे कहो मैं मरा नहीं हूं) ...</p>ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-67555395642085712092020-08-03T23:44:00.006-07:002020-08-03T23:44:52.921-07:00सुशांत की मौत के बाद फर्जी प्राइड का खेल<div>मराठा और मराठा प्राइड की राजनीति से प्रभावित मुंबई वालों ने बिहारियों को बराबरी का दर्जा दिया ही कब है जो अब दे देंगे! साल दर साल बिहारियों को मारने-पीटने वाले मराठा मानुष भला ये कैसे बर्दाश्त कर लें कि एक बिहारी की संदिग्ध मौत मामले में किसी विषकन्या से पूछताछ हो जाए। बिहार और यूपी वालों को दो कौड़ी का मामूली मजदूर मानने वाली ये मराठा सोच नई तो नहीं है। और ऐसा भी नहीं है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ये बात नहीं जानते हैं। नीतीश कुमार जिस बाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री थे उसी बाजपेयी सरकार को बर्बर ठाकरे का समर्थन हासिल था और उसी बर्बर ठाकरे के लोग मुंबई में बिहारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटते थे। तब नीतीश कुमार को एक बार भी बिहारियों का ख्याल नहीं आता था और एक बार भी वो बर्बर ठाकरे के सामने सिर उठाकर बोलते नहीं देखे गए। नीतीश कुमार 2005 से बिहार का मुख्यमंत्री हैं। उनके कार्यकाल में बीसियों बार मुंबई में बिहारियों पर हमले हुए हैं। बिहारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया है। रेलवे की परीक्षा देने गए छात्रों की पीट-पीट कर हत्या की गई है। इनमें से कितने मामलों की जांच के लिए नीतीश की सरकार ने बिहार पुलिस को मुंबई भेजा है? सच ये है कि दोनों तरफ से झूठी शान का प्रदर्शन हो रहा है। सुशांत की संदिग्ध मौत को नीतीश कुमार बिहारी प्राइड से जोड़ने में सफल होते दिख रहे हैं। ये सारे प्रयास सियासी मतलब साधने के लिए हो रहे हैं। </div><div> ये बात हुई नीतीश कुमार की और अब बात उद्धव ठाकरे की। बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे भी उसी बर्बर मराठा प्राइड की राजनीति करते हैं जिसकी शुरुआत उनके पिता बर्बर ठाकरे ने की थी। इस राजनीति का मकसद मराठों का भला न तो तब था और ना ही अब है। इस राजनाति का मकसद तब भी दूसरों से नफरत करना था और आज भी वही है। नफरत की इस आग में आदमी अपनी कमियों को भूल जाता है। मतलब, मराठा ये भूल गए हैं कि उनकी बुनियादी ज़रूरतों के लिए सरकार की एक जिम्मेदारी बनती है। वो बस बिहारियों से नफरत करने को मराठा अस्मिता मान बैठे हैं।</div><div> जब तक सुशांत सिंह राजपूत हीरो थे तब तक मराठा प्राइड वाली इस सियासी सोच को उनसे दिक्कत नहीं थी लेकिन, जैसे ही सुशांत के बिहारी होने का सच सामने आया है मराठों की नफरती सोच सामने आ गई। बर्बर ठाकरे की सियासी विरासत संभालने वालों को ये बात खलने लगी कि बिहारी की मौत की जांच बिहार पुलिस करे। फिर वही बर्बर खेल शुरू हो गया है। अपने पिता की दो कौड़ी वाली बर्बर प्राइड पॉलिटिक्स को उद्धव ठाकरे फिर आगे सरकाते दिख रहे हैं। मुझे संदेह है कि उद्धव ठाकरे और उनकी बर्बर पार्टी के लोग एक बार फिर मुंबई में बिहारियों के खिलाफ हिंसा का माहौल खड़ा करेंगे और बिहार पुलिस और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराएंगे। </div><div> इसलिए, बेहतर होगा कि समय रहते महाराष्ट्र के मराठा प्राइड की इस सोच को सकारात्मक दिशा दी जाए। मराठा युवकों को ये बताया जाए कि बर्बर ठाकरे ने अपने सियासी फायदे के लिए मराठा प्राइड का जो आवरण तैयार किया, दरअसल वो प्राइड नहीं बल्कि मराठों को लठैत बनाकर सत्ता को बर्बर परिवार का चाकर बनाए रखने की साजिश है। वक्त रहते ये काम नहीं किया गया तो फिर एक दिन बर्बर ठाकरे के वंशज मराठा प्राइड के नाम पर अलगाववादी सोच को खाद-पानी देने लग जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि फर्जी प्राइड वाली पॉलिटिक्स, चाहे बिहारी प्राइड के नाम पर चल रहा फर्जीवाड़ा हो, चाहे लंबे अर्से से चला आ रहा मराठा प्राइड वाला फर्जीवाड़ा हो, दोनों की पोल खोली जाए और बर्बर ठाकरे के वंशजों को अलगाववादी ताकत बनने से रोका जाए।</div>ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-58586274681288570942020-01-13T22:38:00.001-08:002020-01-13T22:39:55.459-08:00सब धन लुटा के अब जन लुटाने में लग गए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: 12pt;"><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">जब तक संभव होता है
शहनाई की धुन सिसकियों की आवाज छुपा लेती है लेकिन, सिसकियां जब चीखों में तब्दील
हो जाती हैं तो फिर उसे छुपा-दबा लेना संभव नहीं होता। देश की अर्थव्यवस्था और
बढ़ती बेरोजगारी का सच जब तक संभव था संस्थाओं ने छुपाने की पूरी कोशिश की लेकिन,
जब अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की सिसकियां चीखने लगीं तो फिर सच्चाई को छुपाए रखना
संभव नहीं हो सका और संस्थाओं को मानना पड़ा कि अब सबकुछ तबाह और बर्बाद हो चुका
है। जिस बात को कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी तीन साल पहले से कह रहीं हैं अब उस बात
को धीमी आवाज में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के शीर्ष अधिकारी, सांख्यिकी विभाग के
शीर्ष अधिकारी और नीति आयोग के शीर्ष अधिकारी भी कहने लगे हैं। अब सब ये मानने लगे
हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है और देश रोजगार देने में अब उतना सक्षम नहीं
रहा जितना साल 2011-12 तक था।</span></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इकोरैप की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि
साल 2018-19 में बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों ने अपने घरों में औसत
के मुकाबले तीस फीसदी कम पैसे भेजे हैं। रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन करने पर पता
चलता है कि बिहार और यूपी से दूसरे राज्यों में काम की तलाश में गए इन कामगारों को
पहले मुकाबले कम दिन काम मिला। इतना ही नहीं पीछले पांच-छे वर्षों से इनकी मजदूरी
में कोई इजाफा नहीं हुआ। किराए के मकानों में रहने वालों इन मजदूरों के मकान का
किराया हर साल बढ़ा, खाने-पीने के खर्चे बढ़ती महंगाई की वजह से लगातार बढ़े लेकिन
कमाई बढ़ने के बजाए घटती गई।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस रिपोर्ट में एक और बेहद महत्व की बात सामने
आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि चालू वित्त वर्ष में नए रोजगार की संभावना
बहुत कम रहेगी। ईपीएफओ के आंकड़ों से अनुमान लगाया गया है कि इस वित्त वर्ष में
पंद्रह हजार रुपये तक की तनख्वाह वाली नौकरियों में भारी गिरावट हो सकती है।
अनुमान है कि इस वर्ष ऐसी 16 लाख नौकरियां कम हो जाएंगी। ये सिर्फ मासिक पंद्रह
हजार वेतन वाली नौकरियां हैं। इससे ऊपर के वेतन वाली नौकरियों को जोड़ दिया जाए तो
फिर ये आंकड़ा एक करोड़ के आस-पास पहुंच सकता है। क्योंकि ईपीएफओ के इस आंकड़े में
केंद्र और राज्य सरकारों की नौकरियों के साथ-साथ अपना रोजगार करने वालों के आंकड़े
शामिल नहीं हैं। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>केंद्र और राज्य सरकारों की नौकरियों के अवसर
तो पहले से ही कम होते जा रहे हैं। एनएसओ का आंकलन बताता है देश की वित्तीय हालत
ऐसी नहीं रही कि अब केंद्र सरकार भी पहले की तुलना में नियुक्तियां कर सके। राज्य
सरकारों की हालत तो और खस्ता है। दिल्ली को छोड़ दें तो देश के किसी भी राज्य की
माली हालत ठीक नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों की ये हालत बताती है कि चालू
वित्त वर्ष में सरकारी नौकरियों के अवसरों में भारी कमी देखी जाएगी। ये कमी कम से
कम 39 हजार पदों की होगी। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब सवाल ये कि रोजगार का यें संकट इतना विकराल
हुआ कैसे</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">जवाब बड़ा सीधा है कि वित्तीय कुब्रंधन की वजह से।
मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के जो दूरगामी नतीजे बताए जा रहे थे वो दूरगामी
नतीजे ढाई साल में ही सामने आ गए थे और पता चला कि देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई
है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बाद अब तो नीति आयोग ने भी मान लिया है कि विकास दर
पांच फीसदी से भी नीचे रहेगी। मतलब देश के पास धन नहीं है और जब धन ही नहीं है तो
फिर खर्च क्या करेंगे। मतलब न तो विकास का काम होगा और ना ही नए रोजगार के अवसर सृजित
होंगे।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने अपने खर्चे बहुत
बढ़ा लिए। सरकारी खर्चे में हुई बढोत्तरी ने देश के खजाने पर बड़ा असर डाला। देश
के कई राज्यों ने भी ऐसा ही किया। आम आदमी की कमाई का बड़ा हिस्सा सरकार चलाने और
सरकारी तामझाम में जाता रहा। यूपी सरकार ने तो अपना बहुत बड़ा बजट शहरों के नाम
बदलने और ईमारतों के रंग बदलने में खर्च कर डाले। हुआ ये कि सरकारी योजनाओं को
चलाने और निर्माण के लिए धन की कमी होती गई। धन की कमी को दूर करने का प्रबंध भी
सरकार जब ठीक से नहीं कर पाई तो अप्रत्यक्ष करों में भारी बढ़ोत्तरी की गई। सेस के
जरिए लोगों से अतिरिक्त पैसे लिए जाने लगे। सरकार की इस नीति ने महंगाई में आग लगा
दी। हालत ये हुई कि आर्थिक विकास के मामले में देश पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश
से भी पिछड़ गया।</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पहले तो सरकार और सरकारी संस्थाओं ने
पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, हिंदू-मुस्लिम और ना जाने किन-किन शोरों में इस सच्चाई को छुपाए रखा लेकिन
जब विश्व बैंक समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत की आर्थिक हालत पर चिंता जताने लगाने
और खुद नीति आयोग, भारतीय रिज़र्व बैंक और सांख्यिकी विभाग की हालत चरमराने लगी तो
उन्हें खुलकर ये स्वीकार करना पड़ा कि अब देश बर्बादी की कगार पर खड़ा है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उम्मीद है कि सरकार अब भी चेतेगी और देश के
जीवट नागरियों के हौसले से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों में
जुटेगी। मोदी सरकार का अब तक का अनुभव ये बताता है कि सरकार अड़ियल रवैये से चल
रही है और ग़लत फैसलों से हुए नुकसान को छुपाने के लिए देश का ध्यान इधर-उधर
भटकाने में भी काफी नुकसान करती रही है। इसलिए ज़रूरी है कि सरकार अपनी गलतियों से
सीख ले। भारत के नागरिकों का दिल बड़ा है और देश ने हर उस सरकार की गलतियों को माफ
किया है जिस सरकार ने अपनी गलतियां मानी हैं और उन गलतियों को सुधारने की दिशा में
काम किया है। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-46762019594545061032020-01-02T20:31:00.001-08:002020-01-02T20:31:19.496-08:00फैज के बहाने एक और 'कन्हैया' तलाशती सरकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="font-family: Mangal, serif;">साल </span>2016 </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">में जब सरकार की ग़लत नीतियों की वजह से भारतीय
अर्थव्यवस्था के डूबने की शुरुआत हुई और रोजगार का संकट गहरा हुआ तब सरकार ने बड़ी
चालाकी से एक </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">गद्दार</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">’ </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">की खोज की और देश का
सारा ध्यान उस गद्दार की तरफ मोड़ दिया। फिर हुआ ये कि कौआ कान लेकर भागा और लोग
कौए के पीछे भागे। तब देश के गृहमंत्री थे राजनाथ सिंह। राजनाथ सिंह ने अपने
ट्विटर हैंडल पर जेएनयू के तत्कालीन छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गद्दार
लिखा और कुछ घंटों बाद ही उसे डिलीट कर दिय़ा। राजनाथ सिंह और राजनाथ सिंह जैसे
भाजपा नेता पहले ट्वीट और बाद में डिलीट के सियासी विद्यालय में ही दीक्षित हुए
हैं। गोएब्ल्स कहता था कि किसी झूठ को इतना फैला दो कि लोग उसे ही सच मान लें।
2016 में तत्कालीन गृह मंत्री और भाजपा के बड़े नेताओं ने कन्हैया कुमार के मामले
में यही किया। खैर राजनाथ सिंह से लेकर अब के गृह मंत्री अमित शाह तक, दिल्ली
पुलिस कन्हैया के खिलाफ कोई सबूत नहीं खोज पाई लेकिन, देश की एक बड़ी आबादी बिना
किसी ठोस सबूत के कन्हैया को आज भी टुकड़े गैंग का नेता बताती है क्योंकि, प्रचार
तंत्र के जरिए सत्ता ने इस झूठ को इतना फैलाय़ा कि लोग इसे ही सच मानने लगे।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब, जबकि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डूब
चुकी है, नए रोजगार की संभावना तो दूर जिनके पास रोजगार है उसे बचाना ही मुश्किल
हो गया है और बीजेपी के ही सांसद सुब्र्हमण्यम स्वामी ये स्वीकार कर चुके हैं कि
हम बर्बादी के तरफ धकेले जा चुके हैं तब, सत्ता को लोगों का ध्यान बांटने के लिए
फिर गोएब्ल्स की शरण में जाना पड़ा है। और यही वजह है कि सरकार एक और </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कन्हैया</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">’ </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">की तलाश में जुट गई
है। जेएनयू में सरकार ने काम आसानी कर लिया क्योंकि जेएनयू में शहीद भगत सिंह की
विचारधारा वाली राजनीति चलती है जो भाजपा की विभाजनकारी विचारधारा को वहां पनपने
नहीं देती। जाहिर है उस विभाजनकारी सोच का वहां जमकर विरोध हुआ और उसी विरोध को
सत्ता के तंत्र ने देशद्रोह के नाम से प्रचारित किया। अब फिर आसान टारगेट सेट किया
गया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, ये नाम ही काफी है विभाजनकारियों के लिए। नफरत
के लिए धर्म का इस्तेमाल करने वाली राजनीति जामिया नाम से ही काफी काम कर लेगी। और
