Wednesday, August 22, 2018

वो सबकुछ तबाह कर अयोध्या लौट आएंगे

देश के मोर्चे पर खड़े हर तबके को गलियाना, धमकाना, पीटना ही देशभक्ति की नई पहचान बनती जा रही है। भूख से तड़पते किसानों को नौटंकी मंडली का कलाकार कहा गया। अब नाबार्ड को क्या कहा जाएगा ये देखना-सुनना है।नौकरियों के सारे दरवाजे बंद कर किसानी को भी तबाह किया जा रहा है।

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने हाल ही में जो सर्वे रिपोर्ट पेश की है उसके मुताबिक देश में पिछले तीन सालों में किसानों की हालत बद से बदतर होती गई है। हम सबने देखा है कि एक महिला से प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में अधिकारियों ने कृषि में हुए लाभ के मामले में किस तरह से झूठ बुलवाया था। अब नाबार्ड ने किसानों की आय बढ़ाने वाले प्रोपेगंडा को बेनकाब कर दिया है। 16 अगस्त को नाबार्ड की जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा दौर में देश के आधे से ज्यादा किसान कर्ज के फंदे में फंसे हैं और औसतन हर किसान एक लाख रुपये के कर्ज के बोझ से दबा है। रिपोर्ट बताती है कि 2012-13 में ग्रामीण भारत में 57.8 फीसदी किसान परिवार थे। पिछले तीन सालों में इनमें से 10 फीसदी से ज्यादा मजदूर हो गए। अब 48 फीसदी ही किसान परिवार बचे हैं। जो किसान अपने खेत की उपज से घर-परिवार चला रहे थे वो अब दूसरों के मजदूर होने लगे हैं। जो 48 फीसदी किसान परिवार बचे हैं उनमें भी घर का एक या दो सदस्य ही किसानी से जुड़ा है। ग्रामीण कृषि परिवारों की आय का कुल 23 फीसदी हिस्सा ही किसानी से आ रहा है।2012-13 में ये 60 फीसदी था। मतलब महज तीन सालों में किसानों की आय में 37 फीसदी की साफ गिरावट हुई है। नाबार्ड की ये रिपोर्ट कब नष्ट की जाएगी ये सरकार तय करेगी। लेकिन, मौजूदा ट्रेंड ये बताता है कि जल्दी ही ये रिपोर्ट नष्ट कर दी जाएगी। श्रम मंत्रालय को पहले ही बेरजोगारी के आंकड़े जारी करने से रोक दिया गया है। सांख्यिकी मंत्रालय की वेबसाइट से GDP के आंकड़े हाल ही में हटवाए गए हैं। अब बारी नाबार्ड की है। बारी-बारी से हर संस्था को, हर तबके को पंगु बनाया जा रहा है। पंगु भीड़ नारे लगाएगी, पत्थरें फेंकेगी, आग लगाएगी, गोली खाएगी, जेल जाएगी। उनकी सत्ता के लिए ऐसी भीड़ ज़रूरी है

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