Sunday, February 18, 2018

वंशवाद: सवाल सिर्फ कांग्रेस से ही क्यों ?

दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय से निकली बात गुजरात के धरमपुर पहुंचते-पहुंचते मुगलिया सल्तनत तक पहुंच गई। राहुल की ताजोपशी का रास्ता क्या साफ हुआ तुलना औरंगजेब की ताजपोशी से हो गई। लेकिन मुगलिया सल्तनत की नजीर पेश करने वाले ये भूल गए कि सत्ता की विरासत वंश की विरासत तक सिर्फ मुगलों ने नहीं पहुंचाई, राजा दशरथ की विरासत भी उनके बेटे रामचंद्र ने ही संभाली थी। लेकिन, ये बातें राजतंत्र की हैं। उस प्रजातंत्र की नहीं जिसके बारे में बताया गया कि ये जनता के लिए, जनता द्वारा जनता का शासन है। तो फिर इस खांचे में मौजूदा जनतंत्र कहां फिट होता है? कांग्रेस में नेहरु-गांधी परिवार की ताजोपशी पर हर बार सवाल उठे हैं लेकिन, एक बड़ा सच ये है कि देश की जनता ने हर बार कांग्रेस के नेहरु-गांधी परिवार को सिर-आंखों पर बैठाया है। चाहे वो दौर मोतीलाल नेहरु का रहा हो या फिर जवाहर लाल का, दौर इंदिरा गांधी का रहा हो या राजीव गांधी का। देश ने देखा कि कैसे सोनिया गांधी के नेतृत्व पर भरोसा जताकर देश ने अटल बिहारी बाजपेयी जैसे नेता को सत्ता से दूर कर दिया। तो मतलब साफ है कि विरोधियों को हर बार कांग्रेस के वंशवाद ने नहीं देश की जनता ने जवाब दिया है। तो याद कीजिए कांग्रेस में सीताराम केसरी का दौर। नेहरु-गांधी परिवार से इतर पार्टी का नेतृत्व जब भी गया है देश की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है। तो सच ये भी है कि लोकतंत्र के ढांचे में कांग्रेस का नेहरु-गांधी परिवार वंशवाद नहीं जनता के भरोसे का प्रतीक रहा है।
और सच ये है कि परिवारवाद हर जगह देखने को मिलता है। डॉक्टर का बेटा डॉक्टर ही बनना चाहता है, बिजनसमैन का बेटा बिजनसमैन। ऐसा माना जाता है कि लोकतन्त्र में वंशवाद के लिये कोई जगह नहीं है लेकिन, फिर भी विरासत की सियासत भारतीय राजनीति का अटूट हिस्सा बन गई है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद का नामांकन भरते ही एक बार फिर वंशवाद की बहस ने जोर पकड़ लिया है। राजनीतिक हलकों में एक बार फिर सियासत में विरासत को लेकर हलचल मच गई है। एक तरफ राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हो गई है। राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राजनीतिक विरासत के तौर पर देखा जा रहा है। यूं तो देश की 130 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस को हमेशा से ही वंशवाद का तमगा हासिल हुआ है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पं.नेहरु, इंदिरा से लेकर सोनिया-राहुल तक सब विरासत की सियासत में लिपटे नजर आते हैं। सच्चाई तो ये है कि देश में अगर वामपंथी दलों के छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई दल ऐसा हो जो वंशवाद से अछूता हो। पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक देश की सियासत में विरासत के रंग साफ तौर पर देखने को मिलते हैं। भारत के बड़े राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक और दक्षिण से लेकर पंजाब तक परिवारवाद की हनक दिखाई देती है। तो फिर सिर्फ कांग्रेस पर ही वंशवाद के आरोप लगाना कहां तक जायज है? और सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि कांग्रेस पर वंशवाद के आरोप वो लगा रहे हैं जिनके दामन खुद सियासत की विरासत के रंग में रंगे हैं। देश की सभी सियासी पार्टियां परिवारवाद के आगोश में लिपटी हैं। भारतीय राजनीति के कई बड़े चेहरे, कई बड़े दल इसी वंशवाद की चपेट में हैं। ऐसा क्यों है कि अक्सर सियासी हलकों में बहस सिर्फ गांधी परिवार को लेकर ही उठती दिखाई देती है? यकीनन राहुल का जन्म देश के सबसे शक्तिशाली सियासी परिवार में हुआ है लेकिन, राहुल गांधी की हैसियत का अंदाजा क्या सिर्फ इससे लगाना ठीक होगा कि उनका जन्म गांधी परिवार में हुआ। नहीं... आज राहुल को भारतीय राजनीति का परिपक्व और बड़ा चेहरा माना जाता है। गांधी परिवार से इतर देश की सियासत में राहुल की अपनी अलग पहचान है।
देश की राजनीति में हावी वंशवाद को देखिएगा तो नेहरु-गांधी परिवार से अलग कई उदाहरण सामने होंगे।
दक्षिण का सियासी कुनबा
दक्षिण भारत की सियासत में भी वंशवाद हावी है। तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी डीएमके में भी वंशवाद की जड़ें गहरी हैं। करुणानिधि की पार्टी में उनके परिवार के लोग पूरी तरह से काबिज हैं। मौजूदा समय में डीएमके की कमान करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में है। उनके नाती दयानिधि मारन और बेटी कनिमोरी का पार्टी में दबरदस्त दबदबा है।
महाराष्ट्र में ठाकरे राज
महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना में पूरी तरह से परिवारवाद का कब्जा है। बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना बनाई थी। बालासाहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपी थी और अब उद्धव ने अपने बेटे आदित्य को युवाओं के नेतृत्व की कमान सौंप दी है
वंशवाद से अछूता नहीं कश्मीर