फिर अब यहां कोई </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कन्हैया कुमार</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> खोजा जाएगा।
बिना किसी सबूत के उसे देशद्रोही, गद्दार, टुकड़े-टुकड़े गैंग का सरगना कहा जाएगा।
एक बार फिर कौआ कान लेकर भागेगा और कौए के पीछे लोग भागेंगे। सत्ता की शह पर
गोएब्ल्स की औलादें आम आदमी को यकीन दिलाने में कामयाब होंगी कि जामिया मिल्लिया
देशद्रोही गतिविधियों का अड्डा है। एक झूठ को इतना फैलाया जाएगा कि लोग उसे ही सच
मानने लगेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि इस वक्त फैज अहमद फैज को याद किया जाए। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब, जबकि आईआईटी कानपुर प्रशासन ने साफ कर दिया
है कि संस्थान फैज अहमद फैज की किसी रचना की जांच नहीं कर रहा है फिर भी हमें फैज
साहब की रचनाधर्मिता पर बहस करनी चाहिए। आईआईटी कानपुर को जा काम सौंपा गया है
दरअसल वो वही काम है जिसके जरिए एक नए कन्हैया कुमार की खोज होगी। रही बात संस्थान
प्रबंधन के बयान की तो उसपर आंख मूंद कर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इस
दौर में देश के प्रधानमंत्री मंचों से धड़ाधड़ गलत सूचना दे रहे हैं। कई मंत्री लगातार
सदन को गलत जानकारी दे रहे हैं तो फिर भला सच का सारा ठेका अकेले आईआईटी कानपुर ही
लेकर क्यों घूमे। तो अगर आईआईटी कानपुर फैज साहब की ग़ज़ल में हिंदू विरोध की तलाश
कर रहा है तो उसे करने दीजिए। 1979 में तब की पाकिस्तानी हुकूमत ने भी फैज साहब को
इस्लाम विरोधी घोषित किया था। तब के पाकिस्तानी तानाशाही समर्थकों ने फैज साहब को
गद्दार घोषित कर रखा था। क्योंकि तब पाकिस्तान में मजहब के नाम पर ही सैन्य
तानाशाही थोपी गई थी। 1977 में जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तान में तख़्ता पलट किया
था और 1978 में शरई कानून न मानने वालों को इस्लाम विरोधी करार दिया था। फैज साहब
शरई कानून के खिलाफ थे। 1979 में फैज साहब </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">लाजिम है कि हम भी
देखेंगे</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">’ </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">ग़ज़ल के जरिए जियाउल हक की तानाशाही के खिलाफ
आवाज बुलंद की। फैज साहब की ये गजल हिंदी और उर्दू की हर जुबान पर चढ़ी। पाकिस्तान
में जनरल की तानाशाही के खिलाफ नारा बना </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">लाजिम है कि हम भी
देखेंगे</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">। सरहद पार कर ये तराना भारत पहुंचा और फिर भारत
के बाद नेपाल। नेपाल की राजशाही के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन के दौरान इसे खूब गाया
गया। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जाहिर है तानाशाही के खिलाफ खड़ी ये रचना किसी
भी तानाशाह को पसंद नहीं आएगी इसलिए, ज़रूरी है कि जनतंत्र के पक्ष में खड़ा हर
आदमी इसे गुनगुनाता रहे। तय मानिए गोएब्ल्स की औलादें से इस तराने को हिंदू विरोधी
प्रचारित करेंगी। आप उनसे बौद्धिकता, नैतिकता की उम्मीद ही ना करें। उनका काम ही
है किसी झूठ को इतना फैला देना कि लोग उसे ही सच मान लें। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">...असित नाथ
तिवारी...<span style="display: none; mso-hide: all;">फफ</span></span><span style="display: none; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-hide: all;">hW</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-47997919297161146782019-12-02T20:56:00.001-08:002019-12-02T20:56:38.920-08:00कंपनी ने अंग्रेजों को देश सौंपा था मोदी जी ये देश कंपनी को सौंप रहे हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: 12pt;"><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">प्रधानमंत्री मोदी
जी, कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है और आपकी सरकार का कामकाज देखकर हमसब इतिहास
को वर्तमान बनता देख रहे हैं। भारत में अंग्रेजी राज की शुरुआत ब्रितानी सरकार ने
नहीं की थी। पहले आई ईस्ट इंडिया कंपनी। कंपनी ने भारत में व्यापार शुरू किया और
फिर धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्जा कर लिया। ज्यादातर भारतीय राजाओं ने कंपनी के
सामने घुटने टेक दिए और जिन्होंने नहीं टेके उन्हें भारतीय गद्दारों के सहयोग से
या तो दिल्ली के खूनी दरवाज़े पर काट कर लटका दिया गया या फिर उनको दो गज ज़मीं न
मिल सकी कूए यार में। तब कंपनी वाले उन्हीं गद्दारों को देशभक्त कहते थे और जो
कंपनी की सेना से देश के लिए लड़ रहे थे उन्हें राष्ट्रद्रोही कहा जाता था। 1857
में जब दुनिया ये जान गई कि ईस्ट इंडिया कंपनी दरअसल ब्रितानी सरकार के
साम्राज्यवाद का टूल है और भारत पर कंपनी राज के पीछे ब्रातानी हुकूमत है तो फिर
परोक्ष रूप से ब्रितानी हुकूमत ने भारत को अपने कब्जे में ले लिया।</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">ये इतिहास आज फिर
खुद को दोहराता दिख रहा है। देश के तमाम सार्वजनिक उपक्रम देश के 4-5 बड़े
उद्योगपतियों को आपकी सरकार देती जा रही है। आपकी सरकार ने एयर इंडिया को मुनाफा
कमाने वाली दुकान समझ लिया है। और उसे बेचने की तैयारी में है। आपको इसके नतीजे मालूम
होंगे। एयर इंडिया के बिकने का मतलब है देश में हवाई सेवा पर पूरी तरह से प्राइवेट
सेक्टर का कब्जा होना। मतलब हवाई सेवा पर कंपनी राज। अब ये कंपनी सरकार चाहेगी तो
हवाई जहाज उड़ेंगे नहीं चाहेगी तो नहीं उड़ेंगे। कंपनी सरकार कहेगी कि 5 हजार नहीं
हम तो 25 हजार किराया लेंगे। लखनऊ वाले अधिक टैक्स देंगे तब ही हम उनके लिए हवाई
जहाज उड़ाएंगे, वगैरह-वगैरह। आम आदमी के पास कुछ नहीं होगा। सरकार कहेगी हावाई
जहाज तो हमारे हैं ही नहीं तो हम क्या करें। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यही हाल आप रेलवे का कर रहे हैं। कंपनी सरकार
अब ट्रेन भी चलाएगी। आपकी सरकार धीरे-धीरे कंपनी सरकार से रलवे को बेच ही रही है।
अब कंपनी सरकार अपने हिसाब से ट्रेनों को चलाएगी। मालदार लोग प्रीमियम में चलेंगे
और देश का सामान्य नागरिक कंपनी सरकार के सिपाहियों के कोड़े खाएगा। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">BSNL </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">को भी आपकी सरकार
निबटाने में जुट ही गई है। अभी चलती हालत में </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">BSNL </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">को कंपनी सरकार
खरीदेगी नहीं। क्योंकि चलती हालत में कीमत ज्यादा लगेगी। तो फिर कंपनी बहादुर ने
कहा होगा कि पहले घाटे में धकेल कर इसे बंद करो फिर हमें कबाड के भाव बेच दो। और
ऐसे दूरसंचार पर भी कंपनी राज कायम हो जाएगा। फिर कंपनी सरकार कहेगी कि मोबाइल पर
फेसबुक चलाने का अलग से चार्ज होगा और ह्वाट्सऐप का अलग। इंटरनेट का रिचार्ज अलग
होगा और कॉल टाइम के लिए अलग से रिचार्ज होगा। हम क्या करेंगे </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">! </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">हम अपनी सरकार से कहने जाएंगे कि देखिए इन लोगों
ने तो लूट मचा रखी है तब आप कहेंगे कि हम क्या करें, दूरसंचार तो हमारे हाथ में ही
नहीं है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अच्छा एक और बात, ये बताइए कि सार्वजनिक बिजली
कंपनियों से बिजली खरीदने के पैसे जब आपके पास नहीं हैं तो फिर प्राइवेट कंपनियों
से महंगी बिजली खरीदने के पैसे कहां से आ जाते हैं</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"> ? </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">देश को
जब सार्वजनिक बिजली उत्पादन इकाइयों से सस्ती बिजली मिल सकती है तो फिर प्राइवेट
कंपनी की महंगी बिजली लेने को हम मजबूर क्यों हैं </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">क्यों
देश की तमाम सार्वजनिक बिजली उत्पादन इकाइयों को तबाह किया जा रहा है </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आपकी
सरकार बिजली को पूरी तरह से कंपनी राज के हवाले करने में लगी हुई है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यही हाल उच्च शिक्षा है। अंबानी जी की एक
अदृश्य यूनिवर्सिटी के लिए आपका पूरा तंत्र देश के नामी-गिरामी उच्च शिक्षण
संस्थानों को बदनाम में करने में लगा हुआ है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी, जाधवपुर
यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, जएनयू जैसे
तमाम विश्व विख्यात संस्थान आपके शासनकाल में विवादों का अड्डा बना दिए गए। इनकी
साख ख़राब करने के पीछे कुछ तो मकसद होगा ही। फिर कहा जाएगा कि भाई कंपनी बहादुर
ये सब भी आप ही ले लो, हमसे नहीं चलने वाले। उसके बाद प्राइमरी एजुकेशन के लिए माहौल
बनाना शुरू करेंगे आपके लोग। बाद में प्राइमरी एजुकेशन भी कंपनी राज के हवाले कर
देंगे। फिर कंपनी सरकार कहेगी कि अधिक पैसा देने वालों के बच्चों को अच्छा
पढ़ाएंगे और कम पैसा देने वालों के बच्चों को थोड़ा-बहुत पढ़ा देंगे। हम अपनी
सरकार से शिकायत करेंगे तो सरकार कहेगी कि हम क्या करें, स्कूल-कॉलेज तो हम चलाते
ही नहीं, वो तो कंपनी सरकार चलाती है। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अस्पतालों का भी यही हाल होगा। धीरे-धीरे फिर
एक दिन 1857 जैसे हालात होंगे और आप कहेंगे कि लो जी हटाया पर्दा, हमारी तो कोई
सरकार ही नहीं थी। सरकार तो कंपनी बहादुर की ही थी हम तो बस ऐसे ही बैठे थे। अब जाने
कंपनी सरकार, हम तो झोला उठाकर चले। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-43079252911117887172019-11-28T21:03:00.004-08:002019-11-28T21:03:52.052-08:00गांधी: मोदी भी ढो रहे हैं नेहरू-पटेल वाली पापग्रंथि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में वही कहा जो वो सड़कों पर बहुत पहले से कहती रही हैं। वही क्यों, बीजेपी में ऐसे लोग बड़ी तादाद में हैं जिन्हें नाथूराम गोड्से अच्छा लगता है। ये उस हत्यारे के पक्ष में इसलिए खड़े दिखते हैं क्योंकि इन्हें पता है कि नाथूराम मुसलमानों से नफरत करने वाला शख्स था और उसने धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर महात्मा गांधी की हत्या इसलिए की क्योंकि महात्मा गांधी देश विभाजन के बाद कोष के बंटवारे में पूरी ईमानदारी चाहते थे। ईमानदारी से कोष बंटवारे के पक्ष में खड़े गांधी के लिए बहुत शातिराना अंदाज में ये बात फैला दी गई कि देश के विभाजन की वो सबसे बड़ी वजह थे। मतलब ये बात साफ है कि प्रज्ञा ठाकुर या उन जैसे लोगों ने ना तो कभी देश विभाजन के कारणों को ठीक से जानने के लिए गंभीर अध्ययन किया है और ना ही तथ्यों की पड़ताल की कोई कोशिश की है। इस देश में कौआ कान लेकर भागता है और लोग कौआ के पीछे। विभाजन के तथ्यों के साथ भी यही हुआ। प्रज्ञा और प्रज्ञा जैसे लोग कौए के पीछे भाग रहे हैं। मुझे प्रज्ञा ठाकुर से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि, अनपढ़ या अनगढ़ होना कोई अपराध नहीं है। मेरी शिकायत उस जमात से है जो खुद को बुद्धिजीवी कहती है। इस जमात ने वुद्धिजीविता की चादर ओढ़ ली और अज्ञानता के अंधकूप में इतरा रहे लोगों से दूरी बना ली। बुद्धीजीवी जमात की सबसे बड़ी विफलता यही है कि उसने विश्वविद्यालयों की कुछ डिग्रियों को चिंतन का प्रमाण मान लिया।<br />
प्रज्ञा ठाकुर का लोकसभा में होना अगर किसी को हैरान करता है तो यकीन मानिए वो शख्स किसी मुगालते में जी रहा है। बिहार के सिवान का दुर्दांत अपराधी शहाबुद्दीन, यूपी का दुर्दांत अतीक अहमद और इन जैसे कई लोग इस सदन की गरिमा बढ़ा चुके हैं तो फिर प्रज्ञा ठाकुर से परेशानी क्यों ? रही बात नाथूराम गोडसे और गांधी की तो सच यही है कि इस देश में गांधी वो साइनबोर्ड है जिसे राजनीति की हर दुकान अपने माथे पर उठाए रहती है। मराठी के नाटककार पु ल देशपाण्डेय के एक नाटक में एक पात्र कहता है कि चूंकी हम महात्मा गांधी के रास्ते पर चल नहीं सकते, इसलिए जिस रास्ते पर चलते हैं उसका नाम महात्मा गांधी रोड रख लेते हैं। इस नाटक के इस संवाद से बहुत कुछ साफ होता है। दरअसल मन के चोर और पाप को छुपाने का यह एक तरीका है। हम हर जगह उस चोर और पाप को छुपाने की कोशिश करते रहते हैं और मौका मिलते ही हमारे मान का चोर बाहर निकल आता है। जैसे हमें ये एहसास नहीं होता कि हमारे पांवों के नीचे ज़मीन है जिसपर हमारा पूरा अस्तित्व टिका है। या फिर हमें ये एहसास नहीं होता कि हवा कहीं मौजूद है लेकिन, जब दम फूलता है तब हमें हवा का महत्व समझ में आता है। इस देश में गांधी ऐसी ही ज़रूरत हैं। जब पांवों के नीचे से ज़मीन खीसकती है या फिर जब ऑक्सीजन के बिना दम फूलने लगता है तब हमें गांधी याद आते हैं। गांधी ऐसी ज़रूरत नहीं होते तो 31 जनवरी 1948 को उनके शरीर के साथ हम उनका भी दाह-संस्कार कर चुके होते। गांधी के शरीर की हत्या नाथूराम ने की लेकिन गांधी के सपनों की हत्या तो आज़ादी से पहले की जा चुकी थी। गांधी तो किसी भी सूरत में देश का विभाजन नहीं चाहते थे। जब गांधी ने ये कहा कि देश बांटने से पहले उनके शरीर को दो टुकड़े कर दिए जाएं तब उनकी किसी ने नहीं सुनी। गांधी की हत्या उस दिन भी हुई थी जिस दिन जवाहर लाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी के तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए देश के बंटवारे के फैसले पर आखिरी मुहर लगाई थी।<br />
