तो गजब हो गया। राजनीति
नैतिकता की बात कर रही है। कोई पूर्व प्रधानमंत्री को नमूना बता रहा है, कोई
मौजूदा प्रधानमंत्री को नीच कह रहा है और फिर बात नैतिकता की होने लगती है। राफेल
डील पर चुप्पी है, जय शाह की कंपनी का टर्नओवर मामला भी जबाव मांग रहा है। जवाबदेह
खामोश हैं। देश विकास का पता खोज रहा है वो खिलजी के वंशज तलाश रहे हैं। तो गजब हो
गया राजनीति नैतिकता की बात कर रही है। विपक्ष सवाल उठा रहा है सत्ता पक्ष उठते
सवालों को टाल रहा है।
वो भी नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं जो सियासी
पतन की रेस में सबसे आगे हैं। जिन्होंने कभी देश के सत्तारूढ़ गठबंधन के चेयरपर्सन
को, एक विधवा महिला को इटालियन जर्सी गाय कहा था, जिन्होंने 10 साल देश का
प्रधानमंत्री रहे एक अर्थशास्त्री को नमूना कहा था। जो अपने सियासी विरोधियों के
डीएनए पर सवाल उठाते रहे हैं और जो रामज़ादा होते हुए हरामजादा तक पहुंच जाते हैं।
और इतना कुछ करते हुए वो फिर नैतिकता का राग अलापने लगते हैं।
तो गजब हो गया। राजनीति नैतिकता की बात कर
रही है। खूनी पंजे से लेकर मौत के सौदागर तक राजनीति नैतिकता ही तो तलाश रही थी।
और अब नीच से लेकर पाकिस्तान तक, नमूना से लेकर खिलजी के वंशज तक नैतिकता की खोज
में ही तो भटक रही है राजनीति। विकास लापता है, नैतिकता लापता है, बस मिल रही है
तो वो अंधेरी सुरंग जिसमें चाहे जहां तक गिर जाइए पता नहीं चलता। राजनीति फिलहाल
उसी सुरंग के सफर पर है। सुरंग के मुहाने पर नैतिकता की आवाजें आ रही हैं।
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