सत्ता-पक्ष और
विपक्ष की जो एकता मंगलवार को लोकसभा में दिखी वो शायद ही कभी दिखी हो..राजनाथ
सिंह ने नरेंद्र मोदी को फोन किया.. आडवाणी का विरोध किनारे लगाया गया ..फिर व्यंग्य
और मुस्कान के जरिए ऐसी सहमति बनी कि महज 1 घंटे 20 मिनट में तेलंगाना बिल पास हो
गया..न बीजेपी ने कोई संशोधन प्रस्ताव रखा और ना ही सरकार को कोई परेशानी हुई.. लेकिन
आंध्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी बिदक गए.. बुधवार को
क्रांतिकारी त्यागी बन बैठे..बगावत तो पहले ही कर चुके थे... इस्तीफा बुधवार को
दिया... मुख्यमंत्री पद से, विधानसभा सदस्यता से... और सियासी जख्म देने वाली
कांग्रेस से भी...
दरअसल किरण
कुमार रेड्डी की पकड़ तेलंगाना में है नहीं सो विरोध के जरिए आंध्र में खुद की
जमीन बचाए रखना सियासी लाचारी है..बीजेपी ना तो आंध्र में है ना तेलंगाना में.. सो
तेलंगाना का समर्थन कर जमीन तलाश रही है और सीमांध्र की चिंता दिखा कर जो मिल
जाए की हालत में है... 2009 में आंध्र की 42 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज करने
वाली कांग्रेस की सूबे में हालत बेहद खराब है... जगनमोहन रेड्डी ने कहीं का छोड़ा
नहीं.. बची-खुची आस पर चंद्रबाबू नायडू पानी फेर सकते हैं... सो अलग तेलंगाना की
17 सीटों ने उम्मीद जगाई है
दरअसल चंद्रबाबू
नायडू और जगनमोहन रेड्डी की तेलंगाना में कोई जमीन नहीं है.. ऐसे में नए राज्य के
गठन को बंटवारे की भावना से जोड़कर सीमांध्र के लोगों का समर्थन बचाए रखना होगा..
जाहिर है सबकी राजनीतिक सौदेबाज़ी ने खूब गलबहियां की.. लोकतंत्र के दरवाजे बंद
रहे.. दीवारें चोट खाती रहीं
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