आज़ादी के ठीक बाद एक बार फिर गांधी की हत्या हुई। अंग्रेजों से आज़ादी लिए बिना ये देश अपने गौरव को हासिल नहीं कर पाएगा इस बात से तो सभी सहमत थे। आज़ादी की अहिंसक लड़ाई में पूरे देश ने गांधी को अपना नेता मान लिया था। लेकिन आज़ादी के बाद चाहे वो जवाहर लाल नेहरू हों या फिर सरदार पटेल या विनोबा भावे, गांधी के साथ कोई खड़ा नहीं था। ये तीनों गांधी को अपना नेता तो मानते थे, गांधी के प्रति पूरी ईमानदारी भी रखते थे लेकिन, गांधी का मार्ग इन्हें स्वीकार नहीं था। गांधी का पश्चिम विरोध नेहरू को पसंद नहीं था। नेहरू मानते थे कि विकास का सूरज पश्चिमी देशों से ही उगेगा। ये मानते हुए नेहरू के मन में गांधी का प्रति पाप था। गांधी की धार्मिकता सरदार पटेल को पसंद नहीं थी। गीता हाथ में लेकर चलने वाले धर्मनिर्पेक्ष गांधी को वो एक रहस्य मानते थे।<br />
जिस पश्चिम का जो सूरज कभी डूबता नहीं था उसी सूरज को गांधी ने अपनी छवि से ढक लिया और आजादी के बाद नेहरू उसी पश्चिमी सूरज से देश को रौशन करने की दिशा में आगे बढ़े। नेहरू के मन में ये चोर था और इसीलिए वो गांधी से आंखें मिलाने के बजाए उनके पायताने बैठने लगे थे। गांधी ने जिस पूंजी की सत्ता को जन की ताकत से ऊंखाड़ फेंका था उसी पूंजी की सत्ता स्थापित कने की बेचानी सरदार पटेल में थी। इसीलिए वो भी गांधी से नजरें नहीं मिला पाते थे और गांधी के पायताने बैठने लगे थे। मौजूदा सत्ता वर्ग भी वही कर रहा है। गांधी ने जिस घृणा के मदमस्त हाथी को प्रेम की कुटिया में बांधा था बीजेपी उसी हाथी पर सवार है और यही वजह है कि गोडसे का नाम आते ही मन का चोर छुपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी के पायताने आकर बैठ जाते हैं।<br />
तो जो चोर नेहरू और पटेल के मन में था वही चोर आज भी हमारे शासक वर्ग के मन में है। कोई नहीं कहता की गांधी का अंतिम संस्कार कर दो। अपनी दुकान से कोई राजनीतिक दल गांधी का साइन बोर्ड उतारना नहीं चाहता। आज़ादी के ठीक बाद से आज तक पग-पग पर गांधी की हत्या करने वालों ने अपने दामन पर लगे खून के छींटे गांधी नाम की चादर से ही छुपाई है। इसलिए प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई। मन का चोर मन में छुपाए रखने की कला सबको नहीं आती। प्रज्ञा वो चोर नहीं छुपा पाती हैं।<br />
हां, देश ये यकीन रखे कि गांधी कोई शरीर भर नहीं है जो किसी गोडसे की गोलियों से मर जाएगा। गांधी वो ज़मीन है जिसपर भारत के पांव टिके हैं और गांधी वो प्राणवायु है जो भारत के फेफड़ों में जाता है। और भारत वो देश नहीं जो मुंह पर पट्टी, आंखों पर तोबड़े और दिमाग पर ढक्कन लगाकर चलता हो। गांधी ने वही पट्टी, वही तोबड़े, और वही ढक्कन तो हटाया था। एक दिन गांधी का ये देश सफेदपोशों के बदन से वो चादर उतार देगा जिस चादर से गांधी हत्या के दाग़ छुपाए गए हैं। याद रखिए गांधी ने बीसवीं सदी को हिलाया था।</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-25064755381111330152019-11-15T08:36:00.001-08:002019-11-15T19:27:14.837-08:00कामरेड के हाथ में भगवा झंडा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;">तो मुख्तसर बात ये
कि चिनगारी जी चिंतित हैं। चिनगारी जी जब चिंतित होते हैं तब अपने मुंह में
चिनगारी सुलगा लेते हैं। मतलब वो सिगरेट पीते नहीं हैं फूंकते हैं। तो चिनगारी जी
चिंतित हैं और सिगरेट फूंक रहे हैं। चिनगारी जी बिना फिल्टर वाली सिगरेट पीते हैं।
वजह एक कि वो सस्ती होती है और वजह दो कि बीड़ी की गंध उन्हें पसंद नहीं। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बेतिया के मीना बाजार में कम्यूनिस्ट पार्टी
के दफ्तर के सामने लहराते लाल झंडे को देखकर चिनगारी जी का दिल बैठा जाता है। लाल
झंडा चिनगारी को कब पसंद आने लगा उनको नहीं पता लेकिन लाल झंडा उनकी ज़िंदगी का
हिस्सा है। लाल को बिछाया, लाल को ओढ़ा और लाल के साथ ही पलते-बढ़ते चिनगारी जी कब
50 साल पार गए पता ही नहीं चला। आज उसी लाल झंडे की लालिमा मद्धिम पड़ गई है। उदास
रंग, उदास ढंग, बेरंग। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चिनगारी
जी ने वो दिन भी देखे हैं जब गांव-गांव लाल परचमम लहराया करता था। चनपटिया और
सुगौली सीट पर तो कम्यूनिस्ट पार्टी के सामने लोग चुनाव लड़ने से भी डरते थे। 1977
का समाजवादी तूफान रहा हो या फिर 1992 की सांप्रदायिक आग, पार्टी के झंडे का चटख
लाल रंग कायम रहा था। लेकिन आज</span><span style="line-height: 115%;">! </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">आज चिनगारी जी
चिंतित हैं। झंडे का रंग उड़ चुका है। गांव-गांव झंडा उठाकर चलने वाला काडर आज भी
है, आज भी उसके हाथ में झंडा है लेकिन, झंडे का रंग बदल गया है। आज भी वो मजदूर है
लेकिन अब वो मजदूरों के हक की बात नहीं करता। आज भी वो किसान है लेकिन अब वो
किसानों की समस्याओं की बात नहीं करता। अब वो दूसरी बात करता है। अब वो संघर्ष की
बात नहीं करता, अब वो क्रांति को फिजूल की बात कहने लगा है। अब वो नफरत की बात
करने लगा है। अब वो हिंसा की बात करने लगा है। अब वो दंगे-फसाद की बात करने लगा
है। चिनगारी जी ने 30 सालों में धीरे-धीरे लाल रंग को रंग खोते हुए देखा है। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चिनगारी जी चिनगारी क्यों हैं इसके पीछे एक
छोटी सी घटना है। दरअसल मीना बाजार में कम्यूनिस्ट पार्टी का जो तीन मंजिला दफ्तर
है पहले वो फूस की मामूली झोपड़ी में हुआ करता था। चिनगारी जी तब छोटे थे। उसी
दफ्तर में खाना बन रहा था, चिनगारी जी खेल रहे थे। खेलते-खलते चिनगारी जी ने
चूल्हे की चिनगारी लकड़ी से उछाल दी और झोपड़ी में आग गई। कहते हैं उसी घटना के
बाद उनका नाम चिनगारी पड़ गया। खैर उसके बाद रिक्शा-तांगा, ठेला चलाने वाले
मजदूरों के सहयोग से एक-एक ईंट जोड़ी गई तब जाकर ये दफ्तर बन पाया था। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वो पूरा दौर देखा था चिनगारी जी ने। कैसे
सकलदेव बाबू, भोला मियां जैसे लोग रोज़ चंदे का डब्बा लेकर घूमते थे और फिर
चवन्नी-अठन्नी इकट्ठा कर शाम को पहुंचते थे। सकलदेव बाबू अपना सारा काम खुद करते
थे। कपड़े धोना, बर्तन धोना, अपना खाना बनाना वगैरह। एक ही कमरे में रहना-खाना,
पढ़ना-लिखना, लोगों से मिलना-जुलना और फिर पार्टी का दफ्तर चलाना। देर रात तक
पढ़ते थे सकलदेव बाबू। किताब को पढ़ते-पढ़ते डायरी में कुछ लिखते रहते थे वो।
चिनगारी जी को यही बात आज तक समझ में नहीं आई कि जो बात किताब में लिखी दी गई है
वही बात फिर डायरी में क्यों लिखते थे कामरेड सेकरेटरी सकलदेव बाबू। लेकिन समझें
कैसे, पढ़ाई की होती तो शायद समझ पाते। कामरेड सेकरेटरी ने बहुत कोशिश की थी
चिनगारी जी को पढ़ाने की। लेकिन चिनगारी जी ने ना पढ़ने की जो जी-तोड़ कोशिश की
उसके सामने कामरेड सेकरेटरी की कोशिशें छोटी पड़ गईं।</span></span><br />
</div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चिनगारी जी ने जब से दुनिया देखी है तब से
मीना बाजार का या दफ्तर देखा है, तब से ही लाल झंडा देख रहे हैं। सकलदेव बाबू ने
हर बार समझाया कि किरांती मत बोला करो क्रांति बोलो लेकिन, चिनगारी जी किरांती से
मोहब्बत करते थे। गरीबों, मजदूरों, मजलूमों, किसानों, छात्रों की किरांती। उनको
पूरा विश्वास है कि किरांती से ही एक दिन पूंजीवाद का नाश होगा और रोटी-रोजगार के
लिए भटकती भीड़ को उसका हिस्सा मिलेगा। लेकिन किरांती करेगा कौन</span><span style="line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो
किंराती की ज़मीन तैयार कर रहे थे वो सब तो चले गए और जो तैयार ज़मीन पर बोई फसल
काटने वाले हैं उनसे किरांती होगी नहीं। वो मजदूरों की हालत पर भाषण तो घंटों दे
सकते हैं लेकिन ना तो वो मजदूरों का मर्म जानते हैं और ना ही मजदूर उनके भाषणों का
मतलब समझ पाते हैं। वो किसानों की बदहाली के लिए व्यव्स्था की नीतियों को तो खूब
कोस सकते हैं लेकिन ना तो वो किसानों का दर्द महसूस कर सकते हैं और ना ही किसान
उनकी दलीलों को समझ पाते हैं। गरीबों पर दिया गया उनका भाषण गरीबों तक पहुंचता
नहीं और अगर पहुंच गया तो बुर्जुआ और सर्वहारा जैसे शब्दों का मतलब गरीब समझ ही
नहीं पाते। और अव्वल तो ये कि चिनगारी जी भी खुद ये नहीं समझ पा रहे हैं कि ये कौन
से कम्यूनिस्ट हैं और किस कैपिटलिस्ट का विरोध कर रहे हैं। आज वाले डिस्टिक सेकरेटरी तो रिक्शा-तांगा वालों से बात तक नहीं करते। किसान-गाड़ीवान से मिलते तक नहीं ये कामरेड। सकलदेव बाबू को किसान, गाड़ीवान, कोचवान, पल्लेदार सब पहचानते थे। सबके थे सकलदेव बाबू। इनको तो गांव से आया पार्टी का कोई काडर भी ना पहचाने। सकलदेव बाबू खेत-खलिहान की बोली बोलते थे और ये एसी वाली ठंडी सांस लेते हैं। किरांती की आग को एसी की ठंडी हवा ने ही तो बुझाई है। </span></span><br />
</div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चिनगारी जी ने फिर मुंह में चिनगारी फूंकी,
लाल झंडे की तरफ देखा और सेकरेटरी साहब के कमरे में दाखिल हुए। दीवार पर टंगे
बोर्ड पर चस्पा पुराने अखबार की कटिंग भी बदरंग होते जा रहे हैं। 1934 के भूकंप
पीड़ितों की तीमारदारी करते कम्यूनिस्ट कामरेडों की तस्वीरें अब रंग खो चुकी हैं।
1974 के बाढ़ पीड़ितों को रसद पहुंचाते कामरेडों की तस्वीरें अब मिट जाना चाहती
हैं। 1974 की तस्वीर, 1974 की बाढ़ और 1974 में आए चिनगारी जी। उसी बाढ़ में पता
नहीं कहां किसी कामरेड को मिल गए थे ढाई-तीन साल के चिनगारी जी। अखबार में
इश्तेहार छपे, लाउड स्पीकर पर ऐलान हुआ, जिला प्रशासन ने सरकारी भवनों पर पोस्टर
लगवाए लेकिन चिनगारी जी को लेने कोई नहीं आया। तब से इसी लाल झंडे के नीचे, फूस
वाले दफ्तर में पले-बढ़े चिनगारी जी। चिनगारी जी की आंखों से आंसू झर रहे हैं।
आंखों के सामने एक धुंधली सी तस्वीर तैर रही है। तस्वीर</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कामरेड के हाथ में दंगाई झंडा लहरा रहा है।<o:p></o:p></span></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-89495517190904252872019-10-29T22:20:00.001-07:002019-10-29T22:20:38.223-07:00कुपुत्र से गंगा मइया को बचइया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;">तो डुगडुगी बजा दी
गई। शाखा में आने वालों को सूचना दे दी गई कि छठ पूजा से पहले गंगा घाटों को
साफ-सुथरा कर देना है। इसके लिए बाजाप्ता मीटिंग बुलाई गई है। प्रमोद काका पुराने
शाखाई हैं। हाफ पैंट के ज़माने से शाखा जाते रहे हैं। अब, जब शाखा फुलपैंटिया हो
गई तो वो भी फुलपैंट पहनने लगे हैं। अंग्रेजी पैंट, अंग्रेजी शर्ट, अंग्रेजी
बेल्ट, अंग्रेजी जूते पहनकर स्वदेशी पर लेक्चर देना उनका सबसे प्रिय काम है। शाखा
के हर आदेश का पालन अपना परम धरम समझते हैं प्रमोद काका।</span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सो
शाम को होने वाली मीटिंग के लिए घुटनी बाबा की मठिया वाली झोंपड़ी की सफाई शुरू हो
गई है। सबसे पहले प्रमोद काका ने सुरा भरे बर्तनों को खाट के नीचे रखा और चादर से
एक पर्दा बनाकर उनको छुपाया। फिर मठिया के अगल-बगल पड़े मुर्गे-बकरों की हड्डियों
को इकट्ठा कर दूर ले गए और कुत्तों को आमंत्रित किया। फिर झाड़ू लगाकर निश्चिंत
हुए।</span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो
मीटिंग स्थल तैयार। प्रमोद काका सोचने लगे। सोचना उनका प्रिय काम है। अक्सर सोचने
लगते हैं। और जब सोचते हैं तो फिर कोई दूसरा काम नहीं करते हैं। तो प्रमोद काका
सोच रहे हैं कि गंगा की सफाई, गंगा घाटों की सफाई कैसे </span><span style="line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">वहां तो बदबू आती है। वहां को कचरा पड़ा रहता है।
वहां तो सड़ांध है। प्रमोद काका सोच ही रहे थे कि तभी उनके नथुनों में गांजा का
धुआं भर गया। तंद्रा टूटी तो देखा कि घुटनी बाबा चीलम सुलगाए सामने ही बैठे हैं।
प्रमोद काका तुरत झोपड़ी से बाहर निकल आए। लेकिन सोच ने साथ नहीं छोड़ा।
सोचते-सोचते सोचा कि गंगा की सफाई क्यों। गंगा तो स्वच्छ और निर्मल हो ही गई होगी।
2014 में काशी पहुंचे गंगा पुत्र ने तो प्रण लिया था कि मां गंगा को निर्मल
बनाएगा। देश ने उस गंगा पुत्र को अपना राजा बनाया। राजा ने गंगा की सफाई के लिए
अलग मंत्रालय बनाया। राजा ने उस मंत्रालय को गंगा सफाई के लिए ढेर सारा धन दिया।
राजकोष की अशर्फियां दी गईं। खज़ाना खोल दिया था गंगा पुत्र ने गंगा की सफाई के
लिए। तो फिर गंगा तो स्वच्छ और निर्मल होगी ही। भला राजा की मां मैले-कुचले कपड़ों
में किसी मलिन बस्ती में रहती है। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रमोद काका के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अहा</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कैसा दृश्य होगा गंगा घाट का। आहा</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कितना निर्मल होगा गंगा का पानी। सुपुत्र पाकर
फूली समा रही होंगी गंगा मइया। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रमोद काका के पांव खुद चल पड़े। तेज कदम, और
तेज कदम और अब तो दौड़ने लगे प्रमोद काका। सीधे गंगा की तरफ दौड़े जा रहे हैं
प्रमोद काका। अहा</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कैसा सुंदर दृश्य होगा।</span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन ये क्या </span><span style="line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">दूर से
ही दुर्गंध</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कूड़ा-कचरा, सड़ांध। पानी भी बदबूदार। हे गंगा
मइया</span><span style="line-height: 115%;">!</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> जिसका बेटा राजा उसकी ऐसी हालत</span><span style="line-height: 115%;">! </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">लानत...लानत...लानत...ऐसे पुत्र को लानत। कहां
गईं खज़ाने की अशर्फियां </span><span style="line-height: 115%;">?
