Wednesday, November 22, 2017

कांग्रेस का ये बदलाव दूर की सियासत है

सोनिया गांधी भारतीय राजनीति का वो नाम है जिसे सियासत मिली तो विरासत में थी लेकिन, अपनी सकारात्मक सोच, संगठन को एक साथ लेकर चलने की शक्ति, और नए राजनीतिक नजरिए के साथ सोनिया गांधी ने सियासत की दुनिया में अपना अलग ही मुकाम बनाया। बात चाहे पारिवारिक हो या राजनीतिक, सोनिया गांधी ने हर किरदार को बखूबी निभाया है। तमाम विवादों और संघर्षों के बावजूद सियासत में वो मुकाम हासिल किया जो शायद हर किसी के लिए संभव नहीं होता। पत्नी से बहू तक का सफर हो या एक मां की ममता से पार्टी प्रेसिडेंट तक की जिम्मेदारी, सोनिया गांधी ने हर चुनौती का डटकर सामना किया है। लेकिन, अब राहुल की ताजपोशी के साथ ही हो जाएगा सोनिया गांधी का रिटायरमेंट। तो सच में क्या ये सोनिया गांधी का संन्यास है या फिर एक नई पारी की शुरुआत?
सलीके से सोनिया ने बनाई अपनी जगह:
न वो भारत में जन्मीं, न विरोधियों ने उन्हें भारतीय माना। बावजूद इसके भारतीय राजनीति के इतिहास में वो एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होने सकारात्मक राजनीति को एक नई दिशा दी। विरासत की सियासत की नई परिभाषा गढ़ दी। कांग्रेस के 132 सालों के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी अब रिटायर होने वाली हैं। सोनिया गांधी 1998 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अध्यक्ष के पद पर हैं लेकिन, अब राहुल की ताजपोशी के साथ ही हो जाएगा सोनिया गांधी का रिटायरमेंट। लेकिन ये रिटायरमेंट सिर्फ अध्यक्ष पद से ही होगा। कांग्रेस के सूत्र बता रहे हैं कि सोनिया गांधी एक नई पारी शुरू करने के मूड में हैं।  संभव है सोनिया कोई नाई पारी शुरू कर दें। सोनिया गांधी वो शख्सियत हैं जिन्होने अपनी सूझ-बूझ और समझदारी से राजनीतिक और पारिवारिक रिश्तों को न सिर्फ संभाला बल्कि उनको नए आयाम भी दिए, नए मुकाम भी दिए।
एक बहू के रुप में सोनिया
इंदिरा गांधी ने बहू के रुप में सोनिया गांधी को खुले दिल से स्वीकार किया। सास-बहू के रुप में इंदिरा और सोनिया का रिश्ता मां-बेटी के रिश्ते जैसा ही था। भले ही सोनिया विदेशी मूल की थीं लेकिन इंदिरा गांधी के प्यार और स्नेह ने घर से लेकर सत्ता तक उन्हें स्वदेसी रंग में रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब तक इंदिरा सत्ता में रहीं तब तक सोनिया को देश के अहम पहलुओं से रुबरु कराती रहीं।
एक-दूजे के हुए राजीव-सोनिया
एक मुलाकात आपस का प्यार और अटूट विश्वास, ये था सोनिया और राजीव का रिश्ता। 1968 में हिंदु धर्म के मुताबिक सोनिया और राजीव गांधी की शादी हुई और सोनिया गांधी भारत की हो गईं। राजनीतिक परिवार से जुड़े होने के बावजूद सोनिया हमेशा राजनीति से दूर रहीं। लेकिन, समय की गति को कोई नहीं जानता और वो दिन भी आया जब सोनिया गांधी को राजनीति में अपनी भागीदारी देनी पड़ी। सोनिया के राजनीतिक जीवन की शुरुआत इंदिरा गांधी की हत्या और राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के साथ हुई लेकिन, 21 मई 1991 को हुआ एक धमाकासोनिया गांधी के जीवन में तूफान लेकर आया। 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। इस तरह एक अटूट प्रेम कहानी का दुखद अंत हो गया।
मां के रुप में सोनिया गांधी
वैसे तो पिता की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता लेकिन, फिर भी सोनिया गांधी ने राजीव की मृत्यु के बाद राहुल और प्रियंका की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। बात चाहे एक मां के रूप में ममता की हो या एक राजनेता की क्षमता की, सोनिया हमेशा हर कसौती पर खरा उतरीं। कई मौकों पर सोनिया एक मां से इतर राहुल गांधी के सियासी गुरु के तौर भी सामने आईं। एक मां के रूप में सोनिया गांधी ने राहुल के जीवन को जितना संभाला उतना ही एक पार्टी अध्यक्ष के रूप में राहुल के राजनीतिक जीवन को दिशा दी।
सोनिया गांधी का राजनीतिक जीवन
यूं तो राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सोनिया गांधी लगातार उनके साथ रहीं और सत्ता-सियासत के तौर-तरीकों को बेहद नजदीक से देखा। सोनिया राजीव गांधी के साथ कई राज्यों के दौरे पर जाती रहीं। बावजूद इसके 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। सोनिया गांधी 1997 में एक प्राथमिक सदस्य के रूप में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुईं और 1998 में वो कांग्रेस का अध्यक्ष बन गईं। 1998 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जुआ खेला। सोनिया गांधी कांग्रेस के लिए इस चुनाव में सबसे बड़ा तुरूप का इक्का थीं। खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए ये तुरूप का इक्का काम आ गया।
सोनिया गांधी से मिली कांग्रेस को संजीवनी
