Wednesday, December 7, 2016

संघवाद के खिलाफ

गर तुम हिटलर के नाती हो, हम भी बापू के पोते हैं
आज़ाद चंद्रशेखर की आवाज़, भगत सिंह की थाती हैं।
सुन ले गोडसे की पीढ़ी तुम, हम राम-बुद्ध के वंशज हैं
तुम बिन तुगलक गर बनते हो, हम कौटिल्य शिखा लहराते हैं
तेरी हर साज़िश को प्रण से मिट्टी में हम मिलाते हैं।
गर तुम छप्पन ईंची छाती हो, हम भी हिंदुस्तानी माटी हैं
हम गंगा-जमुना की लहरें, गीता-कुरान से पोथे हैं
गर तुम हिटलर के नाती हो, हम भी बापू के पोते हैं।

सीधी बात

सीधी बात
न मोहब्बत के दिन हैं येन विरहा की रात है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
ना नसों पर ब्लेड चलती है
ना ही शिकवे-शिकायत है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है

उनींदी रात को जब भी
अकेलेपन ने मुझे घेरा
दिन के उजाले में मतलबी भीड़ का डेरा
चला गया कोई भी नस्तर दिल में चुभाकर
जाना यही हक़ीक़त
नहीं इसमें जज्बात है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
मुझे याद है वो दिन
जब मिले थे हम और तुम
न सीधा जान पाए थे
न हम पहचान पाए थे
फिर सिलसिला कुछ यूं ही चल पड़ा था शायद
बस इसी तरह वो दिन मुझको याद है
मैं तुम्हे याद करता हूं
सीधी सी बात है
तुम्हें भी याद हैं वो दिन
तुम्हें भी मैं याद आता हूं
बस इसी भरोसे को ओढ़ता-बिछाता हूं
यकीं ये भी है मुझको
तुम्हें शिकवा नहीं मुझसे
बस इतनी सी बात है
मैं तुम्हें याद करता हूं
सीधी सी बात है

सच्चा-झूठा

कुछ रूठा कुछ टूटा होना पड़ता है,
कुछ सच्चा कुछ झूठा होना पड़ता है
ये रोग मुहब्बत का कुछ होता ऐसा है
कुछ हंसना, कुछ पल खातिर रोना पड़ता है
पल-पल सदियों जैसा कुछ लगता रहता है
धड़कनों से दिल भी कुछ कहता रहता है
रिश्ता ये गल्ले का हिसाब नहीं होता
इश्क में कुछ पाना, कुछ खोना पड़ता है

Tuesday, December 6, 2016

जीवंत सच्चाई

जीवंत सच्चाई
आज जब जीवंत सच्चाइयां कविता बनकर
दस्तक दे रही हैं हमारी खामोश जीवन मूल्यों को
तो हम देख रहे हैं त्रासद एवं बिलबिलाते लोगों को
लहूलुहान न सिर्फ स्वप्रगति की चाह में
बल्कि कांटे बोते दूसरों की राह में,
भागमभागी-आपाधापी के इस दौर में
फुर्सत कहां दिल के रिश्तों को जोड़ने की
अपने भाव-संवेग, दुख-दर्द किसी से बांटने की,
दौड़ने-भागने की आपाधापी में
हम घोल रहे हैं ज़हर, पनपा रहे हैं सुख नाशक रोगों को
आज जब जीवंत सच्चाइयां कविता बनकर
दस्तक दे रही हैं हमारी खामोश जीवन मूल्यों को
हम देख रहे हैं त्रासद एवं बिलबिलाते लोगों को

फासीवाद के विरुद्ध

फासीवाद के विरुद्ध
वो बता रहे हैं, वो क्या करेंगे किसी ने उनके खिलाफ बोला तो
बच्चों-बूढ़ों, मजलूमों की आवाज़ से डरे वो लोग जता रहे हैं कि वो निडर हैं
उन्हें मंजूर नहीं कोई भी दूसरी विचारधारा
उनकी विचारधारा की पौध के सूखने का डर है
उन्हें मालूम है बड़ी पोपली है उनकी ज़मीन
वो डरते हैं उनसे जिनके पेट खाली हैं
वो डरते हैं उनसे जिनकी ज़ुबान है
वो डरते हैं हक़ मांगती हर आवाज से
उन्हें चाहिए पाषाण शांति, पत्थर सा खड़ा देश
जो न चले, न बोले, न सुने, न तोले
वो जब चाहें छेनी-हथौड़ी से उसे तोड़ दें, फोड़ दें
इसीलिए इंसानों की हक़मारी कर वो पिलाते हैं पत्थरों को दूध
वो इंसानों को मानते हैं राष्ट्रीय जानवर, जानवर को मानते हैं राष्ट्रीय पशु