</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">कहां गए वो दावे </span><span style="line-height: 115%;">? </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">मां तो
जार-जार रो रही है। हे मां, कुपुत्र-सुपुत्र, कैसा तेरा पुत्र</span><span style="line-height: 115%;">? <o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रमोद काका फिर सोचने लगे। द्वापर में भी तो
था गंगा पुत्र। तीर के बल अंबा, अंबे, अंबालिका को अगवा किया था गंगा पुत्र ने।
गंगा पुत्र ही तो था वो जो चुप्पी साधे अपनी पौत्र वधु का चीरहरण देख रहा था। गंगा
पुत्र ही तो था वो जो अन्यायियों-बेईमानों की विशाल कौरवी सेना का नेतृत्व कर रहा
था। गंगा पुत्र ही तो था वो जो सत्य को पराजित करने के लिए असत्य की विशाल सेना
लेकर कुरुक्षेत्र में डटा खड़ा था। हां</span><span style="line-height: 115%;">,</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> गंगा पुत्र ही था
वो। गंगा पुत्र...गंगा पुत्र...गंगा पुत्र...। जब द्वापर युगीन गंगा पुत्र ऐसा था
तो फिर कलियुगी गंगा पुत्र कैसा होगा</span><span style="line-height: 115%;">! </span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">हे छठी मइया कुपुत्र
से गंगा मइया को बचइया। प्रमोद काका रो रहे हैं, गंगा मइया रो रही हैं। गंगा पुत्र
राज सिंहासन पर बैठा ठहाके लगा रहा है। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-51212577259742190422019-09-20T00:00:00.001-07:002019-09-20T00:00:12.932-07:00मोदी भक्तों को जवाबदेह बनाना होगा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;">भीड़ विकल्पहीन होती
है</span><span style="line-height: 115%;">,</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"> लोकतंत्र नहीं। जो आज ये कह रहे हैं कि
अलां-फलां का विकल्प कौन है उनसे पूछिए कि 2004 में अटल बिहारी बाजपेयी का विकल्प
कौन था </span><span style="line-height: 115%;">?</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"> अटल के नेतृत्व में एनडीए की हार हुई और देश ने
विकल्प भी पेश कर दिया। मुश्किल काम विकल्प तलाशना नहीं है। मुश्किल काम है भारतीय
लोकतंत्र को भीड़तंत्र या भेंड़तंत्र बनने से रोकना। और ऐसा नहीं है कि भारतीय
लोकतंत्र में पहली बार भीड़तंत्र दिखा हो। आज जिनके लिए भक्त शब्द का इस्तेमाल हो
रहा है वो पहले भी मौजूद थे। 1974 में जब जय प्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का
आह्वान किया तब भी उनके साथ भीड़ खड़ी थी। मसला था भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का।
जेपी ने कहा कि इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट है और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए
इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाना होगा। भीड़ ने जेपी की इस बात पर भरोसा कर लिया।
बिना ये सोचे कि क्या भ्रष्टाचार का संबंध सिर्फ इंदिरा गांधी से है। जो नया आएगा
वो हरिश्चंद्र होगा और भारत सतयुग में पहुंच जाएगा। भीड़ ने शायद इस पर विचार ही
नहीं किया और ना ही कोई तर्क सामने रखा। जेपी के पास भी कोई फॉर्मूला नहीं था।
उनकी संपूर्ण क्रांति बाद के दिनों में सत्ता परिवर्तन के लिए किया गया एक सियासी
हथकंडा साबित हुआ और फिर उन्हीं के लोगों ने संपूर्ण क्रांति को संपूर्ण भ्रांति
कहना शुरू कर दिया। लेकिन उनके साथ भीड़ खड़ी थी और लोकतंत्र में भीड़ की ताकत का
एहसास उन्हें खूब था। और ताली बजाने वाली इस भीड़ ने तो 25 जून 1975 को तब भी ताली
ही बजाई थी जब जेपी ने रामलीला मैदान मे जुटी भारी भीड़ से ये अपील कर दी कि वो
प्रधानमंत्री का आवास घेर ले और उन्हें घर से निकलने ही न दे। भीड़ ने इसी दौरान
लोकतंत्र को कलंकित करने वाली उस अपील पर भी ताली बजाई थी जिसकी वजह से आपातकाल की
घोषणा करनी पड़ी थी। जेपी ने तब भारतीय सेना से अपील कर दी कि वो सरकार का आदेश
मानने से इनकार कर दे और इंदिरा को सत्ता से हटाने में जनता की मदद करे। आप कल्पना
कीजिए कि क्या स्थिति होती अगर सेना ने बग़ावत कर दी होती। जाने-अनजाने में देश को
सैन्य तानाशाही की तरफ झोंकने वाली वो अपील भी भीड़ को अच्छी ही लगी थी। तो ये थे
जेपी भक्त।</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसी
जेपी आंदोलन से निकले तमाम बड़े नेता भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों में जेल गए,
कुछ आज भी जेल में बंद हैं। तो भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े उस आंदोलन ने भ्रष्ट
राजनेताओं की बड़ी भीड़ इस देश को दी। और फिर न तो इन सबके लिए भीड़ को जिम्मेदार
ठहराया गया और ना ही भीड़ ने इसकी जिम्मेदारी ली क्योंकि, भीड़ की कोई जवाबदेही
नहीं होती। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>5 अप्रैल 2011 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर
अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हुआ। ये आंदोलन भी भ्रष्टाचार के आरोपों में धिरी
तत्कालीन मनमोहन सरकार के खिलाफ था। आंदोलन के मंच पर मैग्सेसे पुरस्कार से
सम्मानित अरविंद केजरीवाल, देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी, योग व्यवसायी बाबा
रामदेव समेत कई बड़े लोग मौजूद थे। लोगों को समझाया गया कि कांग्रेस नेतृत्व वाली
यूपीए की सरकार ही देश की तमाम समस्याओं की वजह है। भीड़ ने ये बात मान ली। यहां
भी भीड़ ने तर्क को जगह नहीं दी। यहां भी भीड़ ने सोचने के लिए खुद के विवेक का
इस्तेमाल नहीं किया। भीड़ ने मान लिया कि सोचना-समझना तो अन्ना हजारे, अरविंद
केजरीवाल, किरण बेदी और बाबा रामदेव का काम है। भीड़ का काम सिर्फ नारे लगाना और
ताली बजाना है। भीड़ का काम सिर्फ उनको कोसना है जिनको मंच पर मौजूद नेता कोसना
चाहते हैं। तब की ये भीड़ अन्ना भक्त थी। उस आंदोलन से देश को क्या मिला ये सवाल
अब अन्ना हजारे से पूछा जाना चाहिए।</span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-size: large;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब जो भीड़ है वो मोदी भक्त है। किसी को ये
नहीं पता था कि नोटबंदी से देश को क्या फायदा होना है लेकिन, भीड़ ने ताली बजाई।
किसी को नहीं पता था कि जीएसटी से कैसे आर्थिक सुधार को गति मिलेगी लेकिन, भीड़ ने
ताली बजाई। किसी को ये नहीं पता था कि अडानी और अंबानी के कर्जे माफ कर देने से
देश में कैसे औद्योगिक क्रांति आएगी लेकिन, भीड़ ने ताली बजाई। और आज जब
अर्थव्यवस्था डूब चुकी है, सरकार के पास वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, सैनिकों को वेतन
देने के पैसे नहीं हैं और सरकार सबके वेतन और भत्तों में कटौती करती जा रही है तब
भी भीड़ ताली ही बजा रही है। एक-एक कर कई छोटे उद्योग और रोज़गार बंद हो गए लाखों
लोगों से उनका रोज़गार छिन गया। उत्पादन क्षेत्र में चीन ने भारतीय बाजार पर कब्जा
कर लिया और भक्त ताली ही बजा रहे हैं। सरकार ने एलआईसी की कमाई लूट ली, रिज़र्व
बैंक की सत्तर साल कमाई पर डाका डाल दिया और भक्त ताली बजाते रहे। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; line-height: 115%;"><span style="font-size: large;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो मुश्किल काम विकल्प खड़ा करना नहीं है
मुश्किल काम है भारतीय लोकतंत्र को भीड़तंत्र बनने से बचाना। और ये काम राजनेता और
राजनीतिक दल नहीं करेंगे। ये काम देश की मीडिया को, छात्रों को, सामाजिक
कार्यकर्ताओं को, वकीलों, शिक्षकों को करना होगा। ये काम देश की आम जनता को करना
होगा। देश किसी मदारी का तमाशा नहीं होता कि बस कोई आया डुगडुगी बजाई और फिर कौए को
कबूतर बनाने वाली हाथ की सफाई दिखा गया और देश ताली पीटने लगा। जेपी से लेकर मोदी
तक के भक्तों को जवाबदेह बनाना सबकी जवाबदेही है। वरना ताली पीटते-पीटते कपार
पीटने की नौबत आ जाएगी। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-62187865990394567432019-08-28T23:34:00.002-07:002019-08-28T23:34:34.693-07:00चल झूठे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
झोला उठा कर चला जाएगा भोगी<br />
चल झूठे<br />
राज सिंहासन पर बैठा योगी<br />
चल झूठे<br />
चिडिय़ा, पत्ती, फूल और कलियाँ<br />
सब उदास हैं<br />
मुझसे बिछड़ कर वो खुश होगी<br />
चल झूठे<br />
<div>
<br /></div>
</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-44365366991307156802019-08-12T18:52:00.000-07:002019-08-12T18:52:40.421-07:00सावरकर को वीर कहना भगत सिंह का अपमान है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार से कहा कि उनके साथ राजनीतिक बंदी जैसा ही व्यवहार किया जाए और फांसी देने की जगह गोलियों से भून दिया जाए. जबकि हिंदू राष्ट्रवादी सावरकर ने अपील की कि उन्हें छोड़ दिया जाए तो आजीवन क्रांति से किनारा कर लेंगे.<br />
1911 में जब सावरकर को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए अंडमान के कुख्यात सेल्युलर जेल में भेजा गया था, तब सावरकर ने अपनी 50 वर्षों की सज़ा शुरू होने के कुछ महीनों के भीतर ही अंग्रेज़ों के सामने उन्हें जल्दी रिहा करने की याचिका लगायी थी. एक बार फिर 1913 में और 1921 में मुख्यभूमि में स्थानांतरित किये जाने और 1924 में अंततः क़ैदमुक्त किये जाने तक उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने ऐसी अर्जी लगायी. उनकी याचिकाओं की मुख्य पंक्ति थी: मुझे छोड़ दें तो मैं भारत की आज़ादी की लड़ाई को छोड़ दूंगा और उपनिवेशवादी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.<br />
23 मार्च, 1931 को शहीद भगत सिंह और उनके दो बेहद क़रीबी साथी शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव को ब्रिटिश उपनिवेशवादी सरकार ने फांसी पर लटका दिया था. अपनी शहादत के वक़्त भगत सिंह महज 23 वर्ष के थे. इस तथ्य के बावजूद कि भगत सिंह के सामने उनकी पूरी ज़िंदगी पड़ी हुई थी, उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने क्षमा-याचना करने से इनकार कर दिया, जैसा कि उनके कुछ शुभ-चिंतक और उनके परिवार के सदस्य चाहते थे. अपनी आख़िरी याचिका और वसीयतनामे में उन्होंने यह मांग की थी कि अंग्रेज़ उन पर लगाए गये इस आरोप से न मुकरें कि उन्होंने उपनिवेशवादी शासन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा. उनकी एक और मांग थी कि उन्हें फायरिंग स्क्वाड द्वारा सज़ा-ए-मौत दी जाए, फांसी के द्वारा नहीं. यह दस्तावेज़ भारत के बारे में उनके सपने को भी उजागर करता है, जिसमें मेहनतकश जनता अंग्रेज़ों के ही नहीं, भारतीय ‘परजीवियों’ के अत्याचारों से भी आज़ाद हो.</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-83693638238373780892019-08-09T01:00:00.000-07:002019-08-09T01:00:52.339-07:00लोकतंत्र के मुर्दाघर में केवल जय-जयगान चलेगा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">.ना टीवी ना अखबार चलेगा लोकतंत्र के मुर्दाघर में केवल जय-जयगान चलेगा....</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">कश्मीर में पिछले चार दिनों से अखबार नहीं छपे हैं। बाहर से अखबार ले जाने पर रोक लगा दी गई है। टीवी चैनलों का प्रसारण बंद है। मोबाइल और लैंड लाइन फोन तो बंद हैं ही। आप अखबार पर रोक के क्या मायने समझते हैं ? सूचना और संचार पर ऐसी पाबंदी के क्या मायने समझते हैं ? जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार बता रहे हैं कि जुमे की वजह से कर्फ्यू में थोड़ी देरे के लिए सशर्त ढील होगी, फिर कर्फ्यू। सरकार बता रही है घाटी में शांति है। शांति है तो फिर कर्फ्यू क्यों है ? शांति है तो फिर अखबार और न्यूज चैनलों पर रोक क्यों है ? क्या हम दहशत के साये को शांति समझने की भूल कर रहे हैं ? क्या हम बंदूक के साए को लोकतंत्र समझने लगे हैं ? तो फिर ये गोली-बंदूक-सिपाही कितने दिन ? सच कहने की कहो मनाही कितने दिन ? घाटी में अपने ही घरों में कैद ये लोग किस गुनाह की सज़ा भोग रहे हैं ? समस्या सीमा पार पाकिस्तान है। कश्मीर हमारी समस्या नहीं है। समस्या पाकिस्तान से लगातार हो रही घुसपैठ है। कश्मीरी हमारी समस्या नहीं हैं। कश्मीरियों को रिहा कीजिए। सरकारी दहशतगर्दी की हद हो गई। बंद कीजिए ये तमाशा। धारा 370 के दो प्रावधानों को खत्म करने के आपके फैसले के साथ ये देश खड़ा है लेकिन, देश के इस समर्थन को भेड़चाल समझने की भूल मत कीजिए। नागरिक अधिकारों का ऐसा दमन मत कीजिए कि हालात 1975 जैसे हो जाएं और नतीजे 1977 जैसे। अपने ही नागरिकों की आंखों में दहशत देख कर प्रसन्न होना लोकतांत्रिक सरकार की नहीं क्रूर शासक की निशानी होती है। धरती के स्वर्ग ने मुस्कुराना छोड़ दिया है और आप अपने चेहरे पर विजित भाव लेकर घूम रहे हैं। किसको हराया है आपने ? किस पर विजय पाई है आपने ? कश्मीर में शांति और विश्वास बहाल करना सबका काम है। और सरकार की जिम्मेदारी है घाटी में शांति और विश्वास बहाल करना। दहशत के बादलों से अपनी नाकामी मत छुपाइए आप लोग। आपलोग कश्मीर जा क्यों नहीं रहे हैं ? जाइए लोगों को गले लगाइए। हमें आपका दंभ या अहंकार नहीं चाहिए। हमें हमारे कश्मीरियों के चेहरों पर वापस लौटी मुस्कान चाहिए।</span></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-33082315948627160622019-08-01T23:28:00.001-07:002019-08-01T23:28:41.616-07:00उनके हिस्से का हिंदुत्व ख़तरे में है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">गर्मियों में जिस धनौती नदी में अब धूल उड़ने लगी है बरसात में अब वही धनौती
