Sunday, January 14, 2018

आरक्षण की आग: जो तपे वो सोना-जो जले सो राख

आरक्षण के नाम पर एक और सामाजिक बवाल के लिए आप तैयार रहिए। 1989-90 में जो तनाव अगड़े-पिछड़ों के बीच पैदा किया गया उसी से मिलता-जुलता तनाव एक बार फिर पैदा किया जा सकता है। फर्क ये है कि इस बार अगड़े और पिछड़ों के बीच बंटवारा नहीं होना है ये बंटवारा सिर्फ पिछड़ों के बीच होना है। पिछड़ा और अति पिछड़ा के बीच बंटवारा राजनीति की ज़रूरत बन गई है।
दरअसल केंद्र सरकार ने मंडल आरक्षण के कोटे के भीतर कोटा बनाने की तैयारी पिछले साल ही कर ली थी। इसके लिए सरकार ने बाजाप्ता संविधान के अनुच्छेद 340 का हवाला देते हुए पिछले साल ही एक आयोग का गठन भी किया। दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर जज जी रोहिणी का अध्यक्षता में ये आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार कर चुका है और जल्दी ही केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंप सकता है। इससे पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने यूपीए सरकार के दौरान एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग मंडल आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की सिफारिश की गई थी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में बताया गया था 27 फीसदी मंडल आरक्षण का फायदा मजबूत पिछड़ी जातियां उठा रही हैं और कमजोर पिछड़ी जातियों को इससे बहुत काम फायदा हो रहा है। आयोग ने तीन खांचे का खाका पेश कर ये दावा किया था कि 27 फीसदी मंडल आरक्षण को तीन हिस्सों में बांट कर कमजोर पिछड़े तबके को समान अवसर उपलब्ध करवाया जा सकता है।

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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की ये रिपोर्ट जब आई तब केंद्र में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार थी। तब सरकार इसे लागू करने की तैयारी में थी लेकिन खुफिया रिपोर्ट ने सरकार के कदम रोक दिए थे। सूत्र बता रहे हैं कि सरकार को रिपोर्ट मिली थी कि 27 फीसदी मंडल आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने के बड़े ख़तरे हो सकते हैं। इससे कमजोर पिछड़ा वर्ग और मजबूत पिछड़ा वर्ग के बीच संघर्ष छिड़ सकता है। राज्य की सरकारें इसे नियंत्रित नहीं कर पाईं तो उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र में जातीय हिंसा भड़क सकती है। ये आशंका भी जताई गई थी कि कुछ राज्य सरकारें केंद्र सरकार और यूपीए को कटघरे में खड़ा करने के मकसद से उन्माद पर चुप्पी साध सकती हैं। जातीय राजनीति करने वाले दल इस आग को भड़काने में अपनी ऊर्जा झोंक सकते हैं। और सबसे बड़ी बात ये कि इससे सामाजिक समरसता पर खतरा बढ़ सकता है। इस किस्म की रिपोर्ट के बाद मनमोहन सरकार ने तब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को ठंड़े बस्ते में डाल दिया था।
लेकिन, पिछले साल नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों की समीक्षा के लिए जस्टिस रोहिणी आयोग का गठन कर दिया। ये आयोग कोटे में कोटा संबंधित सिफारिशों की समीक्षा करेगा। इसी के साथ ये आयोग इस बात की जांच भी करेगा कि अलग-अलग जाति-समुदायों के बीच आरक्षण के लाभ का समान वितरण हो रहा है या नहीं। इतना ही नहीं रोहिणी आयोग ओबीसी के बीच उप वर्गीकरण का खाका भी तैयार करेगा और सरकार को 27 फीसदी कोटे को तीन हिस्सों में बांटने का वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक आधार भी बताएगा। इस के साथ आयोग को ये भी बताना है कि कम आबादी वाली कई उपजातियों को कैसे इस वर्ग में शामिल किया जाए।
मंडल आरक्षण के 27 फीसदी कोटे को तीन हिस्सों में बांटा गया तो बड़ी हलचल मचनी तय है। बीजेपी इस बात को लेकर भी सतर्क है कि कहीं मजबूत पिछड़ी जातियां उससे खफा न हो जाएं लेकिन, इस बात को लेकर आश्वस्त है कि इससे कमजोर पिछड़ी जातियों की बड़ी आबादी उसके साथ खड़ी हो जाएगी। बीजेपी का मानना है कि मजबूत पिछड़ी जातियों पर पहले से ही उसकी पकड़ी ढीली है। यूपी में मुलायम सिंह यादव, बिहार में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे नेता मजूबत पिछड़ी जातियों पर मजबूत रखते हैं। कमोबेश यही स्थिति ज्यादातर राज्यों की है। क्षेत्रीय दलों ने जातीय आधार पर ही अपने-अपने क्षेत्रों में अपना वजूद बनाया है लेकिन, ये तमाम क्षेत्रीय दल मजबूत पिछड़ा वर्ग के बूते आगे बढ़े हैं। ऐसे में कई छोटी उपजातियों को अगर आरक्षण के जरिए बीजेपी अपने साथ जोड़ने में सफल रही तो निश्चित तौर पर एक बड़ी आबादी उससे जुड़ सकती है और क्षेत्रीय दलों को उनके गढ़ों में बीजेपी नए तरीके से चुनौती देने में सफल हो सकती है। जाहिर है मजबूत पिछड़ी जातियों के नेता इसका विरोध करेंगे और एक बार फिर तनाव के हालात पैदा करने की कोशिश भी करेंगे।

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