Tuesday, December 29, 2009

यही है हमारा होना तो न होने में बुरा क्या था

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हम पिछड़े, क्योंकि जातियों में बिखरे।
जातियां,उपजातियां, और वर्ग सदियों से हमारे साथ हैं, जैसे चस्पा हों हमारी पहचान पर ये। इनसे इतर शायद हम कुछ हो हीं नहीं। हम हैं इसका एक ही प्रमाण है की हमारी एक जाति है। उस जाति में भी हमारा एक वर्ग है। कुल मिलाकर एक कुआं तैयार है कुनबे के रुप में और हमें उसी में रहना है। निकले तो गए। विधर्मी हो गए। अब कोई नहीं पूछेगा। हमारी पूछ गई। इस पूछ ने हमें कैद कर रखा है। जब कैद हों, गुलाम हों तो फिर मुकम्मल प्रगति की बात भी कैसे सोचें, सो सोचना ही छोड़ दिया। अब कुएं में भीड़ बढ़ती गई, भीड़-भाड़ ने कुंठा पैदा की, और कुंठा ने मारपीट। लड़ाई अब जीवन का एक हिस्सा है। कभी खुद के कुएं में भीड़े तो कभी एक कुआं दूसरे से भीड़ा तो कभी कुओं का समूह आपस में लड़े। दुर्गतिको अच्छा मौका मिल गया, उसने हमारी नसों को जकड़ा और हममें समाहित हो गया। विकास को अभी कौन पूछता है। पिछड़े हैं, क्योंकि हम बिखरे हैं। बिखरे रहने में गर्व भी है। हम ब्राम्हण के बेटा हैं, है न गर्व की बात, हम क्षत्रीय हैं, ये भी कम गर्व की बात नहीं, और कन्हैया यदुवंशी थे इतना क्या कम है। सबके पास अपने तर्क हैं, अपना गर्व है, अपना एक कुआं है। अब इस कुएं से कौन निकले, गर्व तो इसी बात का है न कि हम एक कुएं से बाहर कुछ नहीं जानते। मतलब इस कुएं से बाहर हमारा कुछ भी नहीं।
गौर से सोचिए कितने कंगाल हैं हम, दरिद्र , महा दरिद्र, हमारे पास तो कुएं के अलावा कुछ है ही नहीं, और हम इस भ्रम में गर्व पालते रहे कि हम कमाल के हैं। 90 के दशक में लालू ने नारा दिया भूरा बाल साफ करो, मायावती ने कहा तिलक,तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार, बवाल होना था सो हुआ। पर जिन्होंने बवाल किया उन लोगों ने ही बाद में कोयरी चेतना रैली, कुर्मी स्वाभिमान रैली, दलित बचाओ रैली, सवर्णअवर्ण, न जाने कौन-कौन सी रैलियां कीं। हम टूटते गए, बिखरते गए। और आज इतने टुकड़े हो गए कि खुद में ही अपना अक्स ढूंढना मुश्किल हो गया है। अब संयुक्त की ताकत लग कैसे सकती है? सामूहिक प्रयास कैसे हो? और जब सामूहिक भागीदारी ही सिफर हो तो पिछड़ेंगे नहीं तो क्या होगा? सो हम पिछड़ते गए। कुनबे ने कुनबे को खाया, और विनाश ने जश्न मनाया।
चेतना कब आएगी, अगर ये सवाल है, तो लानत है हम पर। चेतना हमारे अंदर है, और उसका इस्तेमाल भी हमें करना है, । हम सब जानते हैं,बस करना नहीं चाहते। आखिर करेंगे कब? क्यों न कर सके अब तक? और नहीं किया अभी तक तो क्यों नहीं कर रहे अब, सवाल ये होने चाहिए।

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