Sunday, February 18, 2018

भूख: दूर तक फैला हुआ बेबसी का इक समंदर

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में 70 साल की एक बुजुर्ग महिला पड़ोसियों के रहम-ओ-करम पर जिंदा हैं। जिले के इमलिया सुल्तानपुर के तिहार गांव की ये महिला विधवा भी हैं और बेऔलाद भी। गांव में एक जर्जर झोपड़ी है जिसमें सिर छुपाने की जगह मिल जाती है। जब तक सेहतमंद थीं मजदूरी का आसरा था लेकिन अब बूढ़ी हड्डियां साथ नहीं देतीं। लिहाजा गांव वालों ने सिस्टम की बुनियादी खराबियों और गरीबी के अधिकारों का इस्तेमाल कर इनका नाम गीरीबी रेखा वाली सूची में डलवाया। उम्मीद थी हर महीने इन्हें सस्ता राशन मिल जाएगा और बूढ़े बदन को जिंदा रखने की खातिर चार रोटियां मिल जाएंगी। गांव वालों की उम्मीदें धरी की धरी रह गईं और ढिंढोरा वाली योजनाओं का राशन बाजार में बिकता गया।
       कोटेदार ने इस बूढ़ी महिला को पिछले डेढ़ साल से छटांक भर अनाज नहीं दिया है। शहर होता तो ये महिला भूख की मौत मर चुकी होती। गांव है तो गांव वाले हैं, गंवई रवायत है और पड़ोस में पकने वाली रोटियों में इस मां की हिस्सेदारी भी है। रोज़ाना कोई न कोई दो-चार रोटियां दे जाता है और बूढ़े बदन में झुरझुरी आ जाती है। देश भर में भारत माता की जय के नारों के बीच कई बूढ़ी माताएं भूख से बिलख रहीं हैं। 
     सीतापुर के तिहार की इस बूढ़ी माता को नारों का मतलब समझ में नहीं आता, ये आधार और पैन कार्ड नहीं जानतीं। इनके पास एक राशन कार्ड है। इनको बताया गया था कि राशन कार्ड बनने के बाद कोटे से राशन मिलेगा लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। राशन कार्ड लेकर ये बार-बार कोटेदार के पास जाती रहीं और कोटेदार इनको अब तक लौटाता ही रहा है। बताया जा रहा है कि कोटेदार के पास जो सूची है उसमें इनका नाम नहीं है। ये भारत को वो सच है जिसका जिक्र लाल किले से नहीं किया जाता। ये भारत का वो सच है जो नारों में नहीं दिखता है। बेबसी का ये समंदर दूर तक फैला हुआ है। 

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