Sunday, February 18, 2018

नमस्ते सदा वत्सले छोड़िए होली मनाइए

देशभटक पांड़े पगला गए हैं। भीतीहरवा आश्रम के बाहर नाखून से मिट्टी खोद रहे हैं। दांतों से पेड़ के तनों को डंस रहे हैं और भाव-भंगिमाओं से बच्चों का मनोरंजन कर रहे हैं। आही दादा ई का हो गया। देशभटक पांड़े की बूढ़ी मां कपार पीट रही हैं। बेतिया के एमजेके कॉलेज के डॉक्टर आदत के मुताबिक जवाब दे चुके हैं। यहां इलाज संभव नहीं बाहर ले जाइए। अब अपना देह तो इनसे चलता नहीं देशभटक को कहां-कहां लेकर जाती रहें। बाकी सपूत का दुख देखा नहीं जाता। समझे में नहीं आ रहा है कि का देख लिया टीवी में। पहिले तो कभी टीवी देख के एतना नहीं बउराया।
मां कपार पीट रही हैं और बेटा भीतीहरवा आश्रम की दीवार पर सिर पीट रहा है। गांव के लोग भावुक हुए जा रहे हैं। हे गान्ही महात्मा दोहाई सच्चाई के, बालक के माफी दे द, बुढ़िया के एके सपूत है। दोहाई महात्मा के। बाकी देशभटक पांड़े मानने को तैयार नहीं। अब चिल्लाने लगे देशभटक पांड़े, प्रबल प्रवंचना का शिकार हुआ। गांव के लोग भकुआ गए। भगेलू महतो मास्टर जी पूछ रहे हैं, पांड़े जी को परबल पंच कुछ कह दिए का? मास्टर जी गांव के लोगों को समझाने लगे, प्रबल माने बड़का और प्रवंचना माने धोखा। कौनो बड़का धोखा हुआ है पांड़े जी के साथ। धोखा..गांव के लोग अचंभे में। पांड़े बाबा को कौन धोखा हो गया, कौनो लड़की-वड़की ने भभूत खिला दिया का? गांव के लोग देशभटक पांड़े को समझाने लगे। कोई फूल चढ़ा रहा है, कोई अक्षत। ओझा-गुनी बुला लिए गए।
      घुटनी बाबा लोटा से दारू पी रहे हैं और देशभटक पांड़े का भूत उतार रहे हैं। भूत उतर रहा है। घुटनी बाबा के मुंह की दुर्गंध से देशभटक पांड़े को उबकाई आ रही है। लोग चिल्ला रहे हैं, दोहाई सरकार के, दोहाई घुटनी बाबा के, हे भूत-प्रेत दया करो। भूत उतर रहा ह। देशभटक पांड़े जोर से चिल्लाने लगे। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि। अहा देशभटक ठीक हो रहे हैं, सही हो गए, यही बतिया तो वो बोलते रहते हैं, वाह माइंड ठीक हो गया बबुआ के। दोहाई सरकार के, दोहाई गान्ही महात्मा के।
भीड़ देख कर देशभटक पांड़े शुरू हुए। भाइयों-बहनों, माताओं-बहनों। तभी गांव के एक लड़के ने टोका, ए काका हम तो भतीजा हैं। देशभटक पांड़े ने नहीं सुना, बोलते रहे, भारत मां के सपूतों, बड़ा धोखा हुआ। हमको कभी देखा फुल पैंट पहने हुए। कड़ाके की ठंड में भी पाजामा-कुर्ता पहना, घने कुहरे में भी हाफ पैंट पहन कर लाठी भांज। भांजी कि नहीं। बोलिए-बोलिए। गांव के लोगों ने एक सुर में कहा सांच के जड़ पाताल में। देशभटक पांड़े का जोश बढ़ता गया। गांव के लोगों पिछले कई सालों से मैंने आपको बताया कि नहीं कि आज़ादी के बाद से इस देश में कुछ नहीं हुआ। बताया कि नहीं? सड़कें बनीं तो भी मैंने कहा कुछ नहीं हुआ। गांव में रेल पहुंची तब भी मैंने कहा अभी कुछ नहीं हुआ। पाकिस्तान से जंग जीते तब भी मैंने कहा कुछ नहीं हुआ। मैंने हर बार कहा न कि देश में तरक्की का कोई काम नहीं हुआ। आज़ादी के बाद से देश बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। कहा कि नहीं? गांव के लोगों ने हामी भरी, कहा बबुआ, सबसे कहा, रोजे कहा, जब भेंटाए तब कहा। देशभटक पांड़े फिर शुरू हुए। यहीं धोखा हुआ, जिनके लिए जाड़े में हाफ पैंट पहन-पहन कर फुलफैंट को भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया, अब वही हमारी संस्कृति का बलात्कार कर रहे हैं। कह रहे हैं शाखाओं में फुल पैंट पहन कर आना है। जिनके लिए सड़क, रेल, पुल, बिजली, नहर सबको बर्बादी की वजह बताया, अब वही लोग देश की संसद में कह रहे हैं कि पिछली सरकारों का, अब तक के तमाम प्रधानमंत्रियों का देश की तरक्की में बड़ा योगदान है। बताइए हमसे धोखा हुआ कि नहीं? बताइए, बताइए, नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे। आ ई धोखा हम नहीं सहेंगे, इस बार शाखा में नहीं गांव में होली मानाएंगे।

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