Sunday, February 18, 2018

तानाशाही नहीं चलेगी, बस उन तीनों को याद कीजिए

भारत के तीन सर्वश्रेष्ठ राजनेताओं का चयन करना हो तो किसी के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती होगी। फिर भी गुण-दोषों के आधार पर आप किसी नतीजे पर ज़रूर पहुच जाएंगे। भारत में औपचारिक तौर पर लोकतांत्रिक राजनीति की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी। उससे पहले बाल गंगाधर तिलक लोकतांत्रिक राजनीति की ज़मीन ज़रूर तैयार कर रहे थे लोकिन, उनकी तमाम कोशिशें नेताओं को ही तैयार कर पाई, राजनीति में बड़े पैमाने पर आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित नहीं कर पाई।
      1916 में दक्षिण अफ्रिका के जन आंदोलन को दिशा देकर महात्मा गांधी भारत लौटे। भारत लौटते ही महात्मा गांधी ने पहला जो काम किया वो था जनमानस को लोकतंत्र के लिए तैयार करना। इसके लिए वो बाजाप्ता अखबार निकालते थे, चिट्ठियां और लेख लिखा करते थे। वो जानते थे कि अंग्रेज परस्त अखबार भारत में लोकतंत्र की बात नहीं करेंगे। इसलिए महात्मा गांधी ने सबसे पहला हथियार सूचना और जन संपर्क को बनाया।
महात्मा गांधी ने जो दूसरा बड़ा काम किया वो था बड़े पैमाने पर लोगों को अपने विचारों के साथ जोड़ना। महात्मा गांधी से पहले की कांग्रेस राजनेताओं की बड़ी टोली तो थी लेकिन उसके पास आम लोगों की ताकत नहीं थी। 1917 में बिहार के चंपारण पहुंचे महात्मा गांधी ने पहली बार कांग्रेस और राष्ट्रीय आंदोलन के साथ आम लोगों को जोड़ा। छोटी-छोटी सभाएं, गांव-टोलों के किसानों-मजदूरों के साथ बैठकें और फिर वकीलों, डॉक्टरों, जमींदारों और पढ़े-लिखे नवजवानों के साथ उनके सीधे संपर्क ने भारत को पहली बार जन आंदोलन का तरीका सिखाया। आज भारत जो कुछ भी है उसमें जन आंदोलनों की बड़ी भूमिका है। हम महात्मा गांधी को सिर्फ आज़ादी की लड़ाई तक सीमित कर के नहीं देख सकते। छुआछूत, स्वच्छता, अहिंसा, कुटीर उद्योंगों के तहत रोज़गार, शिक्षा जैसे क्षेत्र में उनके काम उनके नज़रिए को स्प्षट करते हैं। मतलब आप उनको समग्र राजनेता कह सकते हैं। एक नेता जिसने समग्रता में राष्ट्र और समाज को सम्मान के साथ जीने की कला दी।
       आज़ादी के बाद भारत के पास संघर्षों में तपे, आदर्शों में ढले राजनेताओं की बड़ी फौज थी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. भीम राव अंबेडकर, जवाहर लाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े कद के नेता देश में मौजूद थे। लेकिन उस वक्त देश को एक ऐसे नेता की ज़रूरत थी जिसकी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मजबूत दखल हो। एक ऐसे नेता की ज़रूरत थी जिसकी तरफ दुनिया देखती हो और जिसकी बातों को गंभीरता से लेती हो। इस मामले में तब जवाहर लाल नेहरु का कद सबसे बड़ा था। नेहरु कश्मीर के सारस्वत ब्राह्मण थे और समाजवादी विचारों के घोर पोषक थे। हैरो से प्राइमरी की पढ़ाई करने के बाद लंदन के ट्रिनिटी और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाले नेहरु ने सात सालों तक लंदन में फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद का अध्ययन किया था। समाजवाद और राष्ट्रवाद के इसी अध्ययन ने उन्हें विचारों का पक्का और समाज-राष्ट्र के प्रति घोर निष्ठावान बनाया था। आज जहां भारत खड़ा है उसमें नेहरु का बड़ा योगदान है। आज़ादी के बाद दुनिया में भारत को एक देश के तौर मान्यता दिलाने में नेहरु बहुत जल्दी सफल हुए थे। इतना ही नहीं बांधों, बिजली, नहरें, अस्पतालों और यूनिवर्सिटीज, वैज्ञानिक शोध संस्थानों का जो ढांचा तब नेहरु ने खड़ा किया वही ढांचा आज भी भारत के विकास का बुनियाद बने हुए हैं।
      भारत के तीसरे सर्वश्रेष्ठ राजनेता के चयन में भी बहुत सारी चुनौतियां हैं। किसको छोड़ें, किसका जिक्र करें ये बड़े सवाल हैं। जय प्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहार लोहिया, इंदिरा गांधी जैसी तमाम शख्सियतें हैं। यहां भी गुण-दोषों के आधार पर बेहद बरीकी से किसी एक नाम चयन किया जा सकता है।
   जय प्रकाश नारायण सिर्फ बड़े स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे बल्कि आज़ादी के बाद आम लोगों की स्वतंत्रता के बड़े रक्षक भी साबित हुए। इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता कि आज़ादी के बाद नेहरु काल से ही शासक वर्ग सुविधाभोगी होने लगा था। इतना ही नहीं शासक वर्ग खुद को ऊंचे दर्जे का भी समझने लगा था। नेहरु और लाल बहादुर शास्त्री खुद कई बार इस बात को स्वीकार कर चिंता जाहिर कर चुके थे।
1971 में पाकिस्तान पर युद्ध विजय और अलग बांग्लादेश के निर्माण के बाद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के स्वभाव से लोकशाही जाती रही। पाकिस्तान पर शानदार विजय और एक अलग देश का निर्माण करवाने में सफल रहीं इंदिरा के स्वभाव में तानाशाही घर कर गई। तब तक देश का साधारण आदमी यही जनता था कि सरकार का मतलब कांग्रेस और मतदान का मतलब कांग्रेस। लोगों को ये पता ही नहीं था कि लोकतंत्र में विकल्प देना जनता का काम है।
    1974 में जय प्रकाश नारायण ने सप्तक्रांति के जरिए वही प्रयोग दुहराया जो प्रयोग गांधी 1918 में बिहार के चंपारण में कर चुके थे। जय प्रकाश नारायण ने क्रांति के साथ बड़े पैमाने पर आम लोगों को जोड़ा। उन्होंने एक बार फिर आम लोगों को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास करवाया। उन्होंने पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार की नींव डाल कर लोकशाही में बदलाव की ज़रूरत को स्थापित किया।
  भारत के इन सर्वश्रेष्ठ नेताओं के विचारों, आदर्शों और बलिदानों को आप सिर्फ और सिर्फ लोकशाही में खोज सकते हैं और तानाशाही की किसी भी आशंका के वक्त इनके प्रयोगों को इस्तेमाल कर सकते हैं। आज के भारत की मजबूत लोकतंत्र की नींव इन्हीं नेताओं ने तब रखी थी।

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