Saturday, January 27, 2018

क्या सावरकर से भी जुड़े थे गांधी हत्या के तार ?

महात्मा गांधी की मौत बहुत तेजी नजदीक आ रही थी। दिसंबर 1947 की शुरुआत में ही हथियारों के तस्कर मदनलाल पहवा ने होटल संचालक विष्णु करकरे के साथ नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे को कई हथियार दिखा दिए थे। ये तमाम हथियार विष्णु करकरे के होटल के मैनेजर के कमरे में छुपाकर रखे गए थे। लेकिन इस योजना को जनवरी 1948 में तगड़ा झटका लगा। हत्या के एक मामले में पुलिस ने विष्णु करकरे को गिरफ्तार करने के लिए एक होटल में छापा मार दिया। इस दौरान पुलिस को वो तमाम हथियार मिल गए। करकरे और पहवा फरार हो गए।
13 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की तबीयत बेहद खराब हो गई। वो पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये की मदद देने की जिद पर अड़ गए। विभाजन के समय हुए वादे को वो बार-बार याद दिलाने लगे। गांधी अनशन करने लगे। डॉक्टरों ने बताया लगातार अनशन की वजह से पहले से ही उनका गुर्दा खराब है और हृदय पर बुरा असर पड़ने लगा है। डॉक्टरों की बात को गांधी जी ने मानने से इनकार दिया। गांधी कमजोर हो चुके थे। वो एक खाट पर निढाल होकर लेटे हुए थे। 14 जनवरी को दिल्ली के तमाम मंदिरों और मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर गांधी के सेहतमंद होने की कामना सुनाई देने लगी। इसी किस्म की आवाजें पाकिस्तान में भी सुनी जाने लगीं। जगह-जगह प्रार्थना सभाएं होने लगीं। मंदिर और मस्जिद की तरफ से राहत शिविरों में मदद पहुंचाई जाने लगी। सबसे गांधी की सेहत के लिए दुआ करने की अपील की जाने लगी।
        दिल्ली से सात सौ मील दूर हिंदू राष्ट्र के दफ्तर में जैसे ही गांधी के अनशन की खबर पहुंची नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे एक-दूसरे को देखने लगे। दोनों के चेहरे पर तनाव था। गोडसे ने ऐलानिया तौर पर कहा कि हमें गांधी को मार देना चाहिए। गोडसे के इतना कहते ही उसके सहयोगी मदनलाल पहवा और विष्णु करकरे भी वहां पहुंच गए। गोडसे ने अपनी बात इन दोनों को भी बताई।
हिंदू राष्ट्र के दफ्तर से निकलकर वो चारों मुंबई में उस आदमी के पास पहुंचे जो साधु और फकीर के भेष में हथियार बेचा करता था। दिगंबर बडगे ने फर्श पर हथियार फैला दिए। हथियारों को देखने के बाद तय हुआ कि सभी 14 जनवरी को बंबई के दादर में हिंदू महासभा दफ्तर में मिलेंगे।
इधर दिल्ली के बिड़ला हाउस के लॉन में महात्मा गांधी को धूप में लेटाया गया था। वो खुद चल नहीं पा रहे थे। पोती मनु गांधी उनसे अनशन तोड़ने की भावुक अपील कर रहीं थीं। दादा-पोती एक-दूसरे को गीता और रामायण के उदाहरण दे रहे थे। चारपाई के चारों तरफ हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदाय की बड़ी भीड़ जमा थी। सारे लोग बापू से अनशन तोड़ने की अपील कर रहे थे।
उधर 14 जनवरी 1948 को बंबई के सावरकर सदन में सदी के सबसे बड़े घटना की तैयारी पर मंथन चल रहा था। हथियारों का तस्कर बडके गवैया के रूप में बगल में तबला दबाए सावरकर सदन में बैठा था। दिंगबर बडगे को वहीं बैठने का इशारा कर नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे बडगे वाला तबला लेकर सावरकर के कमरे में पहुंचे। इस तबले में बम और पिस्तौल रखे गए थे।
15 जनवरी को पूरे देश में ये बात फैल गई कि बापू की तबीयत बेहद खराब है। ये गुरुवार का दिन था। देश भर में यज्ञ-हवन और दुआओं का दौर शुरू हो गया। उसी दिन सबेरे तकरीबन साढ़े सात बजे नारायण आप्टे बंबई के एयर इंडिया के दफ्तर पहुंचा और बंबई से दिल्ली जाने वाली फ्लाइट की दो टिकट बुक करवाई। ये टिकट डीएन कर्माकर और एस मराठे के नाम से बुक करवाए गए थे और यात्रा की तारीख थी 17 जनवरी।