फूंफकारती है। अमवा मझार के हाई स्कूल के फील्ड में रोजाना लगने वाली शाखा से
लौटते वक्त प्रमोद काका थोड़ी देर के लिए धनौती किनारे खड़े होते हैं। तिवारी टोले
वाले चौर का पानी बारी पर धनौती से मिलता है। जाल में गरई, पोठिया और टेंगरा
मछलियां खूब फंसती हैं। वैसे तो प्रमोद काका कभी मछली खरीदते नहीं हैं लेकिन
रोजाना वहां जाने का फायदा ये होता है कि बाबूलाल दुसाध कभी-कभार उन्हें एक-आध पाव
मछली दे दता है। प्रमोद काका के लिए वही दिन सबसे अच्छा होता है जिस दिन बाबूलाल
दुसाध उनके हाथ में मछली थमाते हुए कहता है कि </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">लीं तिवारी जी मछरी खाईं</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">। प्रमोद काका की ये खुशी
संकट में है। वो शाखा समाप्ती के बाद घर के रास्ते में हैं। बगल में धनौती उफना
रही है। सामने कुछ दूरी पर बारी है। वही बारी जहां से न जाने कितनों सालों से वो
मुफ्त की मछली बड़े चाव से खा रहे हैं। बड़ा असमंजस है। शाखा में अजय जायसवाल ने
बताया कि पटना वाले एक शुक्ला जी असली हिंदु निकले। एकदम हिंदुत्व के शिवाजी। शेर,
सवा शेर। दुकान वाले ने मुसलमान के हाथों खाना भेजा तो लेने से इनकार कर दिया। सनातन
धर्म की रक्षा के लिए भूखे सो गए। इतना ही नहीं सोए हिंदुओं को जगाने के लिए सोशल
मीडिया पर इस बात का प्रचार भी खूब किया। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रमोद काका असमंजस में हैं।
मुसलमान के हाथों भेजा गया खाना खा लेने भर से हिंदुत्व खतरे में आ जाता है </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;">! </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">काका का माइंड सुन्न हुआ जा
रहा है। वो तो कई बार रोज देवान के घर की बनी रोटी खा चुके हैं। छोटे थे तो रोज
देवान उन्हें गोदी में खेलाया करते थे। कई बार अपने हाथों अपने घर की बनी रोटी भी
खिलाई है रोज देवान ने। रोज देवान तो मुसलमान थे। प्रमोद काका का धर्म संकट बढ़ता
जा रहा है। सिर्फ मुसलमान के हाथों खाना भेजने भर से हिंदु धर्म जब खतरे में आ जाता
है तो फिर ये तो कई बार मुसलमान के घर की रोटी मुसलमान के ही हाथों खा चुके हैं।
मतलब इनके हिस्से का हिंदुत्व तो बचा ही नहीं है। वो तो कब का मिट गया है। मतलब अब
ये हिंदु नहीं रहे। काका का कनफ्यूजन बढ़ता जा रहा है। पैर लड़खड़ाने लगे। धम्म से
बैठ गए महुआनी में।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> काका कोई बुद्ध तो हैं नहीं कि तपस्या करने लगते। बरसात में
महुआ के पेड़ के नीचे बैठे तो चींटियों ने जहां-तहां शरीर पर रेंगना शुरू कर दिया।
बदन झाड़कर उठे तो सामने वही बारी जहां से वो वर्षों से हर बरसात में मछली लाते,
पकाते और खाते रहे हैं। हर साल बारी का ठेका <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाबूलाल दुसाध और हातिम अंसारी ही लेते रहते हैं।
साझे का ठेका सालों से चला आ रहा है। जाल में फंसी मछलियां हातिम अंसारी
निकाल-निकाल कर टोकरी में रखते जाते हैं और बाबूलाल दुसाध सब बेचने के बाद जो
थोड़ा बचता है उसी में से थोड़ा प्रमोद काका को दे देते हैं। हाय</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;">! </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">मुसलमान के हाथों पकड़ी गई
मछली खाते रहे हैं प्रमोद काका। मुसलमान के घर की रोटी भी खाई है प्रमोद काका ने।
एक कदम भी नहीं चल पाए कि धम्म से महुआनी में ही गिर पड़े प्रमोद काका। होश आया तो
देखा कि बारी पर पुल के किनारे लेटे पड़े हैं। कई लोग उनको घेरे खड़े हैं। बाबूलाल
दुसाध सिर की मालिश कर रहे हैं और हातिम अंसारी तलवों की मालिश कर रहे हैं। कोई
सीने की मालिश कर रहा है कोई पानी के छींटे मार रहा है। हड़बड़ा कर उठ बैठे प्रमोद
काका। थोड़ी देर में सबकुछ ठीक हो गया। बाबूलाल दुसाध ने एक किलो से भी ज्यादा
मछली एक उनके गमछे में बांध दी, हातिम अंसारी ने अपनी साइकिल से प्रमोद काका को
उनके घर तक पहुंचा दिया। सारा कनफ्यूजन दूर हो गया। न तो हिंदुत्व खतरे में है और
ना ही हिंदु खरते में है। खतरे में है तो बस हिंदु-हिंदु जपने वाले नेताओं की कुर्सी।
<o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-35936300044727565022019-07-28T03:22:00.002-07:002019-07-28T03:22:39.296-07:00डूबता बिहार, कौन जिम्मेदार ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;">समूचा उत्तर
बिहार हर साल भीषण बाढ़ की चपेट में होता है। सैकड़ों लोग मरते हैं, हजारों
कच्चे-पक्के मकान बह जाते हैं या फिर कटाव की वजह से गिर जाते हैं। फसलों की तबाही
से लाखों किसान हर साल बर्बाद होते हैं। डूबते-उतराते उत्तर बिहार के लोगों ने
इन्हीं हालातों में रचने-बसने की कला सीख ली है। डूबते-उतराते उत्तर बिहार के
लोगों को ये समझा दिया गया है कि सालाना तबाही एक प्राकृतिक आपदा है। </span><span style="line-height: 115%;">‘<span lang="HI">प्राकृतिक आपदा</span>’<span lang="HI"> की समझ विकसित होने के बाद तबाही के गुनहगार राहत-बचाव के सालाना लूट
वाले उर्स में शामिल हो जाते हैं। बिहार की इस बर्बादी की मीडिया रिपोर्टिंग भी
अज्ञानता के अंधकूप में भटकती दिखती है। न तो तथ्यों की पड़ताल, ना कोई अध्ययन और
ना कोई रिसर्च। मीडिया रिपोर्टिंग में बस लफ्जों की बाजीगरी और नाटकीयता का मंचन
होता रहता है।</span></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdnlk0XsyqpouncWRL8WJ5bjbQvX6k_uyUNilwiUYt6OjKSljfrDWUHA8o8jKaSHD7BX89bZsBvFXIIfzrjjY0wzZMV8x3eERC73pZeMfEgLa_T0pcOt_Hc0Ha_DsPbLL06RUItWYsdHI/s1600/0.35868600_1500445699_spread.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="785" data-original-width="1024" height="245" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdnlk0XsyqpouncWRL8WJ5bjbQvX6k_uyUNilwiUYt6OjKSljfrDWUHA8o8jKaSHD7BX89bZsBvFXIIfzrjjY0wzZMV8x3eERC73pZeMfEgLa_T0pcOt_Hc0Ha_DsPbLL06RUItWYsdHI/s320/0.35868600_1500445699_spread.jpg" width="320" /></a></span></div>
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"> <o:p></o:p></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भागलपुर में मची तबाही के लिए नेपाल और बरसात
को कोस रही मीडिया रिपोर्टिंग ये बताने कि लिए काफी है कि टीवी रिपोर्टिंग मर चुकी
है। राहत और बचाव की खामियों से आगे न तो रिपोर्टर सोच पा रहा है और ना ही डेस्क
पर बैठे लिखाड़ी। ग़म और आंसुओं को कैसे माल बना कर बेचा जाए सारा फोकस इसी पर है।
पिछले साल भी सारा फोकस इसी पर था, अगले साल भी सारा फोकस इसी पर रहेगा। बरसात भी
हर साल होगी, नेपाल भी वहीं रहेगा जहां वो आज है। इसमें से कुछ भी बदलने वाला नहीं
है। सरकार और मीडिया के लिए ये सबसे अच्छी स्थिति है कि बरसात हर साल आती है और
पड़ोस में पहाड़ों पर बसा नेपाल है। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भागलपुर में तबाही भी हर साल आती है। 1950 में
ही वैज्ञानिक कपिल भट्टाचार्य ने ये बता दिया था कि बाढ़ से भागलपुर बर्बाद हो
जाएगा। तब कपिल भट्टाचार्य को विकास विरोधी वैज्ञानिक बताया गया। तब कपिल
भट्टाचार्य की रिपोर्ट पर विचार कर रही सरकार को विकास विरोधी बताया गया। ये वो
दौर था जब पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज बनाने का विचार सामने आया
था। वैज्ञानिक कपिल शर्मा ने तब इसका विरोध करते हुए कहा था कि </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">फरक्का के कारण बंगाल के मालदा</span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">, </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">मुर्शीदाबाद के साथ बिहार के पटना</span><span style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">, <span lang="AR-SA">बरौनी</span>, <span lang="AR-SA">मुंगेर</span>, <span lang="AR-SA">भागलपुर और पूर्णिया हर साल पानी में
डूबेंगे।</span> </span><span style="line-height: 115%;">1971 <span lang="HI">में बिहार में अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ आई। ये वही साल है जिस साल फरक्का
बैराज बन कर तैयार हुआ। फरक्का बैराज बनने का बाद गंगा नदी का बहाव अवरुद्ध हुआ और
नदी में गाद बढती गई। </span><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">गंगा बिहार के ठीक मध्य से होकर गुजरती है। यह पश्चिम में बक्सर
जिले से राज्य में प्रवेश करती है और भागलपुर तक </span><span style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">445 <span lang="AR-SA">किलोमीटर की दूरी तय करती हुई झारखंड और
फिर बंगाल में प्रवेश कर जाती है</span></span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">। बिहार की
ज्यादातर नदियां गंगा में ही मिलती हैं और गंगा ही उनका पानी बंगाल की खाड़ी तक
पहुंचाती है। फरक्का बैराज बनने से पहले गैर बरसाती मौसमों में बिहार में गंगा की
औसत गहराई 12-14 मीटर हुआ करती थी जो अब मात्र 6-7 मीटर रह गई है। मतलब गाद भरने
से गंगा उथली हो गई है और अब वो सोन, गंडक, बूढ़ी गंडक समेत दर्जनों नदियों का
पानी ढो पाने में सक्षम नहीं है। </span><span style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>2016 में जब बिहार
की राजधानी पटना में गंगा की पानी घुसा और पटना और भागलपुर में तकरीबन तीन सौ लोग
बाढ़ से मरे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर
फरक्का बैराज हटाने की मांग की। लेकिन तबाही को विकास समझने-समझाने वाली 1950 वाली
सोच 2016 में भी मौजूद रही और फरक्का के मसले पर केंद्र सरकार ने विचार तक नहीं
किया। </span><span style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">उथली होने के साथ गंगा का स्वभाव भी बदला है। </span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">ऐसा लगता है कि </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">बरसात के मौसम में गंगा फरक्का में </span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">जाकर </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">ठहर </span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">जाती है</span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">।</span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"> अंजाम ये होता है
कि ये अपनी सहायक नदियों का पानी नहीं खीच पाती है और</span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"> इसक</span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">ी</span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"> </span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;">सहायक नदियां उफना
जाती हैं। गंगा की सहायक धाराओं के उफनाने से पूरा उत्तर बिहार डूब जाता है। </span><span style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैरानी है कि तबाही की इस वजह पर कोई चर्चा
नहीं हो रही। न तो राज्य की विधानसभा में तबाही की मूल वजह पर कोई चर्चा होती है
और ना ही लोकसभा में बिहार के सांसद मूल वजह पर कोई चर्चा कर पाते हैं। मीडिया से
तो ऐसी उम्मीद ही अब नहीं की जा सकती। उम्मीद बिहार की उसी जनता से की जा सकती है
जो हर साल तबाह और बर्बाद हो रही है। यही जनता एक दिन फरक्का बैराज का अंत लिखेगी।
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span lang="HI" style="background: white; color: #333333; line-height: 115%;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-78299579619560864662019-05-15T02:26:00.000-07:002019-05-15T02:27:19.297-07:00घोटाला होता रहा और जवान शहीद होते रहे !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
</div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<h2>
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">शहादत के नाम पर वोट मांगा जाएगा लेकिन सेना को हथियार नहीं
दिए जाएंगे। चुनावी गाली-गलौज के बीच शहादत और सेना के सम्मान का जिक्र भी बार-बार
हो रहा है। सरकार और सरकारी तंत्र के पास शोर मचाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बचा
भी नहीं है। क्योंकि, शोर नहीं मचा तो सच्ची बातें भी सुनाई देने लगेंगी। कई सच्ची
बातों को दबाने वाले इसी शोर के बीच जो हजारों ज़रूरी बातें दब गईं हैं उन्हीं में
शामिल है सेना को घटिया गोला-बारूद सप्लाई करने का मामला। सेना ने 15 पेज का एक खत
रक्षा मंत्रालय में तैनात रक्षा उत्पाद सचिव अजय कुमार को लिखा है। सेना ने इस खत
के जरिए घटिया गोला-बारूद और युद्ध उपकरणों से हो रहे नुकसान का जिक्र किया है और
मंत्रालय को चेताया भी है। सेना ने साफ लिखा है कि घटिया गोला-बारूदों और रक्षा
