भारत में एक बार फिर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी की तैयारी चल रही है। इसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल। तो फिर क्या होगा ?
पहले से ही देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान पर हैं। और वो भी तब जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बेहद कम थीं। आलम ये था कि तेल उत्पादक देश अपनी कई शर्तों को खत्म कर तेल खरीदारों के सामने झुके नजर आए। तो फिर भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान पर क्यों रहीं ? इसका सीधा जवाब है सरकार की कमाई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम होने के बावजूद भारत सरकार ने इसका फायदा आम लोगों को नहीं दिया। सरकार ने इसका फायदा खुद उठाया और जमकर कमाई की। केंद्र सरकार ने 2014 से 2016 के बीच डीजल के उत्पाद शुल्क में 11 बार में 380 फीसदी की बढ़ोत्तरी की। मतलब इस दौरान एक लीटर डीजल का उत्पाद शुल्क 3 रु.56 पैसे से बढ़कर 17 रु.33 पैसे हो गया। यही हाल पेट्रोल का भी रहा। केंद्र सरकार ने 2014 से 2016 के बीच पेट्रोल के उत्पादद शुल्क में 120 फीसदी का इजाफा कर दिया। 2014 में एक लीटर पेट्रोल पर सरकार 9 रु.48 पैसे उत्पाद शुल्क ले रही थी जो 2016 में 21 रु.48 पैसे हो गया।

देश को महंगाई की आग में झोंक कर सरकार ने कैसे कमाई की इसको इस तरह भी समझिए। वित्तीय वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम प्रॉडक्ट से 1 लाख 72 हजार 66 करोड़ का राजस्व जुटाया था। 2015-16 में ये 2 लाख 58 हजार 443 करोड़ रुपये हो गया। 2016-17 में तो सरकार ने कच्चे तेल की कम कीमतों का जमकर फायदा उठाया और आम आदमी पर महंगाई का बोझ लाद कर 3 लाख 34 हजार 534 करोड़ रुपये की कमाई की।
बाजार में कच्चे तेलों की कीमतें बेहद कम हुईं लेकिन भारत में इसका फायदा आम लोगों को नहीं हुआ। अकेले दिल्ली के बाजार के हिसाब से देखें तो भी आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको कितनी राहत मिल सकती थी और आप कितनी बचत कर सकते थे या फिर उन पैसों से अपनी कितनी ज़रूरतें पूरी सकते थे।
2017 के सितंबर महीने की 15 तारीख को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपये 43 पैसे थी। जबकि इसकी मूल कीमत थी 27 रु.61 पैसे। तो फिर ये 70 रु.43 पैसे में क्यों बेचा गया ? इसका जवाब पढ़िए। 27 रु.61 पैसे के पेट्रोल में 2 रु.80 पैसे मार्केटिंग लागत को जोड़िए फिर इसमें सरकार की कमाई वाला 21 रु.48 पैसे उत्पाद शुल्क जोड़िए। इस बाद सरकार ने फिर वैट और प्रदूषण के नाम पर 14 रु.97 पैसे वसूले। विक्रेता का 3 रु.57 पैसा जोड़कर ये हो गया 70 रु.43 पैसों का। मतलब 27 रु.61 पैसे के पेट्रोल पर सरकार ने उत्पाद शुल्क और वैट,प्रदूषण कर लगाकर 36 रु.45 पैसों की शुद्ध कमाई की। ये अपने आप में हैरान करने वाली कर व्यवस्था है। आम भाषा में 28 रुपये का माल और उस पर 37 रुपये टैक्स।
यही हाल डीजल का भी रहा। 27 रु.51 पैसों के डीजल पर सरकार ने 17 रु.33 पैसे उत्पाद शुल्क और 8 रु.69 पैसे वैट और प्रदूषण शुल्क के नाम वसूले। मतलब 28 रुपये के माल पर 27 रुपये टैक्स।
अब ये महंगाई और बढ़ने वाली है। अपने खर्चे बढ़ा चुकी केंद्र सरकार खुद का खर्च कम करने को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार केंद्रीय करों में कटौती के लिए तो तैयार नहीं है लेकिन राज्य सरकारों से कर कटौती की अपील ज़रूर कर रही है। 2017 के जून में बाजार में कच्चे तेल की कीमत 46 डॉलर के पार थी जो दिसंबर 2017 में 62 डॉलर प्रति बैरल के पार हो गई। केंद्र सरकार अपनी कमाई बरकार रखना चाहती है। मतलब अब डीजल-पेट्रोल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी के लिए आप तैयार हो जाइए और इसी के साथ महंगाई की भारी मार झेलने की क्षमता भी विकसित कर लीजिए।
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