Saturday, September 15, 2018

मस्जिद में मोदी: ये जंतर बांध लीजिए

ये तस्वीर भर नहीं है। ये एक जंतर है। इस जंतर को गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज जैसे बीजेपी नेताओं को बांध लेना चाहिए। हिंदू राष्ट्र के नारे बुलंद करने वालों को ये जंतर अपनी जेब में डाल लेना चाहिए। जिस हिंदू का खून ना खौला खून नहीं वो पानी है कहने वालों को अपने गले में इसे लटका लेना चाहिए। जो ये कहते फिर रहे हैं कि मोदी के पीएम बनते ही राहुल गांधी मंदिर जाने लगे उन्हें ये भी कहना चाहिए कि राहुल के मंदिर जाने से मोदी मस्जिद जाने लगे। क्योंकि सच ये है कि ये भारत का प्रधानमंत्री होने की मजबूरी है। मुसलमानों के बीच हाथ जोड़ कर खड़े होने वाला ये कोई बीजेपी नेता भर नहीं है। मस्जिद में जाकर खुद को मुसलमानों के बीच का बताने वाला ये कोई वो नेता नहीं है जो राम मंदिर आंदोलन के रथ पर सवार था। खुद को मुसलमानों के बीच का बताना वाला ये शख्स भारत का प्रधानमंत्री है। और यही प्रधानमंत्री होने की मजबूरी है।
इसलिए इस जंतर को सत्ता का मंतर समझिए और धारण कर लीजिए। क्योंकि सत्ता के लिए सबके बीच हाथ जोड़ कर खड़े होना राजनेताओं की मजबूरी होती है। और मौजूदा दौर में ये मजबूरी और बड़ी हो गई है। एसएसी एक्ट संशोधन से नाराज सवर्ण, नोटबंदी से नाराज व्यापारी और महंगाई से नाराज मिडिल क्लास के बीच हाथ जोड़ कर खड़े होने की स्थिति बची नहीं है। तो फिर ऐसे में शिया मुसलमानों के बीच अटल राह से गुजरना होगा। अटल बिहारी बाजपेयी ने शिया मुसलमानों से जो रिश्ता जोड़ा था उस रिश्ते की गहराई में उतरना होगा। और हां इसे नारा भर मत मानिए ये भारत की सच्चाई है 'सबका साथ-सबका विकास' । दुर्भाग्य से अब तक आपलोग से इसे जुमला ही समझते रहे। लेकिन मोदी जी भीड़ नहीं हैं मोदी जी भीड़ को खड़ा करने वाले हैं। और भीड़ खड़ा करने वाले नेता को मालूम होता है कि जुमलों से आगे ज़मीन भी तैयार करनी होती है। वो इस जंतर के जरिए वही काम रह रहे हैं। इसलिए आप भी इस जंतर को अपने पास संभाल कर रखिए। और वो जो आपलोगों के पुराने नारे हैं न उन्हें पायताने रख दीजिए। और गला फाड़कर बेलिए सबका साथ-सबका विकास।

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