उपकरणों के कारण जवानों की जान जा रही है। और मैं ये लिख रहा हूं कि जवानों की जान
जाने पर मौजूदा केंद्र सरकार को शहादत वाली सियासत करने का मौका मिल रहा है।</span></span></h2>
</div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सेना की चिट्ठी से ये साफ होता है कि केंद्र
सरकार के स्वामित्व वाले ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड में भारी घोटाला हो रहा है और
देश को छद्म राष्ट्रवाद के नारों में उलझा कर गड़बड़झाले को दबाया जा रहा है।
क्योंकि भारतीय सेना को ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के जरिए ही टैंक, तोप, एयर
डिफेंस गन समेत बाकी कई रक्षा उपकरण मिलते हैं। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के पास गोला-बारूद
बनाने की 41 फैक्ट्री हैं। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का सालाना टर्न ओवर 19 हजार
करोड़ रुपए का है। सालाना 19 हजार करोड़ टर्नओवर वाला ये बोर्ड सेना को घटिया गोला-बारूद
सप्लाई कर जवानों की हत्या तो करवा ही रहा है हजारों करोड़ रुपयों का गड़बड़झाला
भी कर रहा है। जवानों की शहादत पर राजनीति करने वाली सरकार इस गड़बड़झाले की जांच
करवाएगी इसमें संदेह है। लेकिन शहादत वाले सियासी शोर में जो सच दब गया है वो
चौकाने वाला है। </span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">15 <span lang="AR-SA">पेज के अपने पेपर
में सेना ने बेहद </span></span><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">चौंकाने वाला सच सामने रखा है</span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">। इसमें बताया गया है कि </span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">105</span><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"> </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">एमएम की इंडियन फील्ड गन</span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">, 105 <span lang="AR-SA">एमएम लाइट फील्ड
गन</span>, 130 <span lang="AR-SA">एमएम एमए</span>1 <span lang="AR-SA">मीडियम गन</span>,
40 <span lang="AR-SA">एमएम एल-</span>70 <span lang="AR-SA">एयर डिफेंस गन और टी-</span>72,
<span lang="AR-SA">टी-</span>90 <span lang="AR-SA">और अर्जुन टैंक की तोपों के साथ
नियमित तौर पर </span></span><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">जो </span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">दुर्घटनाएं सामने आ रही हैं</span><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"> उसकी वजह घटिया
गोला-बारूद हैं</span><span lang="AR-SA" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">। </span><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;">इतना ही नहीं
करगिल फतह करने वाले बोफोर्स तोप के लिए घटिया गोला-बारूदों की सप्लाई हो रही है।
सेना ने जो सबसे ज्यादा चौकाने वाली जानकारी दी है वो देश की सुरक्षा के लिए बहुत
बड़ा खतरा है। सेना ने अपनी चिट्ठी में बताया है कि घटिया गोला-बारूद और रक्षा
उपकरणों की सप्लाई की वजह से सेना ने लॉन्ग रेंज की कुछ फायरिंग रोक दी है। </span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span lang="HI" style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>देश की सुरक्षा के साथ ये अब तक की सबसे बड़ी
लापरवाही है। चुनावी मंचों पर नारों के लिए इस्तेमाल हो रही सेना ही ख़तरे में है।
ना तो ढंग का खाना, ना वक्त पर वर्दी-जूतों के पैसे और ना ही दुश्मनों से लड़ने के
लिए कारगर गोला-बारूद। क्योंकि राष्ट्रवादी नारों को जवानों की शहादत से ऊर्जा
मिलती है। </span><span style="background: white; color: black; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-12737862590399555342019-05-13T07:12:00.000-07:002019-05-16T01:10:43.531-07:00नियोजित जज भी तो फैसला दे ही देंगे मी लार्ड<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;">तो बेहद चालाकी से ट्रेड यूनियन और कर्मचारी-मजदूर आंदोलनों को खत्म कर सत्ता-समाज ने ठेका-मजदूरी की विवशता खड़ी कर ही दी। इसमें सरकार ठेकेदार होगी और विभागों का कामकाज करने वाले ठेका मजदूर। बिहार में अब स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति होगी ही नहीं। सरकार की दलील है कि स्थायी नियुक्ति होने पर सेवा-शर्त और तबादलों की समस्या बनी रहती है जिससे शिक्षण कार्य बाधित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को सही माना और स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति को ही रोक दिया। स्कूल अब ठेके वाले शिक्षक चलाएंगे। सरकार की साजिश और कोर्ट के बे-सिर-पैर वाले फैसले से अधिकारी भी खुश हैं। लेकिन, वो ये नहीं सोच रहे कि कल ऐसी दलीलें उनके लिए भी कोर्ट में रखी जाएंगी क्योंकि, तबादले तो शिक्षा अधिकारी के भी होते हैं और डीएम के भी। डीएम के तबादले से भी कामकाज प्रभावित होता है। और सरकार की दलील मान लें तो फिर स्थायी कलेक्टर की ज़रूरत ही क्या है ? किसी एजेंसी को ठेका दे दीजिए वो टैक्स कलेक्ट कर लेगी। ऐसी दलीलें बाकी सरकारी पदों पर बैठे लोगों के लिए भी दी जा सकती हैं। ये दलील सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए भी दी जानी चाहिए। जरूरत ही क्या है स्थायी जजों की ? निविदा वाले जज भी तो फैसला सुना ही सकते हैं। तो फिर बेहतर यही होगा कि देश की सारी व्यवस्था ठेके पर दे दी जाए। ठेका एजेंसी ठीक से काम ना करे तो फिर दूसरी एजेंसी को काम दे दिया जाए। ऐसी व्यवस्था हो कि राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता करे और राष्ट्रपति देश चलाने की जिम्मेदारी किसी एजेंसी को दे दें। एजेंसी ठीक से काम करे तो फिर उसी को मौका दिया करें और अगर ठीक से काम ना करे तो निविदा के जरिए दूसरी एजेंसी को देश सौंप दिया जाए। जब सबकुछ ठेके पर चल सकता है तो फिर देश भी ठेके पर चल सकता है। इसकी शुरुआत स्कूलों से हो ही गई है अब सुप्रीम कोर्ट के जजों की स्थायी नियुक्ति रद्द कर उन्हीं जजों को निविदा पर तैनात कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।</span></div>
</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-46902796552521958142019-05-10T07:01:00.001-07:002019-05-16T01:11:14.387-07:00ये इंसाफ नहीं अदालत का थोपा हुआ फैसला है मी लॉर्ड<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">सरकार ठेकेदार और कर्मचारी ठेका मजदूर। बिहार के नियोजित शिक्षकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यही कहता है। ये फैसला नैसर्गिक न्याय के विपरीत है। ये फैसला जन कल्याणकारी राज की अवधारणा के भी विपरीत है। ये फैसला सरकार की शोषणकारी नीति का समर्थन है। इस फैसले को चुनौती दी जानी चाहिए क्योंकि, कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता ह</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1c1e21; display: inline; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">ै। वो अपनी और अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर ऐसा करता है क्योंकि उसे पता होता है कि अगर वो कम वेतन पर काम नहीं करेगा तो उस पर आश्रित इससे बहुत पीड़ित होंगे। कम वेतन देने या ऐसी कोई और स्थिति बंधुआ मजदूरी के समान है। इसका उपयोग अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि ये कृत्य शोषणकारी, दमनकारी और परपीड़क है और इससे अस्वैच्छिक दासता थोपी जाती है। सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आम आदमी के पास दो लोकतांत्रिक रास्ते होते हैं। पहले वो विरोध-आंदोलनों के ज़रिए सरकार से टकराता है और सरकार जब नहीं सुनती है तो अदालत की राह पकड़ता है। हैरानी की बात ये है कि बिहार के नियोजित शिक्षकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दमनकारी, शोषणकारी नीतियों की रक्षा की है और लाखों लोगों की अघोषित दासता को कानूनी शक्ल दे दी है। समान काम के लिए समान वेतन एक सिद्धांत है, इसे खारिज नहीं किया जा सकता। निजी स्कूलों का व्यवसाय बढ़ाने के लिए सरकारी शिक्षा को चौपट करने की साजिश को अदालती समर्थन मिलने लगेगा तो फिर देश अराजकता का शिकार हो जाएगा। सरकार जब सबकुछ निजी हाथों को सौंप देगी तो फिर एक दिन अदालतें भी किसी कॉर्पोरेट की दुकानें हो जाएंगी। कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे अगर सरकारों के पास नहीं होंगे तो फिर एक दिन सारे विभाग बड़ी कंपनियों के मैनेजर चलाने लगेंगे। सरकार कंपनियों के अधीन होगी और देश में कंपनी राज होगा। हैरानी है कि देश की आला अदालत ने सरकार की दलील मान ली। कल को सरकार कहेगी कि उसके पास अस्पताल चलाने के पैसे नहीं हैं, सड़क बनाने के लिए पैसे नहीं हैं, और जजों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं तब क्या आला अदालत सरकार के फैसले के साथ खड़ी होगी ? कोर्ट का ये फैसला वाकई हैरान करने वाला है। यही हाल रहा तो फिर सरकारों की ज़रूर ही क्या है। कंपनियों के मैनेजर ही देश चला लें। शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय का भ्रम बेहद मुनाफे के धंधे हैं। और हां, </span><span style="color: #1c1e21; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;">इन्साफ जालिमों की हिमायत में जायेगा,</span></span><br />
<span style="color: #1c1e21; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: large;">ये हाल है तो कौन अदालत में जाएगा।</span></span></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-33191533119284608642019-04-18T00:19:00.001-07:002019-05-16T01:11:31.471-07:00जिसका जवान बेटा मरा वो भी राष्ट्रवादी है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif;"><span style="font-size: large;">जेट एयरवेज के कैप्टेन अमित राय से मिलिए और उनके गहरे सदमे को समझने की कोशिश कीजिए। जेट एयरवेज के बंद होने से 20 हजार से ज्यादा लोग अचानक सड़कों पर आ गए हैं। अमित राय भी उनमें शामिल हैं। आसमान से धाराशायी हुए इन लोगों के पास कई यादें हैं। अमित राय के पास जो याद है वो कलेजा दहलाने वाली है। कुछ दिनों पहले अमित राय जब दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहे थे तभी उनके ह्वाट्स ऐप पर एक मैसेज आया। मैसेज जेट एयरवेज के एक एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर का था। इंजीनियर ने एप्लास्टिक एनीमिया से जूझ रहे अपने बेटे के इलाज के लिए अपने तमाम सहयोगियों से मदद मांगी थी। जेट एयरवेज के ज्यादातर कर्मचारियों की आर्थिक हालत बेहद खराब थी और कोई भी मदद की स्थिति में नहीं था। वक्त पर पैसों का इंतजाम नहीं हो सका और एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर के बेटे की मौत हो गई। मौत तो अब जेट एयरवेज की भी हो गई। 20 हजार से ज्यादा कर्मचारियों का घर-परिवार अब कैसी मुश्किलों में होगा ये मुझे नहीं पता लेकिन, जिस पिता ने पैसों के अभाव में अपने बेटे को तिल-तिल मरता देखा है उस पिता के दर्द को तो हम और आप महसूस कर ही सकते हैं। </span></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: large;">विपत्तियों का जो पहाड़ अचानक इन परिवारों पर टूटा है उसके पीछे हमारी-आपकी चुप्पी भी जिम्मेदार है। 8 नवंबर 2016 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया। दावा किया गया कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। अमीरों का कालाधन निकलेगा और गरीबों के पास पहुंचेगा। और भी कई दावे थे। बाद के दिनों में ये साफ दिखा कि आतंकवाद और बेलगाम हुआ, अमीर और अमीर हुए, गरीब और गरीब हुए। दावे तो खोखले थे लेकिन उन दावों में हमे-आपको भी बहुत खोखला किया। सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (CSE) द्वारा मंगलवार को जारी ‘State of Working India 2019' रिपोर्ट में यह कहा गया है कि साल 2016 से 2018 के बीच करीब 50 लाख पुरुषों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। नोटबंदी के दौरान बेरोजगार हुए ये लोग किसी एयरक्राफ्ट में इंजीनियर नहीं थे। जब एयरक्राफ्ट के मेंटेनेंस इंजीनियर के पास बेटे के इलाज के लिए पैसे नहीं जुट पाए तो फिर छोटी-मोटी तनख्वाह या दिहाड़ी वाले इन 50 लाख लोगों के परिवार अब किन हालात में होंगे जब इनकी आय का वो जरिया भी एक सनकी फैसले ने छीन लिया। उम्मीद है आप फर्जी नारों को किनारे लगा कर असली मर्म समझने की कोशिश करेंगे। आज से पांच साल पहले तक BSNL और भारतीय डाक विभाग की नौकरी को बेहद अच्छी नौकरी माना जाता है। पिछले पांच सालों में ये हालत हो गई कि BSNL के पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के पैसे नहीं हैं और भारतीय डाक विभाग बर्बाद हो चुका है। अब इन दोनों विभागों से कई हजार या फिर कई लाख लोग जबरन निकाल दिए जाएंगे। नौकरी से निकाले जाने के बाद इनमें कौन क्या करेगा हम नहीं जानते लेकिन इनलोगों के खुशहाल परिवारों पर मुश्किलों का पहाड़ टूटना तय है। राष्ट्र के लोगों को बदहाल-बेहाल-कंगाल करने वाले लोग जिस राष्ट्रवाद की बात कर रहे हैं दरअसल वो सोच ही फर्जी है। इन नकली राष्ट्रवादी नारों के जरिए सिसकियों का शोर दबाया जा रहा है। राष्ट्रवाद का मतलब राष्ट्र को खुशहाल बनाना होता है बदहाल बनाना नहीं। कैप्टेन अमित राय का मोबाइल फोन, कैप्टेन अमित राय के आंसू और कैप्टेन अमित राय के दर्द अपने साथ काम करने वाले एक सहयोगी के लिए उमड़-उभर रहे हैं। नोटबंदी के दौरान बेरोजगार हुए 50 लाख लोग, जेट एयरवेज के बंद होने से बेरोजगार हुए 20 हजार लोग, BSNL को संकट में डालकर और भारतीय डाक विभाग को बर्बाद कर जिन लोगों को बेरोजगार करने की तैयारी है उनमें भले ही हम और आप शामिल नहीं हैं लेकिन हम इस बात की गांरटी नहीं दे सकते कि जिस रोजगार से हम जुड़े हैं कल उस रोजगार के सामने संकट नहीं होगा। हमारे सामने उस एयक्राफ्ट इंजीनियर की कहानी तो है जिसके बेटे की मौत पैसों के अभाव में हो गई लेकिन, उन 50 लाख लोगों की कहानी हमारे पास नहीं है जो नोटबंदी की वजह से बेरोजगार हुए। संभव है इनमें से कई लोगों के पास कैप्टेन अमित राय से ज्यादा गहरे सदमे हों। अब ये आपको तय करना है कि आप फर्जी राष्ट्रवाद गढ़ने वाली उस भीड़ की जीत का जश्न मना रहे हैं जिस भीड़ ने लाखों जिंदगियों को गहरे सदमे दिए हैं या फिर उन लोगों के साथ खड़े हैं जो इस वक्त मुश्किल हालातों से जूझ रहे हैं।</span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-17424637679424188642019-03-17T23:21:00.002-07:002019-05-16T01:11:54.998-07:00इस्लाम: बिना गीता-बाईबिल के क़ुरान नहीं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span lang="HI" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large; line-height: 115%;">इस्लाम को मानने और
