Thursday, October 11, 2018

अनुभवहीन राजनीति की देन है यूपी में सिपाही विद्रोह

उत्तर प्रदेश के थानों में अराजक माहौल है। सिपाही अपने दारोगा और इंस्पेक्टर को सैल्यूट नहीं कर रहे। थानेदार, इंस्पेक्टर, और डीएसपी के सामने वर्दी पर काली पट्टी लगाकर खड़े हो रहे हैं। शासन का साफ निर्देश है कि ऐसे कृत्य को अनुशासनहीनता माना जाएगा। बावजूद इसके सूबे के तकरीबन तमाम थानों में काली पट्टी वाले कांस्टेबल रोजाना दिख रहे हैं। ये कांस्टेबल अपनी तस्वीरें सोशल साइट्स पर डाल रहे हैं। 

दरअसल लखनऊ में विवेक तिवारी की हत्या के बाद आरोपी सिपाही की गिरफ्तारी से सूबे के सिपाही नाराज हैं। सिपाहियों का ये रवैया बताता है कि पुलिस में ये धारणा स्थापित हो चुकी है कि वो आम आदमी के साथ चाहे जैसा सलूक करे समाज और सत्ता को वो सलूक मंजूर होना चाहिए। पुलिस ये मान कर चलती है कि अपराधियों को बचाना, घटनाओं के बाद रिश्वत लेना और आम आदमी के साथ बर्बरता करना उसका अधिकार है और सत्ता को उसके इस अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनते ही इस पुलिसिया धारणा को शक्ति मिलने लगी। खुद मुख्यमंत्री सार्वजनिक कार्यक्रमों में कहने लगे कि पुलिस अपनी ताकत का इस्तेमाल करे, यमराज तक पहुंचाए, ठोके वगैरह-वगैरह। ताकत का इस्तेमाल तो स्वागत योग्य है लेकिन सरकार का मुखिया ही पुलिस को सरकारी शूटर बनाने लगे तो फिर हथियारबंद दस्ते के अनुशासन को बरकार रखना संभव नहीं होता। 

लोकतांत्रिक ढांचे में ठोको,यमराज के पास पहुंचाओ जैसी भाषा सरकार या फिर व्यवस्था की नहीं हो सकती। ये भाषा पूरी तरह से वैधानिक और नैसर्गिक न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है। और यही चूक यूपी की योगी सरकार से हुई है जिसके नतीजे सामने हैं। पुलिस को न्यायिक प्रक्रिया के प्रति जिम्मेदार बनाए रखना सत्ता की जवाबदेही है। पुलिस को कानून का रखवाला बनाए रखना भी सत्ता की जिम्मेदारी है। पुलिस, व्यवस्था को बनाए रखने वाली संस्था है। सरकार पुलिस को सत्ता का शूटर न बनाए। पुलिस वालों से गलतियां होती हैं तो उसे संरक्षण ना दे। लोकराज में लोकलाज को पूरी तवज्जो दी जानी चाहिए। पुलिस का अनुशासन टूटना राजनीति की अनुभवहीनता का प्रमाणिक दस्तावेज है। अभी भी वक्त है यूपी की सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़े।

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