Monday, May 13, 2019

नियोजित जज भी तो फैसला दे ही देंगे मी लार्ड

तो बेहद चालाकी से ट्रेड यूनियन और कर्मचारी-मजदूर आंदोलनों को खत्म कर सत्ता-समाज ने ठेका-मजदूरी की विवशता खड़ी कर ही दी। इसमें सरकार ठेकेदार होगी और विभागों का कामकाज करने वाले ठेका मजदूर। बिहार में अब स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति होगी ही नहीं। सरकार की दलील है कि स्थायी नियुक्ति होने पर सेवा-शर्त और तबादलों की समस्या बनी रहती है जिससे शिक्षण कार्य बाधित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को सही माना और स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति को ही रोक दिया। स्कूल अब ठेके वाले शिक्षक चलाएंगे। सरकार की साजिश और कोर्ट के बे-सिर-पैर वाले फैसले से अधिकारी भी खुश हैं। लेकिन, वो ये नहीं सोच रहे कि कल ऐसी दलीलें उनके लिए भी कोर्ट में रखी जाएंगी क्योंकि, तबादले तो शिक्षा अधिकारी के भी होते हैं और डीएम के भी। डीएम के तबादले से भी कामकाज प्रभावित होता है। और सरकार की दलील मान लें तो फिर स्थायी कलेक्टर की ज़रूरत ही क्या है ? किसी एजेंसी को ठेका दे दीजिए वो टैक्स कलेक्ट कर लेगी। ऐसी दलीलें बाकी सरकारी पदों पर बैठे लोगों के लिए भी दी जा सकती हैं। ये दलील सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए भी दी जानी चाहिए। जरूरत ही क्या है स्थायी जजों की ? निविदा वाले जज भी तो फैसला सुना ही सकते हैं। तो फिर बेहतर यही होगा कि देश की सारी व्यवस्था ठेके पर दे दी जाए। ठेका एजेंसी ठीक से काम ना करे तो फिर दूसरी एजेंसी को काम दे दिया जाए। ऐसी व्यवस्था हो कि राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता करे और राष्ट्रपति देश चलाने की जिम्मेदारी किसी एजेंसी को दे दें। एजेंसी ठीक से काम करे तो फिर उसी को मौका दिया करें और अगर ठीक से काम ना करे तो निविदा के जरिए दूसरी एजेंसी को देश सौंप दिया जाए। जब सबकुछ ठेके पर चल सकता है तो फिर देश भी ठेके पर चल सकता है। इसकी शुरुआत स्कूलों से हो ही गई है अब सुप्रीम कोर्ट के जजों की स्थायी नियुक्ति रद्द कर उन्हीं जजों को निविदा पर तैनात कर इस मुहिम को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

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