Friday, April 13, 2018

अपनी बहन-बेटियों के लिए ही सही अब नागरिक की हैसियत में वापस लौटिए


कठुआ, उन्नाव और समस्तीपुर में हुई बलात्कार के बाद हत्या और बलात्कार की घटनाओं पर मचा शोर थोड़ा कम हुआ है। अब ज़रूरी है कि हम खुद से कुछ सवाल पूछें। सोशल मीडिया पर ये सवाल उठाया गया कि कठुआ में मुस्लिम लड़की की बलात्कार के बाद हत्या की गई तो मीडिया ने बहुत शोर मचाया और समस्तीपुर में हिंदू लड़की की रेप के बाद हत्या पर मीडिया ने कोई शोर नहीं मचाया। इस बेहूदा सवाल से भागना ठीक नहीं होगा। जिम्मेदार लोग फकीर नहीं होते जो सवालों से मुंह छुपाने कि लिए झोला उठाकर भाग जाएं। जिम्मेदार लोगों को जवाब देना होता है। बेहूदगी से भरे इस सवाल का जवाब नहीं दीजिएगा तो बेहूदगी बढ़ती जाएगी। कठुआ और समस्तीपुर की घटनाओं में समानता नहीं है इसलिए दोनों को एक चश्मे से नहीं देखा जा सकता। समस्तीपुर में बच्ची के साथ एक युवक रेप करता है और उसकी हत्या कर देता है। घटना सामने आते ही समाज और प्रशासन दोनों अपना काम करते हैं। जबकि, कठुआ में एक मंदिर में एक लड़की के साथ कई दिनों तक गैंगरेप होता है, पुलिस गैंगरेप करने वालों के बचाती रहती है और फिर अंत में लड़की की हत्या कर शव छुपाने की योजना भी पुलिस ही बनाती है। कहा तो ये भी जा रहा है कि एक पुलिस अधिकारी ने ये तक कहा कि अभी मत मारना मुझे भी मज़े ले लेने दो। क्या समस्तीपुर में भी ऐसा कुछ हुआ था ? नहीं न। तो फिर दोनों घटनाओं को  मीडिया में बराबर स्पेस कैसे मिल जाता ? समस्तीपुर की घटना के बाद क्या किसी मुस्लिम संगठन ने बलात्कारी के पक्ष में रैली निकाली ? नहीं, लेकिन कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ कई दिनों तक मंदिर में गैंगरेप होता रहा, उसकी हत्या की गई और हिंदूवादी संगठन ने बलात्कारियों के पक्ष में रैली की। इस रैली में जय श्री राम के नारे लगे। ऐसा इस देश में पहली बार हुआ जब बलात्कारियों के पक्ष में उन्मादी धार्मिक गोलबंदी करने की कोशिश की गई। हाथ में तिरंगा लेकर, जुबान पर जय श्री राम लेकर बलात्कारियों के पक्ष में भीड़ खड़ी दिखी। इसलिए समस्तीपुर और कठुआ की घटनाओं को आप एक चश्मे से न देखें। कठुआ में बलात्कारियों के समर्थकों के हाथों में लहराता तिरंगा कितना गौरवान्वित हुआ होगा ये तिरंगा ही जाने, बलात्कारी-हत्यारों के जुबान से जय श्री राम के नारे सुन राम कितने फूले समाए होंगे ये राम ही जानें। मेरी समझ में यह तिरंगे का घोर अपना था और राम की मर्यादाओं के साथ बलात्कार था। वैसे पहले भी ये तबका राम के जयकारे उनकी भक्ति में नहीं लगाता रहा है। पहले भी राम के जयकारे सत्ता की भूख में लगते रहे हैं और अब जिस्म की भूख में लगने लगे हैं। इसलिए हर घटना में हिंदू-मुस्लिम करने वाले इस वक्त अपने घर में अपनी मां-बहन के साथ बैठें और जरा उनसे स्त्री देह की गरिमा समझने की कोशिश करें।
   अब बात उन्नाव वाली घटना की। उन्नाव वाली घटना इतनी बड़ी नहीं होती अगर सत्ता-प्रतिष्ठान ने ठीक से काम किया होता। सत्ता-प्रतिष्ठान ने एक आरोपी को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। लड़की को खामोश करने की पूरी किशिशें हुईं, लड़की के पिता की हत्या सत्ता-समाज ने की और फिर किस्म-किस्म के बेहूदा तर्क सत्ता-समाज ने गढ़े। डीजीपी ने कहा कि आरोपी विधायक के खिलाफ इतने साक्ष्य नहीं कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सके लेकिन, वहीं डीजीपी ये नहीं बता पाया कि पीड़ित लड़की के पिता के खिलाफ कौन से साक्ष्य थे कि उनको गिरफ्तार कर लिया और फिर पीट-पीट कर मार डाला।   
   आप कोसिए, सबको कोसिए। सरकार को, पुलिस को, राजनेता को कोसते-कोसते अगर आप खुद को भी नहीं कोस रहे हैं तो यकीन मानिए आप ईमानदार नहीं हैं। बलात्कार को हिंदू-मुस्लिम के खांचे में धकेलने वाला समाज बलात्कार भोगने के काबिल ही हो सकता है। बलात्कार के पक्ष में रैलियां करने वाला समाज बलात्कार भोगने के काबिल ही हो सकता है। बलात्कारी नेता के पक्ष में कुतर्क गढ़ने वाली भीड़ बलात्कार भोगने के काबिल ही हो सकती है। बलात्कार के पक्ष में खड़ी राजनैतिक विचारधारा बलात्कारी ही हो सकती है।
     इसलिए ज़रूरी है कि अभी भी आप समर्थक और भक्त की हैसियत से ऊपर उठ कर आम नागरिक की हैसियत में वापस लौटिए, हिंदू-मुस्लिम के सिकुड़े दायरे से बाहर निकलिए और दूसरों की बहन बेटियों कि फिक्र तो दूर की बात, अपनी ही बहन-बेटियों को इन उन्मादियों से बचा लीजिए।   

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