भूख है तो सब्र कर रोटी
नहीं तो क्या हुआ...सब्र कर...रोजगार नहीं तो सब्र कर, व्यापार नहीं तो सब्र कर,
अस्पताल नहीं तो सब्र कर, स्कूल नहीं तो सब्र कर, घर-बार नहीं तो सब्र कर, सुरक्षा
नहीं तो सब्र कर, सब्र कर क्योंकि आज़ाद हिंदुस्तान ने अवाम को सब्र सिखाया है..
गर आवाज उठा दी तो शहरी नक्सली बताया है…भूख से तनी मुट्ठियों को नक्सलबाड़ी बताया
है...कभी जाति के नाम पर कभी धर्म के नाम पर हमें आपस में लड़वाया है...
विधि ने जब अदालतें
दीं हैं तो फिर शरई अदालतों की मांग क्यों...ये सवाल है तो इस सवाल का जवाब हुकूमत
को देना है.. हुकूमत का जवाब है पाकिस्तान चले जाओ..हिंदुस्तान की हर मुश्किल का
हल पाकिस्तान ही है क्या.. सियासत को हिंदुस्तान के कई सवालों का जवाब पाकिस्तान
ही क्यों लगता है...सवाल ये भी हैं...सवाल ये भी कि क्या ये हुकूमत का काम नहीं कि
वो अपनी जनता के सवालों के जवाब ढूंढे.. वो ये बताए कि आखिर संघीय ढांचे के भीतर
बार-बार इस किस्म की मांग क्यों उठती है...या हकूमत की ये जिम्मेदारी नहीं है कि
वो इस किस्म की डिमांड के पीछे की वजहों को खत्म करे...कभी गिरिराज कभी, कभी
साक्षी, और कभी कोई ये बोल जाता है कि फलां पाकिस्तान चले जाएं...पूछिए इनसे कि
हिंद की संतान पाकिस्तान क्यों जाए..
जम्हूरित में अवाम
को पूरा अधिकार है कि वो अपनी सरकार से अपनी सुविधाओं की मांग करे...और सरकार की
जिम्मेदारी है कि वो अपनी अवाम की जायज मांगों को पूरी करने की कोशिश करे...जो
मांगें जायज नहीं हों उन्हें जनता के बीच लाकर जनता को कंन्विंस करे.. लेकिन ये
जवाब कि अलां पाकिस्तान चले जाएं, फलां पाकिस्तान चले जाएं लोकतंत्र की बुनियाद पर
हमला नहीं तो क्या है..तो फिर पूछिए इनसे कि ये होते कौन हैं हमें कहने वाले कि पाकिस्तान चले
जाओ
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