सत्ता आग लगाती है

सत्ता आग लगाती है
अनुभव की स्याही से वक्त के पन्ने पर
कितना कुछ लिखते हैं हम और आप
हम शब्दों से नाप लेते हैं पेट की गहराई
भावों से माप लेते हैं रोटी का भूगोल
और वो हमें घुमाते रहते हैं गोल-गोल
गोल-गोल घुमाने के लिए भी बनती है रणनीति
जब एेंठती है हमारी अंतड़ी तो सिखाते हैं धर्मनीति
जब फांकाकशी मांगती है विकास का हिसाब
तो वो थमाते हैं हमें राष्ट्रभक्ति की गोटी
उन्हें मालूम है मौत के बाद वाला किस्सा
सबसे ज्यादा मारक यंत्र है, सबसे बड़ा झूठ है
उस लोक के नाम पर इस लोक में सब ठूंठ है
नारों वाला राष्ट्रवाद एक सियासी मवाद है
असली मुद्दों से बचने के लिए ही सारे फसाद हैंं
भूख से मरते बच्चे, जवानों, बूढ़ों, किसानों के क़िस्से मत खोल
राष्ट्रभक्त बनना है तो भारत माता की जय बोल
बोल की भूख का सवाल राष्ट्रद्रोह कहलाता है
बोल की जनता की जरुरत सत्ता-समाज को हिलाता है
हिलती सत्ता अच्छी नहीं होती,लिहाजा क़ानून डंडा चलाता है
फौज-तोपों वाली सत्ता नारों से हिल जाती है
फिर वो राष्ट्र का प्रेम भाव तोप में लगाती है
तोप से निकले राष्ट्रवादी गोले दिमाग पर बरसाती है
सत्ता ऐसे ही देश में आग लगाती है। 

तय करो

तय करो, भविष्य का हिंदुस्तान कैसा चाहिए
हंसती हुई भारत माता या श्मसान जैसा चाहिए।
जलती लाशों की गंध या महक हो गुलाब की
राख-राख बस्तियां या मुस्कान हर जनाब की
गली-गली खून या गंगा-जमुनी तान जैसा चाहिए
तय करो, भविष्य का हिंदुस्तान कैसा चाहिए।
तय करो कि वक्त इंतज़ार करता है नहीं
तय करो कि मुल्क कंठहार बनता है नहीं
मां की गोद में पड़ीं हों लाश निज संतान की
मां की आंचल फाड़ते हों संतान हिंदुस्तान की
तय करो कि है ज़रुरी मुस्कान या श्मसान अब
तय करो कि है जरुरी दंगा या अमान अब
तय करो की मां की गोद में भरोगे क्या अब तुम
तय करो कि मुल्क में माहौल रचोगे क्या अब तुम
तय करो कि मजहबी ईमान कैसा चाहिए
तय करो, भविष्य का हिंदुस्तान कैसा चाहिए।

