Friday, August 9, 2019

लोकतंत्र के मुर्दाघर में केवल जय-जयगान चलेगा

.ना टीवी ना अखबार चलेगा लोकतंत्र के मुर्दाघर में केवल जय-जयगान चलेगा....
कश्मीर में पिछले चार दिनों से अखबार नहीं छपे हैं। बाहर से अखबार ले जाने पर रोक लगा दी गई है। टीवी चैनलों का प्रसारण बंद है। मोबाइल और लैंड लाइन फोन तो बंद हैं ही। आप अखबार पर रोक के क्या मायने समझते हैं ? सूचना और संचार पर ऐसी पाबंदी के क्या मायने समझते हैं ? जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार बता रहे हैं कि जुमे की वजह से कर्फ्यू में थोड़ी देरे के लिए सशर्त ढील होगी, फिर कर्फ्यू। सरकार बता रही है घाटी में शांति है। शांति है तो फिर कर्फ्यू क्यों है ? शांति है तो फिर अखबार और न्यूज चैनलों पर रोक क्यों है ? क्या हम दहशत के साये को शांति समझने की भूल कर रहे हैं ? क्या हम बंदूक के साए को लोकतंत्र समझने लगे हैं ? तो फिर ये गोली-बंदूक-सिपाही कितने दिन ? सच कहने की कहो मनाही कितने दिन ? घाटी में अपने ही घरों में कैद ये लोग किस गुनाह की सज़ा भोग रहे हैं ? समस्या सीमा पार पाकिस्तान है। कश्मीर हमारी समस्या नहीं है। समस्या पाकिस्तान से लगातार हो रही घुसपैठ है। कश्मीरी हमारी समस्या नहीं हैं। कश्मीरियों को रिहा कीजिए। सरकारी दहशतगर्दी की हद हो गई। बंद कीजिए ये तमाशा। धारा 370 के दो प्रावधानों को खत्म करने के आपके फैसले के साथ ये देश खड़ा है लेकिन, देश के इस समर्थन को भेड़चाल समझने की भूल मत कीजिए। नागरिक अधिकारों का ऐसा दमन मत कीजिए कि हालात 1975 जैसे हो जाएं और नतीजे 1977 जैसे। अपने ही नागरिकों की आंखों में दहशत देख कर प्रसन्न होना लोकतांत्रिक सरकार की नहीं क्रूर शासक की निशानी होती है। धरती के स्वर्ग ने मुस्कुराना छोड़ दिया है और आप अपने चेहरे पर विजित भाव लेकर घूम रहे हैं। किसको हराया है आपने ? किस पर विजय पाई है आपने ? कश्मीर में शांति और विश्वास बहाल करना सबका काम है। और सरकार की जिम्मेदारी है घाटी में शांति और विश्वास बहाल करना। दहशत के बादलों से अपनी नाकामी मत छुपाइए आप लोग। आपलोग कश्मीर जा क्यों नहीं रहे हैं ? जाइए लोगों को गले लगाइए। हमें आपका दंभ या अहंकार नहीं चाहिए। हमें हमारे कश्मीरियों के चेहरों पर वापस लौटी मुस्कान चाहिए।

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