समझने के दावे करने वाले ज्यादातर लोग आपको ये बताते हुए मिल जाएंगे कि इस्लाम में
क़ुरान के अलावा किसी दूसरी मज़हबी किताब को जगह नहीं दी गई है। कम पढ़े-लिखे
मुसलमान जब ये बात कहते हैं तो ऐसा लगता है कि इस्लाम के जानकारों ने ज्यादातर मुसलमानों
को मज़हबी मामलों में अंधेरों में ही रखा है। इस्लाम की जो मूल अवधारणा है, भारत
में ठीक उसके विपरीत इस्लाम की व्याख्या दिखती है। कुछ मुस्लिम विद्वानों को छोड़
दें तो ज्यादातर मज़हबी जानकारों ने इस्लाम की ग़लत व्याख्या ही की है। क़ुरान को
लेकर ही बहुत सारी ग़लतफ़हमियां पैदा की गई हैं। बहुत लोगों का ये मानना कि क़ुरान
ही एक मात्र मज़हबी किताब है और सिर्फ क़ुरान ही ईश्वर प्रेरित है। ये अवधारणा
पूरी तरह से क़ुरान के विपरीत है। </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large; line-height: 115%;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8JMOEoLcJmXzhVB-gLwOMDWt5H8AYDnIQzBwSTMK9O_vcmav5OHg9_Lejn-bQ9dfNEYHxwuIs-pqSqPzYDvLFsOFcLnxNrQUxFgsP5_8y41oiMhvlqB_J54Y7myMbBsd5pihs2_8dOpA/s1600/Surf-Excel-Ad.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="450" data-original-width="900" height="160" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8JMOEoLcJmXzhVB-gLwOMDWt5H8AYDnIQzBwSTMK9O_vcmav5OHg9_Lejn-bQ9dfNEYHxwuIs-pqSqPzYDvLFsOFcLnxNrQUxFgsP5_8y41oiMhvlqB_J54Y7myMbBsd5pihs2_8dOpA/s320/Surf-Excel-Ad.JPG" width="320" /></a></span></div>
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;">क़ुरान में ये बात बार-बार दुहराई गई है कि
मुहम्मद साहब से पहले भी हर मुल्क और हर क़ौम में रसूल होते रहे हैं। क़ुरान में
साफ कहा गया है कि </span><span style="line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">इसमें कोई शक नहीं कि तुमसे पहले अल्लाह ने सब
क़ौमों में रसूल भेजे हैं।</span><span style="line-height: 115%;">’</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कुरान कहता है कि </span><span style="line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;">जो कुछ मैंने तुमसे कहा है वो सब पहले के लोगों के
पवित्र ग्रंथों में मौजूद है। सब कौमों में ईश्वर ने पैग़ंबर(अवतार) भेजे हैं। उन
पैग़ंबरों में हम एक-दूसरे के साथ किसी तरह का फर्क नहीं करते। सबको एक बराबर
मानते हैं और सबकी एक ही तालीम है।</span><span style="line-height: 115%;">’</span><span lang="HI" style="line-height: 115%;"> कुरान के मुताबिक
किसी रसूल को मानना और किसी को न मानना या रसूलों में फर्क करना, किसी को बड़ा या
किसी को छोटा मानना कुफ्र या नाशुक्रापन है। कुरान में एक जगह काफ़ेरूने हक्क़ा
शब्द का इस्तेमाल है। काफ़ेरूने हक्क़ा का मतलब बताया गया है सबसे बड़ा काफिर।
क़ुरान में काफ़ेरूने हक्क़ा उन्हें बताया गया है जो क़ुरान के अलावा दूसरी मज़हबी
क़िताबों को, इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों को और मुहम्मद साहब के अलावा दूसरे
धर्मों के अवतारों और उनके उपदेशों को ख़ारिज करते हैं। क़ुरान अपने से पहले के सब
धर्म ग्रंथों को, सब मज़हबी किताबों को भी अपनी तरह ठीक मानता है।</span></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large;"><span lang="HI" style="line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस्लाम को लेकर भारत में जो दूसरी धारणा
विकसित गई वो है ज़बरदस्ती और धोखे से धर्म परिवर्तन। जबकि क़ुरान में साफ कहा गया
है कि मज़हब के मामले में किसी से कोई ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए। ये भी कहा गया
है कि धर्म या नेकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस बात में नहीं है कि
किसी से झूठ बोलकर या जब़रदस्ती मज़हबी बात मनवाई जाए। इस्लाम कहता है कि असली दीन
दूसरों के साथ नेकी है कोई रीति-रिवाज नहीं। क़ुरान में कहीं ये नहीं गया है कि
नमाज़ करते वक्त चेहरा पूरब की तरह हो या पश्चिम की तरह। </span><span style="line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: large; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मतलब, गीता, गुरु ग्रंथ साहिब, बाईबिल या फिर
इस किस्म के तमाम धर्म ग्रंथों को नकारने वाले दरअसल क़ुरान के उपदेशों को नकारते
हैं। इस्लाम के अलावा दूसरे धर्म-मज़हबों को ख़ारिज करने वाले क़ुरान के उपदेशों
को नकारते हैं। भारत के मुसलमानों को भारत के इस्लामिक जानकारों ने ही मज़हबी
मामलों में अंधेरे में रखा है। इसलिए ये ज़रूरी है कि क़ुरान की रौशनी में इस्लाम
को समझा जाए। भारत के वो लोग जो बिना इस्लाम को जाने-समझे मुसलमानों से नफरत करते
हैं वो भी काफ़ेरूने हक्का हैं। इस्लाम किसी भी धर्म का विरोध नहीं करता, किसी भी
धर्म ग्रंथ के खिलाफ नहीं होता और किसी भी अवतार, संत, फकीर को खारिज नहीं करता।
इस्लाम में सर्व धर्म समभाव की अवधारणा है। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span></div>
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-64272438175835412432019-03-12T02:17:00.000-07:002019-03-12T02:17:10.234-07:00इस्लाम: समझिएगा तो नफरत नहीं होगी-03<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">मुहम्मद साहब से
पहले अरब किसी देश की शक्ल में नहीं था। कभी-कभार अलग-अलग हिस्सों में छोटी-छोटी
बादशाहतें ज़रूर कायम हुईं। छठी शताब्दी तक अरब में इसी किस्म की छोटी बादशाहतें
कायम होती रहीं हैं। मक्का और मदीना भी मुहम्मद साहब के वक्त में अलग-अलग कबीलों
में बंटे शहर थे। इन कबीलों की कई शाखें होतीं थीं और सैकड़ों घरानों के हजारों
परिवार एक कबीले में रहा करते थे। कबीले का हर सदस्य दूसरे सदस्य के लिए हर किस्म
की कुर्बानी देता था। कबीले के किसी एक सदस्य के साथ दूसरे कबीले के लोग बदसलूकी
करते थे तो उसे पूरे कबीले की बेइज्ज़ती मानी जाती थी और फिर बदले के लिए
खून-ख़राबा होता रहता था। कई कबीले तो पीढ़ियों तक एक-दूसरे से जंग लड़ते थे। हर
कबीले का एक सरदार होता था जिसे शेख कहते थे। ये शेख उस कबीले का हाकिम</span><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">, </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">जरनैल और
पंडा-पुरोहित हुआ करता था। हर कबीले को लगता था कि उसका कबीला सर्वश्रेष्ठ नस्ल का
है और उसके कबीले की मान्यता ही पवित्र है। एक मान्यता पूरे अरब में थी कि अगर
किसी का कत्ल हो गया तो उसकी आत्मा चिड़िया बनकर उसके कब्र पर तब तक मंडराती रहती
थी जब तक कि उसके कत्ल का बदला कत्ल से ही नहीं ले लिया जाए।</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNY_Vyb0LcU7S_8eRMsUHJEDboNq34wwwr1_hzwp05I5xaqkKLb-xSD_t13Bony6JGWSWIAIrV7mzuFjdldEE6eiFjq5dhD-cPGPmhUHmEeUxJV-jy8mHrQfKIrVavj2jIuDAyCzGYvSk/s1600/Women-in-Saudi-Arabia-660x350-1508472875.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="660" height="169" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNY_Vyb0LcU7S_8eRMsUHJEDboNq34wwwr1_hzwp05I5xaqkKLb-xSD_t13Bony6JGWSWIAIrV7mzuFjdldEE6eiFjq5dhD-cPGPmhUHmEeUxJV-jy8mHrQfKIrVavj2jIuDAyCzGYvSk/s320/Women-in-Saudi-Arabia-660x350-1508472875.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><o:p></o:p></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कबीलों की आपसी लड़ाइयों में जो स्त्री-पुरुष
कैद कर लिए जाते थे वो ग़ुलाम बना लिए जाते थे। महिलाओं से अरबों का बर्ताव बेहद
अमानवीय था। कई कबीलों में बेटियों को ज़िंदा दफनाने के बाद उत्सव मनाने का रिवाज
था। आलम ये था कि किसी की मौत के बाद उसकी बीवी किसी और की मिल्कीयत हो जाती थी।
एक पुरुष कई स्त्रियों से और एक स्त्री कई पुरुषों से विवाह कर सकते थे। दो-चार
शहरों को छोड़कर सारा अरब खाना-बदोश था। पानी की जरूरत के मुताबिक कबीले जगह बदलते
रहते थे। लेकिन अरब के कबीलों में साल के चार महीने शांति के होते थे। इस दौरान
आपसी लड़ाइयां बंद हो जाती थीं और कबीलों के पुराने झगड़ों को खत्म करने की
कोशिशें भी होती थीं। इसी दौरान अरब के लोग काबा आकर मक्का की यात्रा करते थे।
मुहम्मद साहब से पहले ही काबा अरबों का तीर्थ स्थान था। </span><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इन्हीं परिस्थितियों में इस्लाम का अवतरण
हुआ। मान्यता है कि मुहम्मद साहब जब चालीस साल के थे तब रात को उन्हें आवाज़ आई </span><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">‘<span lang="HI">ऐलान कर</span>’<span lang="HI">।
मुहम्मद साहब इस आवाज़ के मायने नहीं समझ पाए। एक-एक कर ये आवाज़ तीन बार आई।
तीसरी बार आवाज़ सुनकर मुहम्मद साहब घबरा गए और पूछा </span>‘<span lang="HI">क्या
ऐलान करूं </span>?’ <span lang="HI">जवाब मिला—</span>“<span lang="HI">ऐलान कर अपने
उसी रब के नाम पर जिसने कायनात बनाई है। जिसने प्रेम से प्रेम का पुतला आदमी बनाया
है। ऐलान कर तेरा रब बड़ा ही दयावान है, उसने आदमी को सोचने-समझने की ताक़त दी,
आदमी को वो सब बातें सिखाई जो वो नहीं जानता है।</span>“ <span lang="HI">फिर एक रात
आवाज आई कि </span>“<span lang="HI">जा उठ</span>! <span lang="HI">और रब्ब का संदेश
दुनिया तक पहुंचा।</span>“<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मुहम्मद साहब परेशान रहने लगे। धीरे-धीरे वक्त
गुजरता गया। मुहम्मद साहब की बेचैनी बढ़ती गई। उनकी हालत देख उनकी पत्नी ख़दीजा से
रहा नहीं गया। ख़दीजा के एक रिश्तेदार थे बरका। बरका यहूदी और ईसाई धर्म के बड़े
विद्वान थे। एक दिन मुहम्मद साहब को लेकर खदीजा अपने रिश्तेदार बरका के पास गईं।
मुहम्मद साहब ने बरका को सारा हाल सुनाया। बरका ने मुहम्मद साहब को बताया कि वो
खुदा के भेजे पैग़ंबर हैं और अब उन्हें वही करना चाहिए जो उनका खुदा उनसे कह रहा
है।</span><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तीन साल तक संदेह और संशय में जीने के बाद
मुहम्मद साहब अचानक एक दिन पैग़ंबरी की राह पर निकल पड़े। कहा जाता है कि जिस दिन
वो पैग़ंबरी की राह पर निकले उस दिन के पहले वाली रात को उन्हें आवाज़ आई थी कि </span><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;">‘<span lang="HI">ऐ चादर में लिपटे हुए, उठ और
लोगों को आगाह कर और अपने रब्ब की बड़ाई कर और अपने कपड़ों को साफ कर और अपने
मैलेपन से बच और दूसरों की सेवा करने के लिए किसी पर अहसान मत जता और अपने रब्ब के
लिए सब्र से काम ले।</span>’<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-theme-font: major-bidi; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: major-bidi; mso-hansi-theme-font: major-bidi;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span lang="HI"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मुहम्मद साहब का इलहाम का ये दावा धर्मों के
इतिहास में कोई नई बात नहीं थी। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दुनिया के
तमाम धर्मों को स्थापित करने वालों पीरों-पैग़बंरों, वलियों, ऋषियों-महात्माओं ने
अपने-अपने तरीक़े से इसका दावा किया है। वेद, तौरेत, इंजील को मानने वाले
अरबों-अरब लोग अपने-अपने धर्म ग्रंथों को ईश्वर की रचना ही मानते हैं।</span></span></div>
</div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-90433769084735861922019-03-10T00:02:00.000-08:002019-03-10T00:03:26.157-08:00इस्लाम: समझिएगा तो नफरत नहीं होगी-02<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: mangal, serif; font-size: 14pt;">यहूदियों के बीच
