Saturday, February 2, 2019

मोहन भागवत को ये दिन देखने ही थे

तो ऐसा पहली बार हुआ जब विश्व हिंदू परिषद के किसी कार्यक्रम में संघ प्रमुख को विरोध का सामना करना पड़ा। ये विरोध पहले ही हो जाना चाहिए था। देर से ही सही लोगों को ये बात समझ आ गई कि संघ परिवार के लिए राम मंदिर का मुद्दा, आस्था का मुद्दा नहीं है। ये बात समझने में देर ज़रूर हुई लेकिन जब लोगों ने समझी तो ठीक से समझी कि संघ परिवार की आस्था बीजेपी की सरकार में है राम में नहीं। कुंभ में आयोजित धर्म संसद में धर्म कहां खड़ा था किसी को पता ही नहीं चला। ऐसा लगा जैसे बीजेपी की दो दिवसीय कार्यशाला हो। लेकिन मज़ेदार ये कि जिन लोगों को राम की आस्था के नाम पर जुटाया गया था वो ये समझ गए कि संघ परिवार का मकसद राम मंदिर के आसरे बीजेपी के लिए माहौल बनाना है। ये संत भी समझ गए थे और यही वजह है कि देश के चारों प्रमुख अखाड़ों ने इस बार वीएचपी के इस धर्म संसद का बहिष्कार किया था। बावजूद इसके वीएचपी ने राम मंदिर के नाम पर धर्म संसद में बड़ी संख्या में लोगों को जुटा लिया। लेकिन इस बार दावं उल्टा पड़ गया। कार्यक्रम के दूसरे दिन जितना समय मोदी सरकार को दोबारा मौका देने वाले प्रवचन को दिया गया उसका चौथाई भर हिस्सा भी राम मंदिर मुद्दे को नहीं दिया गया। फिर क्या था लोग असली खेल समझ गए और धर्म संसद के नाम से चल रही राजनीतिक कार्यशाला के खिलाफ उठ खड़े हुए। 
    संध परिवार और उससे जुड़ी वीएचपी के लिए ये घटना गंभीर चुनौती है। ऐसा पहली बार हुआ है जब संत समाज संघ परिवार के खिलाफ खड़ा हुआ है और ऐसा पहली बार हुआ है जब धर्म संसद के नाम पर चल रही बीजेपी कार्यशाला का अपने ही लोगों ने विरोध किया है। ये भी पहली बार हुआ है कि अब अपने ही लोग राम मंदिर के नाम पर बीजेपी का एजेंडा चलाने का आरोप संघ परिवार पर लगाने लगे हैं। संघ के अपने ही लोगों को ये पता चल गया है कि ये सारी कवायद सिर्फ और सिर्फ बीजेपी की सत्ता के लिए होती रही है और बीजेपी को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए संघ परिवार राम को आगे करता रहा है।
   तो इस बार अपनों ने ही पोल खोल दी। उठ गए राम के पक्ष में और जब राम के पक्ष में खड़े हुए तो स्वभाविक तौर पर संघ के विरोध में दिखे। राम के पक्ष में खड़े हुए तो बीजेपी का विरोध दिखा। राम मंदिर के पक्ष में बोल रहा हर आदमी बीजेपी और संघ परिवार के खिलाफ बोलता दिखा।
   ये तो होना ही था क्योंकि, राम नाम की चादर तान कर कब तक सच पर पर्दा डाले रखा जा सकता था। किसी न किसी दिन तो सच को बाहर आना ही था। सच बाहर आया तो हंगामा हो गया। पर्दा हटते ही पता चल गया कि जिसे धर्म संसद बता रहे थे वो तो असल में बीजेपी की कार्यशाला थी। जहां राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की बात कह कर लोगों को जुटाया गया था वहां तो बीजेपी सरकार के लिए रास्तों के तलाश हो रही थी। बस क्या था मुट्ठियां तन गईं। आस्था के नाम पर वोटबैंक खड़ा करने वाले इस खेल की पोल खुल गई। लेकिन इतने कुछ नहीं होता। अभी बहुत कुछ जानना बाकी है इस खेल के बारे में। अभी भी बहुत कुछ पर्दे के पीछे ही छिपा कर रखा गया है। इसलिए ज़रूरी है कि आप सावधान रहें क्योंकि, पर्द के पीछे खड़े सत्ता भोगियों ने न तो अपने परिवार से कभी पहलू खान दिया है और ना ही चंदन गुप्ता। दंगों में मारा जाना आम आदमी के नसीब का क़िस्सा होता है और सत्ता भोगना नेताओं नसीब का हिस्सा होता है। इसलिए अभी भी बहुत सारे पर्दे हटाने हैं आपलोगों को। सही वक्त है एक-एक कर वो सारे पर्दे नोच डालिए जिनके आसरे राजनीति अपने धतकर्म छुपाती रही है और अपनी साजिशें साकार करती रही है।

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