सरदार वल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू के
संबंधों को लेकर जैसी भ्रम की स्थिति पिछले पांच सालों में पैदा की गई है वैसी
स्थिति पहले कभी नहीं थी। हलांकि पटेल और नेहरू के संबंधों को लेकर भ्रम पैदा करने
की कोशिशें तकरीबन 50 सालों से हो रही है लेकिन पिछले पांच सालों में इस मसले में
जितनी आक्रामकता देखी गई वो हैरान करने वाली है। एक माहौल गढ़ा गया है जिसमें ये
साबित किया जा रहा है कि नेहरू ने सरदार पटेल को हाशिए पर धकेला या फिर पं. नेहरू
ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। पंडित नेहरू और सरदार पटेल के
संबंधों को समझने के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया और भगत सिंह को पढ़ना बेहद ज़रूरी
है। कांग्रेस में नेहरू से असहमत लोगों की कमी नहीं थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद.
संपूर्णानंद और पुरुषोत्तम दास टंडन नेहरू से ज्यादातर मौकों पर असहमत ही रहे। बावजूद
इसके इन नेताओं ने कभी सार्वजनिक तौर पर नेहरू की नीतियों की आलोचना नहीं की। बाद
के दिनों में नेहरू के बेहद करीबी डॉ राम मनोहर लोहिया नेहरू के धुर आलोचक हो गए।
खुद लोहिया इस बात को स्वीकर करते हैं कि पंडित नेहरू की आलोचना सरदार पटेल को
बर्दाश्त नहीं थी और इसी वजह से सरदार पटेल लोहिया से नाराज रहने लगे थे। लोहिया आगे
लिखते हैं कि आज़ादी के बाद पंडित नेहरू के ज्यादातर सख्त फैसलों को सरदार पटेल ने
बेहद सख्ती से देश पर लागू करवाया। पंडित नेहरू और सरदार पटेल के संबंधों को समझने
के लिए नेहरू और सुभाष चंद्र बोष के पत्राचार को भी पढ़ा जाना चाहिए। एक-दूसरे को
लिखी गई दोनों की चिट्ठियों में सरदार पटेल का जिस तरह से जिक्र आया है उससे यही
लगता है कि दोनों सरदार पटेल को खास तवज्जो देते थे और दोनों की निगाहों में सरदार
पटेल देश के आंतरिक मसलों के समझने वाले तब के सबसे बेहतर नेताओं में शुमार थे।
इतना ही नहीं भगत सिंह की एक चिट्ठी के जवाब में पंडित नेहरू ने खुद लिखा था भगत
सिंह को सरदार पटेल से मिलना चाहिए और सरदार पटेल से राष्ट्रीय आंदोलन की समझ
हासिल करनी चाहिए। भगत सिंह ने खुद लिखा है कि सुभाष चंद्र बोष जुनूनी
राष्ट्रवादी, सरदार पटेल समझदार राष्ट्रवादी और पंडित नेहरू अंतरराष्ट्रीय स्तर के
भारतीय नेता हैं। आचार्य कृपलानी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि नेहरू के बिना
सरदार पटले अधूरे होते और सरदार पटेल के बिना नेहरू अधूरे होते। आजादी के बाद
संविधान निर्माण की प्रक्रिया शुरू होते ही सरदार पटेल और अंबेडकर के बीच गहरे
मतभेद हो गए। सरदार पटेल किसी भी हालत में आदिवासियों को समान अधिकार देने के पक्ष
में नहीं थे। इससे पहले पाकिस्तान बनने के बाद भारत में मुसलमानों को समान अधिकार
देने का भी सरदार पटेल ने सीधा विरोध किया था। लेकिन नेहरू की एक अपील ने सरदार
पटेल के विरोध को ठंडा कर दिया और बाद में सरदार पटेल ने ही दोनों मसलों पर अपनी
सहमति दी। अपनी मौत से कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस की बैठक से बाहर निकलते हुए
सरदार पटेल ने कहा था कि गांधी की हत्या के बाद देश के लिए नेहरू की ज़रूरत और
ज्यादा बढ़ गई है। आगे उन्होंने कहा कि देश को सांप्रदायिक हिंदूवादियों से बड़ा
ख़तरा है। इस उदगार के कुछ दिनों बाद ही उनकी मौत हो गई। आज ये देख कर हैरानी हो
रही है कि सांप्रदायिक हिंदूवादी लोग ही सरदार पटेल की विरासत पर दावा ठोक रहे हैं
और वही लोग नेहरू-पटेल के संबंधों को लेकर भ्रम स्थापित कर रहे हैं।
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2 comments:
Very Nice Gazab True Line Sir-Rahul Mishra
धन्यवाद राहुल जी
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