Sunday, December 31, 2017

नमस्ते सदा वत्सले गया तेले लेने...गुड मॉर्निंग बोलिए जनाब....

प्रभु, हमें माफ कीजिएगा। हम तो निश्छल भाव से नमस्ते सदा वत्सले बोलते रहे। हमें लाठी-टोपी वाले निक्कर पंडे ने ये बताया था कि नमस्ते सदा वतस्ले बोलने से ही प्रभु प्रसन्न होते हैं। निक्कर पंडे ने ही बताया था कि नमस्ते सदा वत्सले बोलना ही हमारी संस्कृति है। हे प्रभु, हमारी भूल के लिए हमें माफ करना। हम तो आस्थावान लोग ठहरे। निक्कर पंडे-पुजारियों की बात सिर झुका कर मानने वाले लोग ठहरे। आस्था के मामले में हम अपने विवेक का इस्तेमाल भी पाप समझते हैं। हमने कभी भी आस्था पर कोई तर्क-वितर्क नहीं किया प्रभु। हमें तो निक्कर पंडे-पुजारियों ने बताया कि गुड मॉर्निंग बोलना कुसंस्कार है और कुसंस्कार से बच कर रहना है। निक्कर पंडे ने ही बताया कि नमस्ते सदा वत्सले बोलना संस्कार है और संस्कार धारण करना है। लेकिन, जब से ये सुना है कि गुड मॉर्निंग नहीं बोलने से आप रुष्ट हैं मेरा दिल डूबा जा रहा है। अब तक की तमाम निश्छल साधना बेकार जाती दिख रही है। अपनी मूर्खता पर क्षोभ हो रहा है। 

प्रभु, हम भक्तों की मूर्खता से आप भली-भांति परिचित हैं। मूर्ख न होते तो आपके भक्त क्यों होते ? ये हमारी मूर्खता ही तो है कि हम तब भी ये नहीं समझ पाए कि पश्चिमी संस्कृति ही हमारा ध्येय होना चाहिए जब आपने मेक इन इंडिया का नारा दिया। निक्कर पंडों के चक्कर में हम पश्चिम संस्कृति को कोसते रहे और आपने फिर हमें चेताया। आपने स्किल इंडिया बोला। हम मूरख लोग तब भी नहीं समझ पाए प्रभु। जब आपने स्टैंडिंग इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे सांस्कृतिक वरदान दिए तब भी हम मूर्खों को अक्ल नहीं आई। हे प्रभु हम तो निक्कर पंडे पर आंख मूंद कर भरोसा करते रहे और अंग्रेजी को कोसते रहे। आपने स्टार्ट अप इंडिया कहा तब भी हमारी आंखें नहीं खुलीं।
आज जब आपने गुड मॉर्निंग नहीं बोलने पर नाराजिक जाहिर की तो दिल डूबने लगा। अपनी तुच्छता, मूर्खता पर गुस्सा आ रहा है प्रभु।
प्रभु, आज मैं प्रण ले रहा हूं कि नमस्ते सदावत्सले को अब कभी अंगीकार नहीं करूंगा अब तो सिर्फ और सिर्फ गुड मॉर्निंग बोलूंगा। प्रभु, आपको प्रसन्न करने के लिए वैसे तो पहले ही भक्तों ने सारे संस्कार छोड़ दिए हैं। कुछ अंश बचे रह गए हैं उन्हें भी त्याग देने का प्रण लेते हैं प्रभु।

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