जम्मू-कश्मीर की दोनों प्रमुख पार्टियों में वंशवाद की जड़ें गहरी हैं। जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कॉन्फ्रेंस की तीसरी पीढ़ी उमर अब्दुला के हाथों में पार्टी की कमान है। उमर के पिता फारुक अब्दुला सांसद हैं। मुफ्ती मुहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी की कमान उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के हाथों में है, महबूबा मुफ्ती मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री हैं।
पंजाब का सियासी विरासत
पंजाब की सियासत में सियासी घराने ही अहम भूमिका निभा रहे हैं। पंजाब की सियासत में अकाली दल और कैप्टन अमरिंदर सिंह का वर्चस्व देखने को मिलता है। अकाली दल की कमान बादल परिवार के हाथों में है।
हरियाणा में परिवारवाद
देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल का कभी हरियाणा की राजनीति में काफी दबदबा हुआ करता था लेकिन, इनके बाद प्रदेश की राजनीति में उनके परिवारों का असर बना हुआ है। इन तीनों का जिक्र हरियाणा की राजनीति में वंशवाद का उदाहरण है
बीजेपी में गहरी हैं परिवारवाद की जड़ें
कांग्रेस के परिवारवाद पर सवाल उठाने वाली बीजेपी भी वंशवाद की राजनीति से अलग नहीं है... बीजेपी की सियासत में एक फौज परिवारवाद से आई है...
विजयाराजे सिंधिया की बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया दूसरी बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी हैं
यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में मंत्री हैं
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे सांसद हैं
बीजेपी के सबसे बड़े नेता कल्याण सिंह के बेटे सांसद हैं, और पोता विधायक और मंत्री हैं
यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं
राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह नोएडा से बीजेपी विधायक हैं
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीके धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर बीजेपी से सांसद हैं
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद हैं
बीजेपी नेता प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से लोकसभा सांसद हैं
पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं
लालजी टंडन के बेटे गोपालजी टंडन देवरिया से बीजेपी विधायक हैं
जाहिर है कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली बीजेपी का दामन खुद सियासत में विरासत से रंगीन है
सपा है देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में तो परिवारवाद पूरी तरह हावी है। देश में सबसे बड़ा सियासी कुनबा मुलायम सिंह यादव का है। मुलायम परिवार के दो दर्जन से ज्यादा लोग राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। बेटे अखिलेश यादव, बहु डिंपल यादव, भाई शिवपाल सब सपा के बड़े चेहरों में शुमार हैं। मुलायम परिवार के सदस्य सांसद से लेकर पंचायत तक में काबिज हैं। सपा के मौजूदा पांचों सांसद मुलायम परिवार से हैं। उनके बेटे अखिलेश यादव यूपी का मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल पार्टी के अध्यक्ष हैं...
वंशवाद से दूर नहीं मायावती
कांग्रेस और दूसरे दलों पर हमेशा वंशवाद को लेकर तंज कसने वाली मायावती खुद वंशवाद से अछूती नहीं हैं। मायावती ने भी मुलायम की राह अपनाई है। मायावती ने पार्टी में दूसरे नंबर का दर्जा देते हुए अपने भाई आनंद कुमार और भतीजे अकाश को पार्टी में अहम पद से नवाजा है।
आरएलडी में भी हावी वंशवाद
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल जो बाद में आरएलडी बनी, पर उनके बेटे अजित सिंह का कब्जा कायम है। उन्होंने अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बेटे जयंत चौधरी को भी पार्टी में अहम भूमिका दे रखी है।
लालू प्रसाद यादव का सियासी कुनबा
बिहार की सियासत में वंशवाद की बात हो तो भला लालू प्रसाद यादव को कोई कैसे भूल सकता है। बिहार की सियासत में सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा लालू प्रसाद यादव का है। लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी उनके जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री रहीं और अब बेटी राज्यसभा सांसद हैं। साथ ही लालू के दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी नीतीश कुमार के साथ गठबंधन सरकार में मंत्री रहे हैं। लालू का लगभग पूरा कुनबा राजनीति में सक्रिय है। एक समय में उनके दोनों साले साधु और सुभाष यादव का बिहार की राजनीति में जलवा था।
पासवान के जूनियर पासवान
बिहार की सियासत में रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी भी वंशवाद से अछूती नहीं है। पासवान के बाद पासवान के बेटे चिराग पासवान भी राजनीति में उतरे। चिराग ने 2014 में चुनाव लड़ा और सांसद बने।
वंशवाद सिर्फ यूपी और बिहार तक ही सीमित नहीं है। पंजाब, कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, ओडीशा, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश हर जगह ये वंशवाद देखने को मिलता है। तो फिर हर सवाल कांग्रेस से ही क्यों ?

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