भारतीय आम समाज में आंख
मारने की कई वैरायटी मौजूद है...अलग-अलग मौकों पर आंख मारने के अलग-अलग मायने भी
हैं.. बावजूद इसके आंख मारने की कोई संसदीय परंपरा नहीं रही.. जो परंपराएं रहीं
हैं वो ध्वस्त हो रहीं हैं..लिहाजा नई परंपराओं के लिए जगह तो वैकेंट हो ही रही है..तो
क्या आंख मारने को संसदीय परंपरा में शामिल कर लेना चाहिए.....आइए एक
मनोरंजक-व्यग्यात्मक लेख पढ़िए..
आंख मार दी.. और ऐसे वक्त
पर मारी, ऐसी जगह पर मारी की देश भर की आंखों में चुभ गई.. विरोधियों की आंखों में
तो तीर जैसी जा धंसी.. माइक नहीं तोड़ी, मुक्का नहीं मारा, टेबल पर नहीं कूद
पड़े...आंख मार दी...और बस लोकतंत्र की बची-खुची गरिमा को भी मिट्टी में मिला
दिया.. लोकतंत्र में, लोकसभा में, माइक तोड़ने वाले आंखों के तारे बन जाते हैं,
बांहें मड़ोरने वाले आंखों के लाल होते हैं.. मुक्का-मुक्की कर ली तो फिर मंत्री
पद पक्का...लेकिन आंख मारी तो आंखों के शूल हो गए.. अब जो हुआ सो
हुआ..सबकुछ सीरियस ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं...भारतीय लोकतंत्र में जितनी आज़ादी
चुनावी घोषणाओं के लिए है उतनी ही आज़ादी मनोरंजन के लिए भी है.. अब ये तो हमारा
कसूर है कि मनोरंजन के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का हम पूरा इस्तेमाल ही नहीं
करते... आंख मारना अगर सभ्य लोकतंत्र को मंजूर नहीं है, तो न हो.. हमारे मनोरंजन
को, रुमानियत को, शरारत को तो मंजूर है न.. तो फिर मनोरंजन कर चुकाए बिना हम मस्ती
में डूबें तो इस संसदीय परंपरा को भला क्यों आपत्ती हो.. वो क्या है न हमारे
मनोरंजन के संसार में आंखों ही आंखों में कई बातें हो जाया करती हैं... वैसे आंखों
ही आंखों में इशारे होते रहे हैं और कई बड़े घोटाले भी होते रहे हैं.. लेकिन इस
किस्म के इशारों से संसदीय व्यवस्था की गरिमा पर असर नहीं होता है..अब देखिए ना
जिन लोगों ने लोकसभा में आंख मारने वाली घटना देखी वो दुनिया की बाकी घटनाओं को
कुछ पल के लिए भूल गए और फिर यहीं से डाउट हुआ कि आंखमारू स्क्रिप्ट में हो न हो
कुछ राज़ है..वरना आंख मारने को भला इतना बड़ा मुद्दा बनाया ही क्यों जाता ..खैर, सबकुछ हुआ, बस ये पता
नहीं चला कि आंखों से तूने ये क्या कह दिया और थोड़ी देर पहले तक आंखें मिलाने की
चुनौती देने वाले अचानक क्यों आंखें चुराने लगे.. कम से ये ही बता दिया
होता कि अंखियों के झरोखे से देखा किसको था..खैर हम तो यही दुआ करेंगे कि किसी को
आंखों की किरकिरी न बनाएं.. और फिर गुस्ताखियों को किनारे करते हुए आगे बढ़ें और
लगे हाथ फुल एंटरटेनमेंट के लिए थोड़ी देर के लिए प्रिया प्रकाश को भी याद करें.. बहुत सारे गानों के बोल
मैंने लिख दिए हैं..तुरत मोबाइल उठाइए और गानों में खो जाइए...बस आंख मत मारिएगा