ऊंच-नीच का बहुत भेद तो था ही वैज्ञानिक सोच का घोर अभाव था। ईसाइयों के बीच
ऊंच-नीच का भेद तो नहीं था लेकिन ईसाइयों के बीच घोर अवैज्ञानिकता थी। तब ईसाइयों
के बीच धर्मांधता का दौर था। आलम ये था कि बीमारी की हालत में इलाज करवाना धर्म
विरुद्ध माना जाता था। दवाओं से इलाज करवाना पाप माना जाता था। कहा जाता था कि
बीमार लोगों को गिरजे के बुतों और पादरियों के पास जाकर दुआएं मांगनी चाहिए।
ईसाइयों के बीच झाड़-फूंक और गंडे-तावीज का चलन था। धर्मांधता का जोर इतना था कि
दवाओं से इलाज करने वालों को ईसाई सम्राट मौत की सज़ा देते थे। कुस्तुनतुनिया के
सम्राट का जोर जहां तक था वहां ईसाई धर्म ग्रंथ के अलावा किसी दूसरी किताब के
पढ़ने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान था। इसके अलावा ईसाई धर्म में मरियम को लेकर भी
विवाद था। कुछ लोग मरियम को ईश्वर की मां मानते थे तो कुछ लोग ईसा की मां। इस
विवाद की वजह से ईसाई धर्म के बीच भीषण रक्तपात हुआ। शहर के शहर लाशों से पटने
लगे। रोम, कुस्तुनतुनिया और सिकंदरिया के पादरियों के बीच वर्चस्व का ऐसा संघर्ष
छिड़ा कि खुद पादरी ही नरसंहार करवाने लगे। ईसाई संतो-महंतों की फौजें तब के
सम्राटों की फौजों से मिलकर वर्चस्व की लड़ाई में आम लोगों का खून बहाने लगीं और
इसे ही धर्म रक्षा के लिए युद्ध बताने लगीं। यहूदियों और ईसाइयों की धर्मांधता और
हिंसा से लोग तंग आ चुके थे। इन परिस्थितियों में मुहम्मद साहब का उदय एक ऐतिहासिक
घटना थी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAildVkyIZnMpUoDWsfIZe9EFt-l7GqmRqGlsP6YWxj58cZHniBYyuk4UF8UY6ENhZrYnMhBgyp7GSyQhnRmhW4FGMrh-ypWirebRcMran5oOWxZ4bSyo-te3wBEY7nhTndAYdEKQQDBc/s1600/islam_muslims_praying_banner_7-31-16-1.sized-770x415xc.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="415" data-original-width="770" height="172" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAildVkyIZnMpUoDWsfIZe9EFt-l7GqmRqGlsP6YWxj58cZHniBYyuk4UF8UY6ENhZrYnMhBgyp7GSyQhnRmhW4FGMrh-ypWirebRcMran5oOWxZ4bSyo-te3wBEY7nhTndAYdEKQQDBc/s320/islam_muslims_praying_banner_7-31-16-1.sized-770x415xc.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span><br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मुहम्मद साहब के जन्म से पहले यमन के हरे-भरे
इलाकों पर इथियोपिया के बादशाह ने कब्जा कर लिया था। अरब के उत्तर और पश्चिम में
रोमी सल्तनत और पूरब में ईरान की बादशाहत थी। हेजाज़ के इलाके को वहां के पुराने
वाशिंदों ने अपनी बहादुरी के दम पर बाहरी बादशाहों की हुकूमत से बचा रखा था। इसी
इलाके में मक्का शहर है जहां इस्लाम जन्मा और मदीना ही जहां वो पनपा। रेगिस्तान के
इलाके तब बेकार हुआ करते थे। हेजाज़, नज़द, हज़रमौत और ओमान ही वो इलाके थे जो खुद
को आज़ाद कह सकते थे। मुहम्मद साहब का जन्म जिस ख़ानदान में हुआ उस खानदान को बनी
हाशिम कहा जाता था। अपने ज़माने में हाशिम मक्का का हाकिम था और हाशिम की शोहरत
बहुत दूर-दूर तक फैली थी। हाशिम के बाद हाशिम के भाई मुत्तलिब और मुत्तलिब के बाद
हाशिम के बेटे अब्दुल मुत्तलिब गद्दी पर बैठे। अब्दुल मुत्तलिब के सबसे छोटे बेटे
अब्दुल्ला की मौत 25 साल की उम्र में ही हो गई। अब्दुल्ला की मौत के कुछ ही दिनों
बाद उनकी बेवा आमिना ने मुहम्मद साहब को जन्म दिया। अब्दुल मुत्तलिब के बड़े बेटे
अबु तालिब ने मुहम्मद साहब का पालन-पोषण किया। 10-12 साल की उम्र में ही मुहम्मद
साहब को अपने खानदान के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा और तिज़ारती काफिले के साथ सीरिया
के फलस्तीन और यरुसलम की कई यात्राएं करनी पड़ी। इन यात्राओं के दौरान मुहम्मद
साहब का साबका ईसाई और यहूदियों से हुआ। तब सीरिया एशिया की सबसे सुखी और
वैज्ञानिक सोच में सबसे अव्वल देशों में गिना जाता था। सिकंदर के बाद दशकों तक ये
देश यूनानियों के कब्जे में रहा था। यूनानियों ने धर्म ग्रंथों के अलावा विज्ञान
और दर्शन की पढ़ाई पर जोर दिया। इसी दौरान यहां बौद्ध धर्म ने खूब विस्तार पाया। लेकिन,
मुहम्मद साहब के समय कुस्तुनतुनिया पर ईसाई सम्राट का कब्जा हो चुका था और सम्राट
थियोडोसियस ने सीरिया में ज्ञान-विज्ञान को अपराध घोषित कर दिया था। थियोडोसियस, बौद्ध
धर्म और विज्ञान को पाप मानता था। उसने आदेश दिया था कि जो लोग सिकंदरिया और रोम
के ईसाई पोप के बताए मार्ग पर नहीं चलेंगे उनको देश निकाला दे दिया जाएगा। यहूदी
रिवाज से ईस्टर का त्यौहार मनाने वाले लोगों को मौत की सज़ा दे दी जाती थी। इसी
दौरान ईसाई संत आगस्टाइन ने ये आदेश दिया कि जिन किताबों में धरती को गोल बताया
गया है उन्हें जला दिया जाए और उन किताबों को पढ़ने वालों को सज़ा दी जाए। आगस्टाइन
ने कहा कि इंजील में धरती को चिपटा लिखा गया है इसलिए धरती को चिपटा मानना ही धर्म
है। संत आगस्टाइन और पोप ग्रिगरी के कहने पर रोम के मशहूर पैलेटाइन लाइब्रेरी को
आग लगा दी गई और गणित, भूगोल, खगोलशास्त्र और वैद्यकी पढ़ने वालों को देश से निकाल
दिया गया। डॉक्टर और दार्शनिकों की खोज-खोज कर हत्या की जाने लगी। हुक्म दिया गया
कि </span><span style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">‘<span lang="HI">बैपतिस्मे के वक्त तीन बार पानी
में डुबकी लगा लेना, शहद और दूध मिलाकर पी लेना, कपड़े या जूते पहनते वक्त माथे पर
क्रूश का निशान कर लेना और मरियम और इसाई संतों की मूर्तियों के सामने प्रार्थना
करना ही सारी बीमारियों का इलाज है। इसके अलावा किसी और विधि से इलाज करवाने वाले
और इलाज करने वाले को मौत की सज़ा दी जाए।</span>‘<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ये बात साफ होती है कि वो सीरिया जो यूनानों
के वक्त ज्ञान-विज्ञान और दर्शन की रौशनी देख चुका था ईसाइयों के वक्त धर्मांधता
की मूर्खता देख रहा था। यही सारी बातें मुहम्मद साहब का प्रभावित करने लगीं। </span><span style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">जारी है.... </span><span style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><br /></span>
<span lang="HI" style="font-family: mangal, serif; font-size: 18.6667px; line-height: 115%;">इस्लाम: समझिएगा तो नफरत नहीं होगी-01 पढ़ने के लिए नीचे वाले लिंक पर जाएं</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=5112750366707260053#editor/target=post;postID=1415190479055206145;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=1;src=postname </span><o:p></o:p></span></div>
<br />
<br /></div>
ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5112750366707260053.post-14151904790552061452019-03-07T00:16:00.003-08:002019-03-09T23:57:32.800-08:00इस्लाम: समझिएगा तो नफरत नहीं होगी- 01<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">मैं नास्तिक हूं और मेरे लिए धार्मिक पुस्तकें आस्था का विषय नहीं हैं बावजूद
इसके मैं अलग-अलग धर्मग्रंथों को पढ़ता हूं। मैंने धर्म पर आस्था रखने वाले कई
लोगों को धर्मग्रंथ पढ़ते देखा है और धर्म का धंधा करने वालों को पाया है कि उनके
पास किसी धर्म की बुनियादी जानकारी नहीं होती। हिंदु धर्मग्रंथ तो पहले से ही घर
में मौजूद थे। बाद के दिनों में मैंने इसाई, इस्लाम और सिख धर्मग्रंथ भी ले लिए।
पटना वाले गुरमीत सिंह जी ने सूरज प्रकाश दिया और रांची वाले वेसाल आज़म ने कुरान
का हिंदी तर्जुमा दिया। </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">IAS </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">अधिकारी रहे तहसीम अहमद जी ने गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति
से प्रकाशित </span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">पैग़म्बर मुहम्मद
क़ुरान और हदीस इस्लामी दर्शन</span><span style="font-size: 12pt; line-height: 115%;">’ </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;">किताब दी। इस तरह से मेरे पास कुछ और किताबें हो गईं।
रामचरित मानस की चौपाइयां तब से पढ़ रहा हूं जब उनके मतलब समझ भी नहीं पाता था।
रामायण तब पढ़ी जब मैं 9वीं और 10वीं क्लास में था। बीए फर्स्ट ईयर में था तब पहली
बार गीता पढ़ी। फिर एक बार कह दूं मैं नास्तिक हूं। मैं इन किताबों को सिर्फ किताब
मानता हूं। लेकिन हाल के दिनों में धर्म मानने वालों के बीच जो धर्मोन्माद दिखा
उसने ये साबित किया कि धर्मों का मौजूदा स्वरूप धर्मांधता है। गली-गली घूम रहे
टीकाधारियों और दाढ़ीधारियों से आप उनके धर्म की गूढ़ता नहीं जान सकते। इनमें
ज्यादातर उस कौए के पीछे भागने वाले लोग हैं जिसके बारे में किसी ने कहा है कि वो
कान लेकर भाग रहा है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 12pt; line-height: 115%;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipn3rMamRVlQFrfyC5LTXqEBldO7oOlAoxBxrDLqAjZnQNljGFtN1ijoVqO3ohjgRZGfSW6BSh470BaQVD0OobnK4fbua69h6RdCI-LTTouK01Pup2nT1L5j4hyphenhyphenGpE9QXbAtfMF5rMKic/s1600/9781506416663.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1036" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipn3rMamRVlQFrfyC5LTXqEBldO7oOlAoxBxrDLqAjZnQNljGFtN1ijoVqO3ohjgRZGfSW6BSh470BaQVD0OobnK4fbua69h6RdCI-LTTouK01Pup2nT1L5j4hyphenhyphenGpE9QXbAtfMF5rMKic/s320/9781506416663.jpg" width="206" /></a></span></div>
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<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भारत की बहुसंख्यक आबादी इस्लाम को
जिस नज़रिए से देखती है वो नज़रिया विकसित किया है भारत के ही कठमुल्लों ने। ये
कठमुल्ले वो लोग हैं जो मजहब का म तो नहीं जानते लेकिन खुद को मजहबी ठेकेदार बनाए
रखना चाहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि वो लोग जो न धर्मांध हैं और ना ही धर्म की
किसी बंदिश को मानते हैं वो धार्मिक आडंबरों को खारिज करते हुए धर्म-मजहब मानने
वालों को ये बताएं कि उनके धर्मग्रंथ क्या कहते हैं। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भारत में इस्लाम बाहर से आया। अरब
के देशों में सबसे पहले यहूदी ही धर्म की तरह खड़ा हुआ। उससे पहले वहां अलग-अलग
कबीलों में अलग-अलग मान्यताएं थीं लेकिन, वो कबीले किसी एक धर्म का प्रवर्तन नहीं
कर पाए। यहूदियों के बाद ईसाई धर्म ने वहां पांव जमाए। यहूदियों, अलग-अलग कबीलों
और ईसाइयों के बीच भीषण रक्तपात होते रहते थे। ईसा की पहली सदी में रोम के सम्राट
टाइटस ने यहूदियों को फलस्तीन से निकाल दिया। बाद के दिनों में ईसाइयों के आपसी
झगड़ों में इतनी हिंसा हुई कि सीरिया (शाम) और दूसरी कई जगहों से उनको निकाला गया।
इसी दौरान बड़ी तादाद में ईसाई और यहूदी अरब देशों मे जाकर बसे। अरब की एक बड़ी
आबादी इब्राहिम को अपना पूर्वज मानती थी। बाद के दिनों में ये मान्यता यहूदी और
ईसाई धर्म में भी स्थापित हो गई कि इब्राहिम ही यहूदियों और ईसाइयों के पूर्वज थे।
वो इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल की मूर्तियों की उपासना का वक्त था। बाद में
इब्राहिम और इस्माइल के साथ ईसा की मां मरियम की मूर्तियां भी रखी जाने लगीं। इस
तरह से एक मिश्रित संस्कृति का विकास शुरू हुआ लेकिन, यही मिश्रण बाद के दिनों में
बड़े रक्तपात की वजह बना। <span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यहूदी एक ईश्वर और बहुत सारे
अवतारों के अलावा एज़रा को भगवान का बेटा मानते थे। यहूदियों में छुआछूत बहुत
ज्यादा थी और दूसरी मान्याताओं को वो नीच समझते थे। वो दूसरे धर्मों को नीच और
नापाक मानते थे। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ईसाई धर्म यहूदी के बाद आया था।
ईसाई धर्मावलंबियों का मानना था कि यहूदियों के बीच लकीर की फ़कीरी है और घटिया
रस्मों का चलन है। तब ये माना गया कि ईसाई धर्म यहूदी की ही एक शाखा है और
यहूदियों के बीच धर्म सुधार आंदोलन चला रहा है। यहूदियों की बीसियों मूर्तियों की
जगह ईसाइयों ने त्रिमूर्ति पूजा को तरजीह दी। इन तीन मूर्तियों में ईश्वर, ईसा और
उस मानी हुई आत्मा की मूर्ति हुआ करती थी जिसके बारे में मान्यता है कि उसी आत्मा
के जरिए ईसा की कुंआरी मां मरियम को गर्भ ठहरा था। कुछ जगहों पर ईश्वर, ईसा और
मरियम की त्रिमूर्ति हुआ करती थी। कुछ जगहों पर इन तीन मूर्तियों के अलावा कई
संतों और फ़रिश्तों की मूर्तियां भी हुआ करती थीं। </span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
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<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">क्रमश</span><span style="font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;">:</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"> <o:p></o:p></span></div>
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ASIT NATH TIWARIhttp://www.blogger.com/profile/00088572745446527981noreply@blogger.com0