वो क़ातिल हैं

सत्ता
वो जो क़ातिल हैं
लाशों पर लाश बिछाते हैं
वो जो वहशी हैं
बस्ती को राख बनाते हैं
वो जो शातिर हैं
दंगाई बिसात बिछाते हैं
वो जो ज़ालिम हैं
अफवाहों के जाल फैलाते हैं
वो टोपी-दाढ़ी, लाठी-डंडों की भीड़ों में
वो राष्ट्र-गाय, धर्म-भजन के नीड़ों में
वो तन कर खड़े हैं आज मुल्क की छाती पर
वो तन के खड़े हैं गांधी-आज़ाद की थाती पर
वो भारत माता के आंचल को फाड़ रहे हैं
वो गोद में मां की संतानों की लाशें डाल रहे हैं
वो मुल्क ही नहीं, ईमान-धर्म का दुश्मन हैं
वो इंसान ही नहीं, भगवान-खुदा का दुश्मन हैं
वो दुश्मन हैं हंसती भारत माता के
वो दुश्मन हैं नस्लों के भाग्य विधाता के
उनको तो किसी दिन लाज-शरम न आएगी
ऐसे भक्तों से भारत मां अकुलाएगी
ये औलाद फिरंगी के, इनको सिंहासन प्यारा है
फूट डालो और राज करो ही इनका प्यारा नारा है

क्रांति गीत

क्रांति गीत
सदियों से दाना माझी तुम्हारा खून नहीं खौला होगा
जब रोटी के बिना पत्नी बीमार हुई होगी तब भी
जब दवाई के बिना हालत बिगड़ी होगी तब भी
जब अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं मिला होगा तब भी
तब लाश ले जाने के लिए जेब में पैसे नहीं थे तब भी
जब लाश के लिए सरकारी गाड़ी नहीं मिली तब भी
जब पत्नी को गठरी में बांधकर उठाया होगा तब भी
दाना माझी इस पूरी प्रक्रिया में तुम ठंडे रहे होगे
दाना माझी तुम्हारा खून नहीं खौला होगा
सदियों से जमी बर्फ यू नहीं पिघला करती
सदियों पुरानी सोच यूं ही नहीं बदला करती
सदियों पुरानी व्यवस्था यूं ही नहीं हिला करती
सदियों से तु्म जैसों को भग्यवादी बनाए रखा गया
सदियों से तुम जैसों को पुनर्जन्म का पाठ पढ़ाया गया
सदियों से तुम जैसों के पूर्वजन्म के पाप गिनाए गए
सदियों से कालाहांडी का किस्सा नहीं बदला होगा
सदियों से दाना माझी तुम्हारा खून नहीं खौला होगा
कंधे तेरे लाश पड़ी थी भारत भाग्य विधाता की
या तो फिर वो लाश पड़ी थी भारत मां जयकारा की
यो तो फिर वो लाश पड़ी थी लोकतंत्र की माई की
या तो फिर वो लाश पड़ी थी संविधान की चौपाई की
काले अंग्रेजों को इसमें भी वोटबैंक मिला होगा
सदियों से दाना माझी तुम्हारा खून नहीं खौला होगा
लोकतंत्र की लाश भी एक दिन ऐसे ही ढोई जाएगी
सत्ता और सियासत किसी गठरी में अकुलाएगी
दाना माझी बाग़ी होकर तेरी मुट्ठी जिस दिन तन जाएगी
तेरी जीवन संगिनी उसी दिन मोक्षधाम को जाएगी

प्रेमपथ

प्रेमपथ
जैसे इलाहाबाद में होता है गंगा-यमुना का मिलन
वैसे मिले थे हम और तुुम कर्मयोग के संगम पर
मिले थे पूरे सैलाब के साथ, प्रवाह के साथ
लेकिन शांत थे हम गंगा-यमुना की तरह ही
फिर टकरातीं रहीं हमारी लहरें, मिलती रहीं धाराएं
कर्मपथ पर ही गढ़ लिया हमने एक प्रेमपथ भी
फिर बेहद व्यस्त दिन भी बीतने लगे थे हंसते-खेलते
और उबाऊ उनींदी रातें भी हो गईं थीं बेहतरीन
रास्ते में आते-जाते कभी हुआ ही नहीं धूप का एहसास
और ना ही जनवरी की रातों में कभी महसूस हुई ठिठरन
एक जोड़ी खाली जेब में एक जोड़ी खाली हाथ
और हंसते-बतियाने के लिए तुम्हारा साथ
बीतने लगे थे जीवन के सबसे खूबसूरत पल
और मिले भी तो थे हम यमुना के किनारे वाले शहर में
उस शहर में जहां हर आदमी दौड़ता है, भागता है
खुद से ही थक-हार कर हांफता है
वहीं मिले थे हम गंगा-यमुना की तरह
और फिर वहीं से बह निकले अलग-अलग दिशाओं के लिए
ठीक वैसे ही जैसे इलाहाबाद से अलग हो जातीं हैं गंगा और यमुना
दूर, एक दूसरे से बहुत दूर, समंदर तक अलग-अलग ही
लेकिन फिर मिलतीं हैं, समंदर में, बादलों में और बारिश के साथ नदियों में
शायद वैसे ही मिलना होगा किसी दिन हमारा भी
बादलों के पार, लहरों के पार, या फिर बूंदों के बीच
किसी कर्मपथ पर ही या फिर किसी प्रेमपथ पर ही

