सरकार ठेकेदार और कर्मचारी ठेका मजदूर। बिहार के नियोजित शिक्षकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यही कहता है। ये फैसला नैसर्गिक न्याय के विपरीत है। ये फैसला जन कल्याणकारी राज की अवधारणा के भी विपरीत है। ये फैसला सरकार की शोषणकारी नीति का समर्थन है। इस फैसले को चुनौती दी जानी चाहिए क्योंकि, कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता है। वो अपनी और अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर ऐसा करता है क्योंकि उसे पता होता है कि अगर वो कम वेतन पर काम नहीं करेगा तो उस पर आश्रित इससे बहुत पीड़ित होंगे। कम वेतन देने या ऐसी कोई और स्थिति बंधुआ मजदूरी के समान है। इसका उपयोग अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि ये कृत्य शोषणकारी, दमनकारी और परपीड़क है और इससे अस्वैच्छिक दासता थोपी जाती है। सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आम आदमी के पास दो लोकतांत्रिक रास्ते होते हैं। पहले वो विरोध-आंदोलनों के ज़रिए सरकार से टकराता है और सरकार जब नहीं सुनती है तो अदालत की राह पकड़ता है। हैरानी की बात ये है कि बिहार के नियोजित शिक्षकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दमनकारी, शोषणकारी नीतियों की रक्षा की है और लाखों लोगों की अघोषित दासता को कानूनी शक्ल दे दी है। समान काम के लिए समान वेतन एक सिद्धांत है, इसे खारिज नहीं किया जा सकता। निजी स्कूलों का व्यवसाय बढ़ाने के लिए सरकारी शिक्षा को चौपट करने की साजिश को अदालती समर्थन मिलने लगेगा तो फिर देश अराजकता का शिकार हो जाएगा। सरकार जब सबकुछ निजी हाथों को सौंप देगी तो फिर एक दिन अदालतें भी किसी कॉर्पोरेट की दुकानें हो जाएंगी। कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे अगर सरकारों के पास नहीं होंगे तो फिर एक दिन सारे विभाग बड़ी कंपनियों के मैनेजर चलाने लगेंगे। सरकार कंपनियों के अधीन होगी और देश में कंपनी राज होगा। हैरानी है कि देश की आला अदालत ने सरकार की दलील मान ली। कल को सरकार कहेगी कि उसके पास अस्पताल चलाने के पैसे नहीं हैं, सड़क बनाने के लिए पैसे नहीं हैं, और जजों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं तब क्या आला अदालत सरकार के फैसले के साथ खड़ी होगी ? कोर्ट का ये फैसला वाकई हैरान करने वाला है। यही हाल रहा तो फिर सरकारों की ज़रूर ही क्या है। कंपनियों के मैनेजर ही देश चला लें। शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय का भ्रम बेहद मुनाफे के धंधे हैं। और हां, इन्साफ जालिमों की हिमायत में जायेगा,
ये हाल है तो कौन अदालत में जाएगा।
ये हाल है तो कौन अदालत में जाएगा।
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