Wednesday, October 7, 2015

घोषणा पत्र मतलब झूठ का पुलिंदा

घोषणापत्र जारी करते-करते सियासी दल अब विजन डॉक्यूमेंट जारी करने लगे.. नाम बदला, रंग-रोगन बदले, स्टाइल बदली ...लेकिन इससे आम आदमी के बीच कोई बदलाव आया क्या.. पत्र से लेकर डॉक्यूमेंट तक के सफर में सिफर से ज्यादा मिला क्या
      रोजी-रोटी के लिए मुबंई-दिल्ली के चौराहों पर रोजाना जुटती भीड़ भोजपुरी-मैथिली में एक दूसरे से बतियाती रहती है... बिहार की जिंदगी को लेह से लेकर लद्दाख तक जीने वाली ये भीड़ चुनाव के वक्त वोटबैंक होती है.. इस भीड़ का हालचाल जानने की कोशिश तक नहीं करने वाले इसके लिए खुला पत्र लिखते हैं...नाम है घोषणा पत्र.. 2010 में नीतीश कुमार ने घोषणा पत्र में लिखा था कि जीत गए तो भूमि सुधार क़ानून को लागू करेंगे.. नीतीश तो जीत गए लेकिन ये कानून हार गया.. पटना में गंगा के किनारे मरीन ड्राइव वाला उनका वादा लोगों की आंखों के समंदर में तैरता रहा और पांच साल बीत गए.. मरीन के सपने भी मर गए.. सपने तो उनके भी मरे जो रोजगार के जरिए रोटी की गोलाई माप रहे थे.. नीतीश कुमार ने एक करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था.. ये सपना जन्मा और मर गया..तब की सरकार दोनों की थी..बीजेपी की भी,जेडीयू की भी..लेकिन अब दोनों पल्ला झाड़ रहे हैं
     डेढ़ साल पहले देश ने इसी तरह के सपने सजाए थे.. तब बिहार ने विजन डॉक्यूमेंट पर भरोसा कर लिय़ा था..वादों को हकीकत समझ लिय़ा था...नरेंद्र मोदी में उद्धरक की झलक देख ली थी..झोली भर दी बीजेपी की..लेकिन टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी... सिसकियां लेतेसपनों को 15 लाख रुपयों का इंतजार अब भी है.. सालान एक करोड़ बेरोजगारों को रोजगार देने वाले सपनों के बिखरे टुकड़े अभ भी पांवों में चुभ रहे हैं.. तब विजन डॉक्यूमेंट ने आंखें चौधिया दी थीं, अब क्लीयर विजन तक नहीं बचा..सब धुंधला सा नजर आ रहा है
  इस बार फिर वोट के खेत में पत्र भी हैं डॉक्यूमेंट भी... सपनों का संसार है... बिखरे सपनों की सिसकियां भी...लोकतंत्र का महापर्व जो है

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...