सोनिया गांधी के पार्टी से जुड़ने पर दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को नई संजीवनी मिल चुकी थी। लेकिन राजनीति की सीढ़ी पर सोनिया ने अभी पहला कदम ही रखा था। सोनिया गांधी ने अपना पहला चुनाव 1999 में अमेठी से लड़ा। बस इसके बाद तो सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में पूरी तरह से कदम रख दिया और कांग्रेस को एक बार फिर सशक्त पोजीशन दिलाई। 2004 में बेटे राहुल गांधी को पहली बार संसद तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अमेठी सीट छोड़ दी और रायबरेली से चुनाव लड़ा। सोनिया गांधी ने भारतीय राजनीति में सकारात्मक सियासत की वो मिसाल रखी जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा।
कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहीं
कांग्रेस के 132 सालों के इतिहास में 19 साल तक लगातार अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी अकेली राजनेता हैं। नेहरु, इंदिरा और राजीव का कुल मिलाकर भी अध्यक्ष पद पर कार्यकाल इतना नहीं जितना अकेले सोनिया गांधी का है। कांग्रेस तो क्या 19 सालों तक किसी दूसरी पार्टी में भी कोई अध्यक्ष पद पर नहीं रहा। तो जाहिर है ये सोनिया गांधी के सशक्त नेतृत्व की ही पुख्ता नजीर है।
ये सोनिया का अवसानकाल नहीं है !
 19 साल से कांग्रेस को संभाल रहीं सोनिया गांधी क्या अब नई भूमिका होंगी या फिर राजनीति से संन्यास लेंगी, इस पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सोनिया गांधी के 19 साल कांग्रेस के लिए बेहद खास हैं। इस दौरान सोनिया गांधी ने बड़ी-बड़ी जीत देखी तो हार का ऐसा मुंह भी देखा जो कांग्रेस के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। फिर भी सोनिया गांधी डंटी रहीं। अक्सर तबियत खराब होने के बावजूद सोनिया गांधी संघर्ष करती रहीं और इसी संघर्ष की वजह से सोनिया गांधी असल मायने में कांग्रेस के लिए सोनिया गांधी बनीं।
1991 में राजीव गांधी की हत्या
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया जिसके बाद पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि 1996 में कांग्रेस चुनाव हार गई। इसके बाद कांग्रेस के कई दिग्गजों ने विद्रोह करके पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस टूट गई। कांग्रेस को इस स्थिति में देखते हुए सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने का फैसला किया। कांग्रेस को एकजुट करने के लिए सोनिया गांधी 1997 में पार्टी में एक प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हुईं। 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की बागडोर अपने हाथों में ली और कांग्रेस का अध्यक्ष बनीं।
1999 में कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की जिसके बाद सोनिया गांधी ने तीनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया और इस महत्वपूर्ण फैसले में कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने सोनिया गांधी का साथ दिया।
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी के सामने अटल बिहारी वाजपेयी के सामने खड़े होने की बड़ी चुनौती थी। 1999 में अटल जी देश के सबसे लोकप्रिय नेता थे। अटल जी का व्यक्तिव देश भर में छाया हुआ था, बावजूद इसके सोनिया गांधी ने विपक्ष के नेता की भूमिका में 2003 में सरकार के खिलाफ सदन अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया।
2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ बनाम ‘आम आदमी’ का नारा
2004 में सोनिया गांधी का करिश्मा कुछ यूं चला कि अटल जी का इंडिया शाइनिंग का नारा सोनिया गांधी के आम आदमी के नारे के सामने फ्लॉप हो गया। 2004 में सोनिया गांधी को सबसे बड़ी कामयाबी मिली। उनकी खुद की रायबरेली से शानदार जीत हुई और उन्होंने 15 पार्टियों को एक साथ करके केंद्र में यूपीए की सरकार गठित की। इसके बाद सोनिया गांधी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सोनिया गांधी का जादू लगातार चलता जा रहा था, जो 2009 में भी चला। हालांकि 2014 पहुंचते-पहुंचते कांग्रेस की स्थिति एक बार फिर से खराब होने लगी और मौजूदा वक्त में भी कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। राजनीति के जानकर कहते हैं कि सोनिया गांधी की खराब सेहत की वजह से भी कांग्रेस की सेहत पर असर पड़ा। अब सोनिया गांधी की विरासत को राहुल गांधी संभालने वाले हैं लेकिन, सवाल ये उठ रहा है कि सोनिया गांधी की क्या भूमिका रहेगी ? खासकर ऐसे समय में जब विरोधी नरेंद्र मोदी जैसा ताकतवर राजनीतिक शख्स हो। तो क्या राहुल को सोनिया अकेला छोड़ देंगी ? निश्चित तौर पर ऐसा नहीं होने जा रहा है। सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी राजनीति से संन्यास नहीं लेंगी और जब तक राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी के सामने ठीक से खड़े नहीं होते तब तक सोनिया गांधी, राहुल गांधी के लिए सियायी संजीवनी बनी रहेंगी। तो इंतजार कीजिए उस तारीख का जब राहुल गांधी की ताजपोशी होगी और सोनिया गांधी की अगली रणनीति का खुलासा होगा।

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