Tuesday, October 9, 2018

भारत ! तेरे अपने ही तेरे टुकड़े करेंगे

पूरब के उगते सूरज को निहारना और पूरब के मेहनतकशों की बदौलत चमकते महानगरों को निहारना एक सा लगता है. महाराष्ट्र से गुजरात तक गम खाते, गाली खाते लुटते-पिटते पूरबिओं का दर्द अपना दर्द लगता है. कई सालों से भारत के टुकड़े किए जा रहे हैं। भारत तेरे टुकड़े होंगे अगर तू भारत बनना ही नहीं चाहता है तो। भारत और भारतीयता से इतर गुजराती, मराठी की सोच पलेगी तो भारत के टुकड़े होंगे। भारतीयता की सोच में अगर यूपी-बिहार शामिल नहीं होंगे तो फिर कोई भारत भी नहीं होगा। आसाम से लेकर, कश्मीर तक और मुंबई से लेकर गुजरात तक यूपी-बिहार के मेहनतकशों के खिलाफ जो माहौल गढ़ा गया है वो मुकम्मल भारत के किसी भी सपने के खिलाफ है। यूपी-बिहार की निकम्मी हुकूमतों का दंश झेलती ये पूरबिया आबादी यूपी-बिहार के विकास की सबसे बड़ी कहानी है। परदेस गए पूत की कमाई से यूपी-बिहार के गांवों में रौनक आती है। और बिहार-यूपी से परदेस गए इन पूरबियों की जब हड्डियां गलती हैं तो गुजरात के हीरे चमकते हैं और मुंबई की माया बढ़ती है। दर्द का सागर है, हुकूमतों की नाकामी की कहानी है, नफरतों की आग लगाने वालों के इरादों का खुलासा है.. लेकिन सियासत ने कभी भी नाकामी मानी नहीं.. और शाही टुकड़ों के जायके ने इन नाकामियों पर सवाल उठने नहीं दिए
कभी किसी ने ये पूछा तक नहीं कि मुंबई में मनसे के जिन गुंडों ने 2009 में 4 बिहारियों की पीट-पीट कर हत्या की उन गुंडों को क्या सजा मिली... असम में 300 से ज्यादा हिंदी भाषियों की हत्या के अलग-अलग मामलों में कितनों को सजा हुई ? वोटों की बुनियाद पर टिके लोकतंत्र की एक बुनियादी खराबी है वोटबैंक की रक्षा.. और फिर यहीं से राष्ट्र, कानून और संविधान की रक्षा की बातें बेमानी हो जाती हैं.. और फिर यहीं से भाषा और क्षेत्र के नाम पर खड़े गुंडा गिरोहों को ताकत मिलती है..वरना जानते तो सब हैं कि भाषा उस तिकड़मी दरिंदे का कौर है जो सड़क पर कुछ और है, संसद में कुछ और है.. और जिस मराठी भाषा के नाम पर मुंबई में उत्तर भारतीयों की हत्याएं हुईं और जिस गुजराती के नाम पर हिंदी भाषी आज गुजरात में मारे जा रहे हैं.. उसका एक सच ये भी है ये उत्तर भारतीय ही हैं जो अपनी भोजपुरी, मगही, मैथिली, अवधी को छोड़ कर हिंदी के लिए देश भर में भाषावादियों का शिकार होते हैं.. हिंदी की खातिर मॉब लिंचिंग का शिकार होते हैं.. और इसी के साथ सवाल ये भी है कि क्या आज़ादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है जिसे एक पहिया ढोता..क्योंकि यूपी-बिहार वालों को देश के दूसरे राज्यों में रहने की आजादी भीड़ देती नहीं है.. और उस भीड़ को वोटबैंक की राजनीति का समर्थन मिलता रहता है
यूपी-बिहार के पावों से तले आशा-निराशा की अनगिन कहानियां दबी पड़ी हैं.. रोजगार की तलाश में जब यहां के लोग देवरिया-गोरखपुर की जिंदगी वासीनाका और सूरत में जीने जाते हैं तो रेलवे स्टेशनों पर ही इनसे लूट शुरू हो जाती है..टिकट काउंटर से शुरू होती ये लूट कूलियों से होते हुए टीटी, रेल पुलिस समेत कई गिरोहों का सफर तय करती है.. ट्रेनों में जानवरों से भी ज्यादा बुरे हालातों में सफर करने वाली इस भीड़ ने कभी भी इन हालातों के लिए अपने राज्य की सरकारों पर सवाल खड़े नहीं किए.. लेकिन नियति देखिए.. अपने ही मुल्क में दोयम दर्जे की हैसियत भी इन्हें नसीब नहीं.. क्योंकि लोकतंत्र को वोट से चलना है.. नागरिक सम्मान से नहीं

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