पशुपालन घोटाले में
लालू प्रसाद का नाम आने से वो घोटाला बहुत बड़ा हो गया। वरना उनसे बड़े
घपले-घोटाले कर के आईपीएल वाले ललित मोदी, किंगफिशर वाले विजय माल्या और मुकेश
अंबानी के रिश्तेदार नीरव मोदी ऐश ही तो कर रहे हैं। दरअसल लालू राजनीति की चुनौती
थे, माल्या मोदी राजनीति के मददगार हैं। लालू प्रसाद को घोटाले के बाद मीडिया
ट्रायल का जैसा सामना उन्हें करना पड़ा वैसा मोदी-माल्या को नहीं करना पड़ा। लालू
प्रसाद के मामले में राजनीति ने जितनी ताकत लगाई उतनी मोदी-माल्याओं में कभी भी
नहीं लगाएगी क्योंकि, लालू प्रसाद को कमजोर कर सत्ता हासिल करने की तमाम गुंजाइश
हैं लेकिन, मोदी-माल्याओं को कमजोर कर पार्टियां खुद का कुबेर कमजोर नहीं कर सकतीं।
भारत में सार्वजनिक संपत्ति की लूट का
इतिहास बहुत पुराना है। लेकिन राजनीति बड़ी ही होशियारी से सिर्फ कुछ राजनेताओं से
जुड़े घोटालों को मसला बनाकर बड़ी लूट को छुपाती रही है। ये सिर्फ भारत में ही
नहीं हुआ है वरन पूरी दुनिया में हुआ है।
अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान जैसे
पूंजीपति देशों के चंद पूंजीपतियों ने गरीब और विकासशील देशों के कुछ व्यापारियों
को मिलाकर दुनिया की बड़ी आबादी को अपनी मुट्ठी में कर लिया है। विश्व बैंक,
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाएं इसी मकसद से खड़ी
ही की गईं कि इनके जरिए दुनिया की बड़ी आबादी पर आर्थिक शासन थोपा जा सके।
भारत समेत एशिया के ज्यादातर देशों की बड़ी
आबादी उसी आर्थिक गुलामी का शिकार है। मालिकों के लिए मुनाफा पैदा करने वाली ये
भीड़ पूंजवादी मुनाफे के लिए अपनी हड्डियां गलाती रहे इसके लिए सरकारें
पूंजीपतियों के सामने खड़ी नजर आती हैं।
आपको ये जान कर बेहद हैरानी होगी कि दुनिया की
85 फीसदी संपदा महज 20 फीसदी लोगों के पास है। बाकी की 15 फीसदी संपदा में दुनिया
की 80 फीसदी आबादी जैसे-तैसे जीने के लिए अपनी हड्डियां गला रही है। वर्ल्ड
इंस्टिट्युट ऑफ डेवलपमेंट इकॉनामिक रिसर्च के मुताबिक दुनिया के महज 1 फीसदी
अमीरों ने दुनिया की 40 फीसदी सपंदा हथिया ली है। दुनिया की 85 फीसदी संपदा पर 10
फीसदी अमीरों का कब्जा है।
अब बात भारत की। प्रत्यक्ष विश्व बैंक के एक
सर्वेक्षण के मुताबिक भारत के 86 फीसदी लोगों की एक दिन की कमाई 80 रुपये से भी कम
है और महज 1 फीसदी संपदा के सहारे कुल आबादी के 30 फीसदी लोगों को जीना पड़ रहा
है।
इसलिए किसी एक माल्या या मोदी के घोटाले कर
लेने भर से देश बर्बाद हुआ है ये सिर्फ और सिर्फ प्रौपेगंडा है। ये प्रौपेगंडा वो
खड़े करते हैं जिनको पूंजीपतियों ने अपने पैसों के बल पर खड़ा किया है और जिनको
इसी किस्म के प्रौपेगंडा के लिए वो पालता रहा है। इसमें मीडिया, राजनीतिक दल और
कॉर्पोरेटर शामिल होते हैं।
हमें मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को समझने की
कोशिशें करनी होंगी। पहले विश्व युद्ध के बाद यूरोप की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से
तहस-नहस हो गई थी। तब यूरोप में जनक्रांति की तमाम संभावनाएं थीं लेकिन जनता ने न
कोई क्रांति की और ना ही कोई विरोध हुआ। ऐसा क्यों हुआ ? दरअसल सत्ताधारी वर्ग सिर्फ उत्पादन पर ही
नियंत्रण नहीं रखता वो विचारधारा पर भी पूरी तरह से नियंत्रण रखता है। वो अपने हित
की बात को ही राष्ट्र और धर्म से जोड़ता है और फिर उसी को विचारधारा के तौर पर
जनता पर थोप देता है। ऐसे ही सत्ताधारी वर्ग संस्कृति को अपने नियंत्रण में लेता
है और फिर जन समान्य की श्रद्धा का अपने हिसाब से प्रबंधन करने लगता है।
इसलिए आप सिर्फ किसी मोदी या माल्या में मत उलझ
जाइए। देश की कुल संपदा में आपकी हिस्सेदारी कितनी है और पांच बड़े अमीरों की
हिस्सेदारी कितनी है इसका आकलन कीजिए और फिर व्यवस्था से पूछिए कि आपका बाकी का
हिस्सा है कहां। क्योंकि, जान लीजिए तमाम किस्म के राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक,
आर्थिक प्रौपेगंडा इसीलिए खड़े किए जाते रहें हैं ताकि आप उसमें उलझे रहें और किसी
भी दिन अपना हिस्सा न मांग सकें।
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