इधर दिल्ली में दोपहर बाद पूरी सरकार गांधी की चारपाई के चारों तरफ बैठी थी। जवाहर लाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल की आंखों में आंसू थे। बापू ने दोनों से पूछा कि अगर भारत अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय समझौता ही तोड़ देगा तो फिर कल दुनिया कैसे उस पर विश्वास करेगी ? दरअसल बापू उस समझौते की याद दिला रहे थे जिसके तहत पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने थे। बापू ने सरदार पटेल से पूछा कि पाकिस्तान में गए और उस भू-भाग पर पहले से बसे लोग क्या वो लोग नहीं हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी ? क्या बिना उन लोगों के सहयोग के ही देश आजाद हो गया ? बापू के इस सवाल के बाद नेहरु और सरदार पटेल फफक पड़े। नाराजगी और गुस्से की बर्फ पिघल पड़ी। बिड़ला हाउस के उसी लॉन से सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने का ऐलान कर दिया।
उसी दिन बंबई में नारायण आप्टे ने बडगे से मुलाकात कर बताया कि सावरकर ने गांधी, नेहरु और सुराहवर्दी को खत्म करने का आदेश दिया है। आप्टे ने बडगे को भी दिल्ली जाने को तैयार कर लिया।
बडगे ने जो हथियार दिए थे उसे मदनलाल ने अपने बिस्तरों वाली पोटली में छुपाकर रख लिया। तय हुआ कि मदनलाल और करकरे फ्रंटियर मेल से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। बडके और नाथूराम गोडसे का भाई गोपाल गोडसे अलग-अलग गाड़ियों से दिल्ली जाएंगे। नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे हवाई जहाज से दिल्ली पहुंचेंगे। मतलब बंबई से बापू की मौत दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाली थी।
इधर दिल्ली-बंबई समेत तमाम शहरों से बिड़ला हाउस में तार आने लगे। तमाम तार में लोगों ने बापू के स्वास्थ्य की कामना की थी। 16 जनवरी को दिल्ली-बंबई समेत कई शहरों की तमाम दुकानें बंद रहीं। जगह-जगह बापू के स्वास्थ्य लाभ की खातिर हवन-पूजन होने लगे।
17 जनवरी को तय कार्यक्रम के मुताबिक गोपाल गोडसे ट्रेन में सवार हो गया। गोपाल गोडसे ने भी अपने सामान में एक पिस्तौल छुपा रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल में आ सके।
इधर बिड़ला हाउस में गांधी की सेहत में हल्की सुधार के बाद भले ही तमाम चेहरों पर थोड़ी खुशी दिख रही थी लेकिन नेहरु और पटेल अलग-अलग दिशाओं में रोते देखे गए। दोनों गांधी की बिगड़ी तबीयत के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगे थे। बिड़ला हाउस में भीड़ बढ़ती जा रही थी और इसी भीड़ में मदनलाल पहवा और करकरे भी मौजूद थे।
शाम को कांग्रेस दफ्तर में डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ नेताओं की मीटिंग चल रही थी। तभी फोन पर जानकारी मिली कि गांधी की तबीयत बहुत खराब हो गई है। अगले दिन 18 जनवरी को गांधी घंटे-दो घंटे पर बेहोश होने लगे। 11 बजे तक राजेंद्र प्रसाद, नेहरु, पटेल समेत तमाम बड़े नेता बिड़ला हाउस पहुंच चुके थे। राजेंद्र प्रसाद ने बापू से कहा कि उनकी तमाम शर्तें देश ने मान ली है। दस्तखत करने वालों में हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता भी शामिल हैं। सबने मिलकर आपसे अनशन तोड़ने की अपील की है। गांधी ने कहा सरकरा बैठे लोगों ने सरकार का मतलब दिल्ली समझि लिया है, सरकार का मतलब सारा देश समझिए।
दोपहर 2 बजे तक सारी दिल्ली को खबर लग गई कि गांधी ने अनशन खत्म कर दिया है। बीबीसी ने भी गांधी का अनशन खत्म वाली खबर देश-दुनिया को दे दी। भारत और पाकिस्तान में जश्न का माहौल था। और दिल्ली में गांधी की हत्या के लिए पांच लोग पहुंच चुके थे।

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