Wednesday, July 18, 2018

मॉब लिंचिंग: राजपथ पर इठलाते हत्यारे


पास्टर निमोलर की एक कविता हमारे मौजूदा वक्त की ज़रूरत बन गई है। निमोलर ने लिखा था कि
पहले वो आए कम्यूनिस्टों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
फिर वो आए ट्रेड यूनियन वालों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था
फिर वो आए यहूदियों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वो मेरे लिए आए
और तब तक कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता
लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट को आखिरकार कहना पड़ा कि देश को भीड़ की मर्जी के हवाले नहीं कर सकते..ये कहना पड़ा कि भीड़ अपने-आप में कोई कानून नहीं है...ये कहना पड़ा कि भीड़ के भेड़ियों के खिलाफ सख्त कानून बनाइए...देश के किसी न किसी हिस्से में हर दूसरे दिन बौखलाई भीड़ किसी को मार रही है, किसी की हत्या कर रही है, किसी को पेड़ पर लटका रही है, किसी को जिंदा फूंक रही है।  टीवी चैनल और अखबार इसे भीड़ का इंसाफ बता रहे हैं..भीड़ की ताकत मीडिया भी जानती है...भीड़ की ताकत पुलिस भी जानती है और भीड़ की ताकत राजनीति भी जानती है...भीड़ जब अपनी अदालत लगाती है ये तीनों कहीं सो रहे होते हैं...बाद में पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करती है... फिर किसी से अपना हिसाब चुकाती है, किसी से हिसाब-किताब करती है.. नेता भीड़ वाली अदालत से निकले इंसाफ का इस्तकबाल करते हैं और मीडिया पुलिस और राजनीति की भीड़ में उस भीड़ वाले इंसाफ में ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव खोजता है। पुलिस की नाकामियों से भीड़ का गुस्सा बढ़ता है और फिर भीड़ की अदालत से पुलिस को मुकदमा मिल जाता है...कई मुल्जिम मिल जाते हैं...कई गवाह मिल जाते हैं.. पीड़ित मिल जाते हैं..दलाल मिल जाते हैं... भीड़ भी किसी धंधे का हिस्सा ही तो होती है..इस भीड़ के जरिए पूरे मुल्क में रोज-रोज नई भीड़ खड़ी की जा रही है...भीड़ और राजनीति दोनों एक दूसरे के पूरक होते जा रहे हैं.. दरअसल ये भीड़ जिंदा लाश होती है..ये आदमी और जानवर का फर्क नहीं समझती..ये कानून की परवाह नहीं करती.. उसे समाजिकता की समझ नहीं होती..कोई बताने वाला भी नहीं होता. हां उनके भीतर के जानवर को जगाने वाला कोई होता है...वो कोई नेता होता है..कभी-कभी वो कोई विचार भी होता है...ये विचार इंसान और इंसान के बीच फर्क बताता है...ये हिंदू और मुसलमान बताता है...जब पुलिस भीड़ देख कर भाग रही होती है तब उसी भीड़ के बीच से कोई नेता निकलता है.. ये नेता पहले थानों की मुट्ठी गरम करता है...फिर थाने इसकी मुट्ठी गरम करने लगते हैं...जब ये जेल से बाहर आता है तो जयंत सिन्हा जैसे नेता उसे माला पहनाने लगते हैं... फिर चुनावों में नेता उससे सौदा करने लगते हैं..और तरह भीड़ का इंसाफ राजपथ पर इठालाने लगता है...

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