Friday, September 14, 2018

'राम' चूक गए अब बीजेपी को रावण का आसरा


तो रावण रिहा हो गया.. भीम आर्मी का संस्थापक..दलित विद्रोह का नायक..सहारनपुर हिंसा का आरोपी और कानून की भाषा में देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुका चंद्रशेखर उर्फ रावण रिहा गया.. रिहाई हुई भी तो सरकार की मेहरबानी से.. वही सरकार जो कभी चंद्रशेखर को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताती थी.. अब चंद्रशेखर पर दया दिखाने लगी है.. सहारनपुर में ठाकुर-दलित हिंसा का केंद्र रहे रावण पर हुई सरकारी मेहरबानी का मतलब क्या है.. अचानक उमड़ी दया के मायने क्या हैं.. अचानक हुई रिहाई का रहस्य क्या है.. इस राज़ से भी पर्दा उठेगा..इन सवालों के जवाब भी खोजे जाएंगे..

     तो रिहाई, राज़, रहस्य से पहले जो सबकी आंखों के सामने है वो देखिए.. यूपी के दलित वोटबैंक पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती की सबसे मजबूत दखल है..और यूपी के सवर्ण वोट बैंक पर बीजेपी की जबर्दस्त पकड़ है.. एससी-एसटी ऐक्ट संशोधन विधेयक के बाद भी दलित वोटबैंक की गोलबंदी बीजेपी की तरफ होती नहीं दिख रही..लेकिन गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग कर और एससी-एसटी ऐक्ट में बिना जांच गिरफ्तारी वाले प्रावधानों का विरोध कर मायावती ने सवर्णों पर जाल फेंक दिया है.. 2007 में ब्राह्मण-दलित गठजोड़ कर मायावती ने यूपी की सत्ता हासिल की थी.. मतलब ये कि मायावती अगर दलित-सवर्ण कार्ड खेलती हैं तो एससी-एसटी एक्ट संशोधन से नाराज सवर्णों का बड़ा हिस्सा अपने पाले कर सकती हैं.. तो फिर बीजेपी का होगा क्या.. जाहिर है बीजेपी भी ऐसी संभावनाओं-आशंकाओं को देख रही है.. तो बिसात की ये चाल समझ सकते हैं.. 2017 के अप्रैल और मई महीने में शब्बीरपुर गांव से भड़की हिंसा ने  सहारनपुर के बड़े हिस्से को अपनी चपेट में लिया था.. और इस घटना ने यूपी के बड़े हिस्से में ठाकुरों और दलितों को आमने-सामने कर दिया था.. हिंसा की आग भड़काने का आरोप भीम आर्मी पर लगा और मुख्य आरोपी बनाये गए चंद्रशेखर को जेल हुई..हाई कोर्ट से जब जमानत मिली तो सरकार ने चंद्रशेखर पर रासुका लगा दिया...और चंद्रशेखर की रिहाई रुक गई....रासुका लगने के बाद सहारनपुर के कई ठाकुर बहुल गांवों में जश्न मनाया गया।
मतलब ये कि चंद्रशेखर और सवर्ण संघर्ष को सत्ता-सियासत ने खूब खाद-पानी दिया। और मतलब ये भी कि चंद्रशेखर जिसके साथ होंगे सवर्ण उनके साथ जाने से कतराएंगे.. तो फिर सवर्ण वहीं खड़े मिलेंगे जहां वो 2014 या फिर 2017 में खड़े थे..क्योंकि सहारनपुर हिंसा के बाद मायावती को कोस चुके चंद्रशेखर अचानक माया राग अलापने लगे हैं.. और राग से ही बिसात की ये चाल थोड़ी ही सही समझ में आने लगी है
     तो फिर रिहाई को सियासी मानिए या चुनावी.. मानने को इससे अलग भी कुछ मानिए..लेकिन ये भी मानिए कि ये रिहाई चुनाव पर असर डालेगी ज़रूर
  
  

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