लोटा ज़मीन पर रख लूंगी उठाई नहीं कि मास्टर जी के मोबाइल फोन का कैमरा तस्वीर उतार लेगा। बिहार के शिक्षकों को ये नई जिम्मेदारी दी है बिहार सरकार ने। बाजाप्ता आधिकारिक आदेश के जरिए शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। मास्टर जी अब सबेरे सड़कों के किनारे खुले में शौच की निगरानी करेंगे और शौच करने वालों की तस्वीर लेंगे। सरकार इन तस्वीरों को सार्वजनिक कर खुले में शौच करने वालों को सामाजिक तौर पर बदनाम करेगी। सरकार को किस कानून के तहत किसी की शौच करते वक्त की तस्वीर सार्वजनिक करने का अधिकार मिला है ये सरकार ही जाने। फिलहाल हम शिक्षक और शिक्षा की बात करते हैं। सबेरे पांच बजे से 9 बजे तक सड़कों पर शौच करते लोगों की तलाश करने वाले मास्टर जी को साढ़े बजे स्कूल भी पहुंचना है और फिर 4 बजे तक स्कूल में बच्चों को पढ़ाना भी है। ग्यारह घंटे किसी से काम लेना न सिर्फ श्रम कानूनों का उल्लंघन है बल्कि शिक्षा के साथ भद्दा मज़ाक भी है। बिहार में पहले से ही पढ़ाने वालों की बेहद कमी है।
बिहार में शिक्षा व्यवस्था का सच ये है कि राज्य में साढ़े 72 हजार प्राइमरी स्कूलों में सवा दो करोड़ बच्चे पढ़ते हैं और इनको पढ़ाने के लिए साढ़े चार लाख शिक्षक हैं। इस साढ़े चार लाख शिक्षकों में 3 लाख 80 हजार से ज्यादा नियोजित शिक्षक हैं और 68 हजार के करीब स्थाई नियुक्ति वाले शिक्षक हैं। यही हाल राज्य के हाई और +2 स्कूलों का है। 2934 हाई और +2स्कूलों में 35 लाख से ज्यादा छात्र हैं और उनको पढ़ाने के लिए महज 42 हजार शिक्षक हैं। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत फिलहाल तकरीबन 7 लाख शिक्षकों की कमी है। ये आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है अगर सरकार ये बता दे कि 2006 से 2016 के बीच कितने नियोजित शिक्षकों ने नौकरी छोड़ दी है। 
शिक्षकों की इतनी कमी झेल रहे सूबे में छात्रों को पढ़ाने के बजाय मास्टर जी को शौच करने वालों की फोटोग्राफी में लगा दिया गया। लेकिन, खुले में शौच को रोकने के इंतजान किए बगैर इस कदम के फायदे क्या हैं ये सवाल बड़ा हो रहा है। तो क्या शौचालय घोटाला और सृजन घोटाले जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ये कदम उठाया गया है ? इस फैसले के पीछे सरकार की चाहे जो भी मंशा रही हो लेकिन, सरकार के इस फैसले को सरकार के आंकड़े ही गलत साबित कर रहे हैं। सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि सूबे में अभी महज 34 फीसदी लोगों के पास शौचालय है। मंत्री की बात सही मान लें तो भी सूबे में अभी 66 फीसदी लोगों के घर में शौचालय नहीं है। तो फिर ये 66 फीसदी आबादी कहां मल-मूत्र का त्याग करे? मंत्री के दावे भी संदेह के घेरे में हैं। दरअसल खुद बिहार सरकार सूबे में शौचालय घोटाले की जांच करवा रही है। जिस 34 फीसदी शौचालय निर्माण के दावे किए गए हैं उनमें से आधा से ज्यादा तो उसी घोटाले की भेंट चढ़ गए हैं।
कुछ शौचालय तो बन कर तैयार हैं और इस्तेमाल में भी हैं लेकिन, ज्यादातर का तो सिर्फ ढांचा खड़ा कर दिया गया और कागजों में उनका निर्माण दिखा दिया गया। अब ऐसे शौचालयों का लोग क्या करें ? चलिए कुछ देर के लिए सरकार के दावे पर भरोसा कर लेते हैं तब भी वो 66 फीसदी लोग कहां जाएं जिनके पास शौचालय नहीं है। जाहिर है ऐसे लोगों के पास खुले में शौच के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
सरकार के इस फैसले से सिर्फ शिक्षा व्यवस्था पर ही असर नहीं हुआ है। सरकार के इस फैसले से शिक्षकों पर खतरा बढ़ गया है। ज्यादातार शिक्षक अपने घरों से दूर नौकरी करते हैं। उनको इस बात का भी डर है कि कहीं रोक-टोक करने पर किसी ने मारपीट शुरू कर दी तो वो क्या करेंगे ? वो इस बात को लेकर भी फिक्रमंद हैं कि उनके इस तरह ताकने-झांकने का उन महिलाओं पर क्या असर होगा जिनके घर में शौचालय नहीं हैं और वो खुले में शौच को मजबूर हैं?
जाहिर है सरकार के इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकारी स्कूलों में जिनके बच्चे पढ़ते हैं वो अलग चिंता में डूबे में हैं। उनको पता है कि पिछले साल सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 65 फीसदी छात्र इंटर की परीक्षा में फेल हो गए थे। अब जबकि मास्टर जी शौच क्रिया की निगरानी में व्यस्त हो जाएंगे रिजल्ट का क्या होगा?
सरकार की इस फैसले के पीछे मंशा चाहे जो भी रही हो लेकिन इसके नुकसान का आकलन तो होना ही चाहिए था। जब तक घर-घर शौचालय नहीं बन जाते आप किसी को खुले में शौच से नहीं रोक सकते। सरकार अगर तय समय सीमा में शौचालय नहीं बनवा सकी तो इसकी सजा जनता को नहीं दी सकती।
जाहिर है इस वक्त बिहार को शौचालय और शिक्षा दोनों की जरूरत है। इन दोनों सेक्टर में बिहार बेहद पिछड़ा राज्य है। लेकिन, एक कमी को दूसरी कमी से ढकने की कवायद में सच्चाई बेनकाब हो रही है। जरूरत है कि बिहार में शौचालय निर्माण कार्य में तेजी लाई जाए, इस अभियान में हुए भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई की जाए और आगे भ्रष्टाचार नहीं हो इसके लिए निगरानी की व्यवस्था की जाए। ये ठीक नहीं है शौचालय निर्माण में हुई देरी और गड़बड़ी पर पर्दा डालने के लिए शिक्षा व्यवस्था को भी चौपट कर दिया जाए।