तब बादल बरसे थे

प्रियवर तब बादल बरसे थे
पहले मन में हुमड़ रहे थे
हृदय पटल पर घुमड़ रहे थे
अंखियन सम्मुख अंधेरा था
मीत मिलन को हम तरसे थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे
बरसे थे बन करुण वेदना
जागृत करने तरुण चेतना
समृतिवन को सींच-सींच कर
बीते पल की पुनर्याचना
आंखों से झर-झर झरते थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे
मह-मह मिट्टी महक रही थी
चह-चह चाहें चहक रही थीं
आहों का अविरल प्रवाह था
साधें सारी धधक रही थीं
पावक में पंछी झुलसे थे
प्रियवर तब बादल बरसे थे

सत्ता की भूख

हर सर पे खून का साया है
हर दर पे कातिल बैठा है
उसकी झक सफेद टोपी_दाढी
यह तिलक लगाए बैठा है
दोनों के हाथ में खंजर है
दोनों की जीभ खून से लथपथ
भोगी दोनो हैं राजपथ के
बिछता इनके आगे जनपथ
ये खून कौम का पीते हैं
खाते हैं नरमांस यही
सत्ता के भूखों के कुत्ते हैं
करते सारे कुकांड यही

तोड़ दो

क्रांति गीत
टूट पाएंगे न पत्थर प्यार से मनुहार से
तोड़ दो इनको अब वज्र के प्रहार से
कुरुक्षेत्र के रण में भीष्म प्रतिज्ञा तोड़ दो
सामने जितने शिखण्डी बांहें उनकी मोड़ दो
अब करो इनसे न तुम न्याय की याचना
पालते अपने हृदय में सत्ता की ये कामना
साध्य तेरे क़ैद हैं ऊंची इस दीवार में
ढाह दो इनकी हवेली वज्र के प्रहार से
ये स्वतंत्र चेतना के शत्रु समान है
ये बुलंदी, तानाशाही देश का अपमान है
बरस सत्तर बीत गए ऐतबार के, इंतजार के
तोड़ दो इनको अब वज्र के प्रहार से

दूध-भात

खीर
चंदा मामा आएगा, दूध-भात लाएगा
चांदी के चम्मच से तुझको खिलाएगा
माई ने कह दिया, गुनगुनाते रहे हम
माड़, भात, नूून खाते रहे हम
माटी के चूल्हे पर तसला चढ़ाती थी
पानी खदकने पर खीर बताती थी
खीर के सपने सजाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
माई ने आंचल को कंबल बताया था
माघ के पाला में उसको ओढ़ाया था
साड़ी को गद्दा समझाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
आंखों के आंसू वो हमसे छुपाती थी
पानी में नून डाल हमको पिलाती थी
शर्बत समझ जीभ चटखाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
माई ने माड़ पिया, भात नहीं खाया
माई ने भात खाया नून नहीं मिलाया
माई का स्वाद जान इतराते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम

मीत मेरे

मीत के लिए
मीत मेरे तुमसे खून का रिश्ता तो नहीं
ना ही कोई सामाजिक नाता है
लेकिन न जाने क्यों
जब कभी तुम नाराज हो जाते हो
तबीयत नासाज हो जाती है
यक़ीन मानो दिल का कोई रिश्ता है तुमसे
तब से जब से तुम जुड़े हो मुझसे

ये बजट अहम है क्योंकि हालात बद्तर हैं

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ये बजट देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने ये बात यूं ही नहीं कही है। वर्ल्ड बैंक के अ...